Wednesday, 31 October 2018

HOLI GEET by sunil agrahari - होली गीत

HINDI SONG ON HOLI FESTIVAL 





***होली गीत ***

धीरे धीरे रंग डारो सावरिया , भीगे चुंदरिया  मोर ,

मैं  दधि बेचन जाट वृन्दावन -२ 
रोकी डगरिया मोर रे सजनवा , 
धीरे धीरे रंग डारो सावरिया  , भीगे चुंदरिया  मोर........ 

दधि  मोरी खाई मटकि मोरी फोरि -२ 
दीन्हि चुनरी फॉर रे सजनवा , 
धीरे धीरे रंग डारो सावरिया  , भीगे चुंदरिया  मोर........ 

बरजौ यसोदा मइया अपने ललन को -२ 
काहे करात बरजोरी सजनवा , 
धीरे धीरे रंग डारो सावरिया  , भीगे चुंदरिया  मोर........ 

कबहुँ आइयो बरसाने गली में-२ 
लेवै खबरिया  तोर हो सजनवा , 
धीरे धीरे रंग डारो सावरिया  , भीगे चुंदरिया  मोर........ 








Monday, 29 October 2018

POEM ON PULWAMA SAHEED SIYASAT AUR SAINIK -HINDI POEM ON PULWAMA SAHEED BY SUNIL AGRAHARI- -सियासत और सैनिक

   






*****सियासत और सैनिक *****


पुलवामा शहीदों  को 
शत शत नमन.  . . . . . . . . .  .   

मौत होती सैनिकों  की,
दुश्मनों की गोली से एकबार ,
वीभत्स मौत तो होती है 
नेताओं की बोली से बार बार, 

बैठ सुरक्षा  घेरे में 
सैनिको पर ऊँगली उठाते हो ,
सियासत शहीदों पर कर के 
खुद को देश भक्त बताते हो, 

सीमा पर जंग करने की 
हिम्मत हो तो आओ एक बार ,
दिल दिमाग फट जायेगा ,
सुन कर मौत की चीख पुकार ,
सियासत तेरी चमकती रहे 
पैदा करते हो पत्थर मार ,

शहीदी तोहफ़े त्योहारों पर 
हम कफ़न ओढ़ घर लाते है ,
आँसू वाले खारे शरबत  
घरवाले पी जाते है ,

हर पल ऐश से जीने को 
तुम घर से रोज़ निकलते हो ,
ठंडी हवा के झोंकों में 
सुकून की साँसे लेते हो, 
जब चाहे जहाँ चाहे 
तुम करते लीला मंगल ,
चौबीसों घंटे मौत से हम 
जंगल में करते दंगल ,
चैन से तुम घर सो सको 
हम ख़ुशी से मर के जीते है ,
तेरी नमक हराम बातों से 
गहरे ज़ख्मो को सीते हैं ,

मेरे माँ बाप पत्नी और बच्चे 
करते रहते हैं  इंतज़ार ,
मिलने का वादा उनसे 
टूट जाता है बार बार  ,

कैसे कहूँ सुनील, 
शहीद हुए हम बॉर्डर पर 
लाशें ग़ुम  हुई  कितनी बार ,
शहीद की फोटो खबरें बन कर   
बिकते घर घर गली बाज़ार ,
घाव खून बदन के टुकड़े  
आते टी वी के खबरों में,
बहुत ज़्यादा ढूढ़ मची तो 
मिल जाते  है हम कब्रों में,
गया था  ज़िंदा घर से  मैं 
वापस आया बन कर अखबार ,
रह गई मन में एक कसक
काश मिलता सब से एक बार ,
नेताओं की नीच सियासत से 
श्मशान बना मेरा घर द्वार ,
हवन सामग्री बन हम जलते हैं 
नेताओं का होता रहा  उद्धार। ....... 











Poem on life's jiwan sacchai , SACH JHOOTH HINDI POEM ON TRUE AND FALSE- BY SUNIL AGRAHARI-सच झूठ






*****सच झूठ *****

काले को काला मत कहना ,
लोगो को बुरा लग जायेगा ,
गलती से सच को मत बोलो, 
तेरा वक़्त बुरा आ जायेगा ,
आईने में देख आँखों को  
कुछ पल को मै वही ठहर गया 
खुदा ने सब की आँखों में 
सच झूठ का रंग भर दिया

झूठ की तस्दीक़ के लिए 
पुतली काली कर दिया 
फिर सच का रंग सफ़ेद 
चारो तरफ फैला दिया 
सोचने समझने का जिम्मा 
हम इंसानो को ही दे  दिया 
की 
देखे हम काला, या देखे सफ़ेद 
देखे हम सच , या देखें फरेब 
फिर 
वकील साहब की ड्रेस पर  
ध्यान मेरा गया ,
काले सफ़ेद का भेद  मुझे 
समझ आ गया ,
वकील साहब ने सफ़ेद शर्ट के ऊपर 
काला कोट पहन रक्खा है ,
जैसे सच को झूठ ने ज़ोरों से जकड रक्खा है , 
भला हो उस छोटी सी कण्ठ लगोंट (टाई ) का 
जिसने सच्चाई की आवाज़ का परचम 
गले से पकड़ रक्खा है ,
क्यों की एक दिन 
जीत सच्चाई की ही होती है 
ये हम सब को  बता रक्खा है।            16 /09 /2018 









Sunday, 21 October 2018

HINDI KAVITA ON PUNJAB DASHAHARA -पंजाब का रावण


अमृतसर दशहरा के रावण दहन रेल हादसा में मारे गए लोगों को मेरी श्रधांजलि कविता । 

HINDI KAVITA ON PUNJAB DASHAHARA 

*****पंजाब का रावण *****  १९ /१०/२०१८  night 11pm

रावण की मौत का जश्न मानाने 
लोग घर से साबुत आये थे ,
रावण जल कर ख़ाक हुआ
अब वो टुकड़ो में वापस जाएंगे 
वो नेता फिर बच जायेंगे 
फिर मुआवज़ा बट जायेगा 
ज़ख्मों पर मरहम लग जायेगा 
सियासत गरम हो जाएगी 
थोड़ी राजनीत हो जाएगी 
इल्जामों की बारिश आ जाएगी 
जाँच बिठा दी जाएगी 
जश्न मानाने आये थे 
मौत खरीद ले जायेंगे 
लेकिन वो शिकार हादसों का वोटर
 फिर वापस कभी ना आएगा 
ऐ सुनील 
फिर से दशहरा आएगा 
रावण  फिर जल जायेगा 
ऐसे हादसों का रावण 
फिर ज़िंदा बच जायेगा 
कोई अनाथ हो जायेगा
कहीं राशन रुक जायेगा 
कोई स्कूल फ़ीस रह जाएगी 
कहीं इंतज़ार रह जायेगा 
कितने किस्से हुए दफ़न 
ये भी दफ़न हो जायेगा 
लेकिन वो शिकार हादसों का वोटर
फिर वापस कभी ना आएगा 

Saturday, 6 October 2018


SDG LINK


https://www.un.org/sustainabledevelopment/sustainable-development-goals/

Friday, 5 October 2018

HINDI POEM ON life's jiwan, zindagi , KHILONE KI DUKAN - HINDI POEM ON GOD'S CREATION-BY SUNIL AGRAHARI खिलौने की दुकान






****खिलौने की दुकान****

सब से ऊंचा पहाड़ देखा 
सब से लम्बी नदी को देखा 
सागर विशाल फैला देखा 
लम्बी ऊंची ईमारत देखा 
तैरता बड़ा जहाज़ देखा 
ऊंचे कद के जानवर देखा 
लम्बे चौड़े रोड को देखा 
बस ट्रक कार को भागते देखा 
ऊंचे पेड़ के जंगल  देखा 
पहाड़ बर्फ के समुन्दर देखा 
ये सब मैंने कोरी आँख से 
ज़मी पे रहते रहते देखा 
जहाज से उड़ कर आसमान से 
सारी धरती फिर से देखा 
कहे सुनील बड़े अचरज से 
करामात ऊपर वाले की 
सब कुछ अदना बौना देखा ,
बड़ा नहीं कोई ख़ुदा से बढ़ कर 
ग़ुरूर को गर्त में जाते देखा ,
चकाचौंध दुनियाँ को महज़ 
खिलौने की दुकान सी देखा।    १४/०९/२०१८