*राजनीति-- राज*
राजनीति का राज ,
कोई कह नही सकता ।
बिना सियासत जीवन में ,
कोई रह नही सकता ।।
वर्चस्व रहे कायम मेरा
राजनीति करवाती है ,
मैं ही मै की चाहत में
आपस मैं लड़वती है ,
कब तक कौन है किसका
कोई कह नही सकता,
इसके बिन जीवन में ,
कोई रह नही सकता ।।
राजनीत है जहां नहीं,
पशुओं में इंसा है दिखता,
जैसे ही आई राजनीत ,
इंसान पशु सा है दिखता,
कौन है आदम कौन पशु,
कोई कह नही सकता,
इसके बिन जीवन में ,
कोई रह नही सकता ।।
करम वो बिच्छू सा करता,
सियासत में कोई सगा नही,
कोई जिंदा मुर्दा बचा नही ,
जिसको इसने ठगा नही ,
कहां पे हो जाए राजनीति,
कोई जान नही सकता ,
इसके बिन जीवन में ,
कोई रह नही सकता।।
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