Thursday 20 March 2014

Dil dimak ki hindi kavita @sunill agrahari







…… चंचल गहराई ....


बिन मांझी कि कश्ती सा ये मन ,
साहिल की चिंता किये बगैर ,
कुछ कर गुजरने कि चाह में ,
मौजों कि धार सी 
कलरव अठखेल करती 
अग्रसर हो रही थी ,
देख ये सब दिल
ठठेर कि भाथी  सा धुकधुकी कर
असहज हो रहा था ,
मुस्कुराऊ ,सहमुू ,करू चिंता 
या छोड़ दूं वक्त पर 
कि मन क्यों इतना चंचल है 
छोटी नदी कि धार सी ……?
गलत है या सही , एक बात तो है 
मन के अंदर हिम्मत है, 
चुनौती स्वीकार करने  कीं  
तो क्या दिल बुजदिल है ? 
नहीं। .......  शायद परिपक्व है ,
तो क्या मन अपरिपक्व है   ?
नहीं  ये उसका स्वभाव है ,
दिल गहरा है ,सागर सा शांता है ,
और मन  छोटी नदियों  सा छिछला ,  
नवजात शिशु सा पवित्र है ,
समस्याओं से अन्जान , 
चंचलतापूर्ण निर्भीक आगे बढता है 
मन  जीतता है तो दिल ख़ुशी 
के सागर सा भर जाता है 
और असफल होता है तो 
मिल जाता है सागर  से दिल 
कि गहराई  कि बाँहों में 
बिन मांझी कि कश्ती सा ये मन ,
साहिल की चिंता किये बगैर ,
कुछ कर गुजरने कि चाह में ,
मौजों कि धार सी 
कलरव अठखेल करती अग्रसर हो रही है ……………………। 

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