Wednesday 22 August 2012

AEHSAAS EK MUHABBAT अहसास एक मुहब्बत - कविता SUNIL AGRAHARI

                                   

 

हाँ मै तुम्हें  पाना चाहता हूँ ,
क्यों  की मै तुमको चाहता हूँ ,
उस पत्थर की तरह ,जिसे टूटने का डर  न हो ,
तुम्हारी उन नज़रों का शुक्रिया ,
जिसने पत्थरो  को भीड़ से निकला हमें  ,
परखी जौहरी सी नज़रो नें ,
हमें मामूली पत्थर से नायाब नगीना बना दिया ,
इस पत्थर को भी इंतजार  था ,
उस जौहरी का , जो इस पत्थर का दीवाना हो ,
तो ये पत्थर क्यों न  चाहे उस जौहरी को ,
जिसने उसे एक नाम दिया ,मालिक बना अनाथ का ,
दीवाने खरीदार पैदा किये ,
इस बेवफा बाज़ार में,
तुम्हारी मुहब्बत को उस हवा की तरह ,
अहसास करता हूँ , जो दिखाई नहीं देती ,
तुम्हें छू कर जो हवा आती है ,
वो तुम्हारे पास होने का अहसास दिला जाती है ,
दुनियां की हर खूबसूरत चीज़ में तुमको देखता हूँ ,
हर मदहोश करने वाली
खुशबू में तुमको अहसास करता हूँ ,
हकीकत में होते हुवे भी उस ख्वाब की तरह हो ,
जो याद में तब्दील हो जाती है ,
आफ़ताब की रौशनी की गर्मीं में ,
तुम्हारे उम्र को एहसास करता हूँ ,
माहताब की धवल चांदनी में 
तुम्हारी वफ़ा को देखता हूँ ,
भोर के आगोश में मीठी नींद की तरह 
तुम्हारे बाँहों में मिले सुकून को पाता हूँ ,
दोपहर के सन्नाटे में 
तुम्हारे चाहत की गंभीरता को पाता  हूँ ,
शाम के सुहानेपन में 
तुम्हारे जुल्फों के नर्म साये को अहसास करता हूँ,
हर अच्छी सोच में पाता  हूँ तुम्हें ,
हर अच्छे अल्फाज़ का मतलब हो तुम ,
ग़ज़ल शेर शायरी की मिठास हो तुम ,
हमारे और खुदा  के बीच की सीढ़ी  हो तुम .....
इसी लिए चाहता  हूँ तुमको ,
दूर हो के भी तुम मेरे पास हो ,
यही अहसास करता हूँ
तुम्हें पास पाता  हूँ ,
यही हकीकत है ,
तुम्ही मुहब्बत हो ,
तुम्हें ही
पाना चाहता
हूँ  

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