Thursday 23 August 2012

PAHLI BAAR EK MUHABBAT KAVITA पहली बार एक मुहब्बत कविता - FEELINGS OF LOVER POEM , POEM ON LOVE BY SUNIL AGRAHARI

                                    


 

जब तुम्हें पहली बार देखा था , तो ऐसा लगा ....
क्या तुम वही हो ?
जिसकी तलाश हमें उस वक्त से है ,
जिस वक्त हमारे दिल  में,
 तन्हाई ने उथल पुथल मचाई   थी  ,
उस पल हमें लगा था ,शायद  हमारे दिल को
किसी ऐसे सहारे की ज़रूरत है,  जिसे हमारे मिलने पर लगे की ,
शयद उसे भी हमारे सहारे की ज़रूरत थी,
यूँ तो हजारों दिल ने हमारी तन्हाई को मिटाना चाहा ,
लकिन ....
उनकी कोशिश नाकाम रही ......
लकिन जब तुमको देखा ,तो बिना कोशिश के जैसे
आफ़ताब के आने पर माहताब गुम हो जाता है
वैसे ही तुम्हारे रौशनी से तन्हाई की तीरगी गुम हो गई  ,
क्या तुम ही हो हमारी ग़म -ए -हयात ....
ख़त्म करने वाली ...?
मुझे ऐसा लगता है ,पता नहीं तुम क्या सोचती हो ,
हमारे ज़ज्बात तो बेकाबू हो जाते है ,
तुम्हारी परछाई से ....
सोचता हूँ तुमसे कितनी बाते कर लूँ, मगर
तुम्हें जब हकीकत में पता हूँ ,
सांसे तेज़ नदी की मौजो की तरह चल पड़ती है ,
धड़कने तेज़ हवा के झोंके से हिलती हुई 
कजोर पत्ती सी बढ जाती है ,
लब , जुबान ऐसे खामोश हो जाते है
जैसे तराशी  हुई बुत ,
जो खुद नहीं बोलती ,उसके भाव ही उसकी जुबान होते है ,
उस वक्त तुम हमारे चेहरे के भाव को पढ़  लेते हो ,
और गहरे सागर के पानी की तरह जो हौले हौले हिलता रहता है ,
धीरे से मुस्कुरा देते हो ,
क्या तुम भी वही महसूस करते  हो ?
जो हम अहसास करते है ,
या हमें भी और दीवानों की तरह देख कर
हमारी दीवानगी पर हँसते हो ,
तो तुम शायद बड़ी कलाकार हो
जिसके पास हिम्मत है, 
किसी की तन्हाई पर हंसाने के लिए ,
जब की तुम भी तन्हां हो ,
क्या तुमको तन्हाई नहीं सताती ...?
आज नहीं तो कल ,जिस ज़माने से डरती हो
वही मजबूर करेगा ....एक साथी के लिए ,
उस वक्त  तुम हमें याद करो या न करो लेकिन
मै तुम्हारी तन्हाई पर तुम्हारी तरह नहीं हसूंगा ,
बढ़ कर हाथ पकड़ लूँगा  उस बेल की तरह ,
जिसको बढ़ने के लिए एक सहारे की ज़रूरत होती है ...मजबूरी नहीं ,
उसी तरह इस वक्त तुम्हारा साथ चाहिए क्यों की ,
मै  तुमको पाना चाहता हूँ ........
और शायद तुम समझती  भी हो ..
लकिन तुमको  ख़ामोशी की ज़ंजीर ने जकड़ रखा है ,
एक दिन तुम इस ज़ंजीर को इस तरह से तोड़ोगी
जिस तरह ..एक  बीज जब पौधा बनता है 
तो पत्थर भी तोड़ कर बहार आ जाता है ,
हमें इंतजार है उस वक्त का
जब तुम्हारी चाहत तुम्हारे सीने से निकल कर
जुबां के रस्ते से होते हुवे ,लब  के दरवाज़े पर अहिस्ता अहिस्ता
आकर ,
शरमाते हुवे अपने ज़ज्बाती सैलाब, हमारे सीने के दरिया में
ठहरे हुवे पानी को हौले हौले से हिला कर हलचल मचा देगी ,
उस पल का इंतजार
हमें साँसे उधार ले कर भी करना पड़े तो
करूँगा ,
क्यों की हमें
तुमपर
भरोसा
है ,
जब तुमको देखा था ,तो ऐसा ही लगा था
सच में ............





1 comment:

  1. लकिन जब तुमको देखा ,तो बिना कोशिश के जैसे
    आफ़ताब के आने पर माहताब गुम हो जाता है.....

    Kya baat hai janab...rooh nikal kar rakh di aapne.
    हमसफ़र सच्चाई है या हमसफ़र ख्याल है?
    ऐसा हमसफ़र मिले तो ज़िन्दगी खुश हाल है I

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