हाँ मै तुम्हें पाना चाहता हूँ ,
क्यों की मै तुमको चाहता हूँ ,
उस पत्थर की तरह ,जिसे टूटने का डर न हो ,
तुम्हारी उन नज़रों का शुक्रिया ,
जिसने पत्थरो को भीड़ से निकला हमें ,
परखी जौहरी सी नज़रो नें ,
हमें मामूली पत्थर से नायाब नगीना बना दिया ,
इस पत्थर को भी इंतजार था ,
उस जौहरी का , जो इस पत्थर का दीवाना हो ,
तो ये पत्थर क्यों न चाहे उस जौहरी को ,
जिसने उसे एक नाम दिया ,मालिक बना अनाथ का ,
दीवाने खरीदार पैदा किये ,
इस बेवफा बाज़ार में,
तुम्हारी मुहब्बत को उस हवा की तरह ,
अहसास करता हूँ , जो दिखाई नहीं देती ,
तुम्हें छू कर जो हवा आती है ,
वो तुम्हारे पास होने का अहसास दिला जाती है ,
दुनियां की हर खूबसूरत चीज़ में तुमको देखता हूँ ,
हर मदहोश करने वाली
खुशबू में तुमको अहसास करता हूँ ,
हकीकत में होते हुवे भी उस ख्वाब की तरह हो ,
जो याद में तब्दील हो जाती है ,
आफ़ताब की रौशनी की गर्मीं में ,
तुम्हारे उम्र को एहसास करता हूँ ,
माहताब की धवल चांदनी में
तुम्हारी वफ़ा को देखता हूँ ,
भोर के आगोश में मीठी नींद की तरह
भोर के आगोश में मीठी नींद की तरह
तुम्हारे बाँहों में मिले सुकून को पाता हूँ ,
दोपहर के सन्नाटे में
दोपहर के सन्नाटे में
तुम्हारे चाहत की गंभीरता को पाता हूँ ,
शाम के सुहानेपन में
शाम के सुहानेपन में
तुम्हारे जुल्फों के नर्म साये को अहसास करता हूँ,
हर अच्छी सोच में पाता हूँ तुम्हें ,
हर अच्छे अल्फाज़ का मतलब हो तुम ,
ग़ज़ल शेर शायरी की मिठास हो तुम ,
हमारे और खुदा के बीच की सीढ़ी हो तुम .....
इसी लिए चाहता हूँ तुमको ,
दूर हो के भी तुम मेरे पास हो ,
हर अच्छी सोच में पाता हूँ तुम्हें ,
हर अच्छे अल्फाज़ का मतलब हो तुम ,
ग़ज़ल शेर शायरी की मिठास हो तुम ,
हमारे और खुदा के बीच की सीढ़ी हो तुम .....
इसी लिए चाहता हूँ तुमको ,
दूर हो के भी तुम मेरे पास हो ,
यही अहसास करता हूँ
तुम्हें पास पाता हूँ ,
यही हकीकत है ,
तुम्ही मुहब्बत हो ,
तुम्हें ही
पाना चाहता
हूँ
तुम्हें पास पाता हूँ ,
यही हकीकत है ,
तुम्ही मुहब्बत हो ,
तुम्हें ही
पाना चाहता
हूँ
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