Friday 30 May 2014

चले गए -कविता , hindi poem for lovers

     


        ............ 23 /05 /2014 ……… 


पूरी  सुनी न  बात  तुम उठ  कर चले गए ,
आधे रहे जज़्बात , तुम उठ कर चले गए ,

हर  मौसम  भी  पलट  कर  आता  है एक  बार,
वादा न किया आने का ,तुम उठ कर चले गए , 
पूरी  सुनी न  बात ………………… 

चाहत में हुवे थे ग़ुलाम ,  अब तक न रिहा हुवे ,
सांसों की डोर ना टूटी , तुम उठ कर चले गए ,
पूरी  सुनी न  बात   ……………… 

चाहत तो क़ुबूल किया था ,संग रहने का था करार ,
फिर किये बिना इंकार , तुम उठ कर चले गए ,
पूरी  सुनी न  बात  ......................... 

जीते न जिया महसूस किया , मरने पे तो छू लेना  ,
ऐसे भी  क्या  नाराज़  के , तुम  उठ  कर चले गए ,
पूरी  सुनी न  बात  …………………।








{अफसाना  }

Thursday 29 May 2014

Kavita utpatti hindi kavita ,कविता उत्पत्ति , birth of poem , कविता की कहानी शब्दों की जुबानी - सुनील अग्रहरि




आज रात एक नवयौवना रुपी शब्द 
मझे अपनी ओर आकर्षित करते हुवे 
मेरे अवचेतन मस्तिष्क में आ कर 
मेरे शाब्दिक यौवन को जागृत करने लगी ,
मै उनको चेतन अवचेतन में महसूस करते
कशमकश कर करवट बदल रहा था ,
मुझे लगा ये  नवयौवना रुपी शब्द मुझसे कुछ कहना चाहती  है ,
उनकी बात सुनी तो महसूस  हुवा ,वो मुझसे  प्रेमालाप कर 
एक नवजात कविता को इस सृष्टि में अवतरित करना चाहती है ,
ये सुन मै उनके प्रेमपाश से बाहर न आ  सका 
और उन शब्दों का आलिंगन करने लगा ,
दीवार घडी की सूई की  टिक टिक ताल से  वातावरण 
संगीतमय रतिपूर्ण हो रहा था ,
इनसे प्रभावित मंत्रमुग्ध कलम काग़ज़ पर इस तरह चल 
रही थी जैसे दो दिल वार्तालाप कर मिल रहे हों , 
भावनाएं  शब्द से वाक्य  बन कलम के माध्यम से
 मानो कागज़  को बार बार चूम रही हों  
और कह रही हों ....... 
ऐ कलम इस कोरे काग़ज़ को भर दो
अपने हसीन जज़्बात रुपी शब्द से
और कभी ख़त्म न हो   तुम्हारे भावनाओ का शाब्दिक यौवन 
कलम शब्द दर शब्द चूमता आगे बढ़ता रहा ,
लेकिन प्रकृति का नियम ज्वर चढ़ता है तो उतरता भी है ,
निशा खत्म , भोर शनैः शनैः दस्तक देने लगी ,
कलम के शाब्दिक भाव सुस्त पड़ने लगी ,
अथक परिश्रम प्रेमाचार और निरंतर भावनापूर्ण  सोच से



शब्द  निषेचित हो कर कविता मस्तिष्क के गर्भ में प्रविष्ट हो चुकी थी ,
और मै जाग्रत हो कर हक़ीक़त में  कलम उठता हूँ   
शुरुआत होती है प्रसववेदना  ,
 नवजात कविता के जन्म का  वक़्त आता है  
कलम पूरी ताकत से ज़ोर लगा शब्दों को कागज़ पे उकेरने लगता है   
थोड़ी ही देर में  मासूम सुन्दर कोमल सी कविता कलरव करती 
अपना आकार ले इस श्रिष्टि में अवतरित हो  चुकी होती है……। 

वस्तुतः भावपूर्ण शब्द तो हसींन वादियों में  बिखरे हुवे है ,
आप जिस भाव में होते हो , वैसे ही शब्द 
आप के मष्तिष्क के उर्वरक शाब्दिक यौवन शक्ति को जागृत कर 
मस्तिष्क के गर्भ में प्रवेश करते  है,
और  बाद प्रसवपीड़ा के  उत्पत्ति होती है 
एक सुन्दर सुबह की नर्म कोमल घास पर 
ओस की बूँद सी मासूम कविता   .......... 

26 /05 /2014



Monday 26 May 2014

kalyoug maya hindi poem @sunil agrahari

            ……… कलयुग माया   18/04 /2014 ……… 
















चित्र ये विचित्र है ,भाव का अभाव है ,
रक्त से विरक्त है ,अश्रु का अभाव है ,

काल ये अकाल सा , भाल पे उभार है  ,
सत्य और असत्य है ,हार की बहार है 


धर्म से अधर्म है , आधार निराधार है ,
अजन्मे जैसे मत जियो ,जन्म से ही  धार है ,

नदी के जल से ताल है , ताल ही सुखान्त  है ,
बेताल हो तो ज़िन्दगी ,अन्त  ही दुखान्त  है ,

सुकर्म जैसे कर्म से ,फैलती सुगन्ध है ,
अकर्म स्थिर जल से गन्ध फैलती दुर्गन्ध है

 गंवार नागँवार है , भार  सा  आभार है 
स्वभाव जल सा हो तो गंवार  भी स्वीकार है,

मोह माया युक्त प्राणी ,फरेब में शुमार है ,
ताण्डव मृत रिश्तों का ,हवस  बेशुमार है 


भ्रम से भ्रमित बुद्दिजीवी ,वीभत्स अस्त व्यस्त है 
निराश  आस  में भरी , विश्वास जैसे अस्त है ,

जीव जन्तु संख्य असख्य ,सब का अन्त अनन्त  है  ,
प्रकाश भय  से व्याप्त ग्रसित पूर्ण दिग  दिगंत  है ,

क्षत विक्षत अस्थियां , चीख और पुकार है ,
लोभ लिप्त मन अशांत ,मद्य का खुमार है ,


प्रचंड चण्ड तेज है , वेग आवेग चाल है ,
लहू लुहान दृष्टि है , छिन्न भिन्न हाल है ,

बच  सकेगा न कोई , जो न सुधारी  आदतें,
वक्त कलयुगी की जैसे आ रही है आहटें ,

१८/०५/२०१४ 




Sunday 18 May 2014

Teer hindi poem, contemporary hindi poem , , तीर - HINDI BEST POEM ON TEER BY SUNIL AGRAHARI

Published in  Mauritius 

Magazine - Akrosh

April 19 

.........तीर  17/05/2014  .........


जी हाँ मैं तीर हूँ ,आप ने सही सुना ,
कभी शब्दों का , कभी औजारो का ,
कभी मिजाज़ो का , तो कभी आवाज़ो  का ,
किसने बनाया पता नही ,
किसने नाम दिया पता नहीं ,

लेकिन       लेकिन      लेकिन 
मै इतना ज्यादा उपयोगी हूँ   ?
आश्चर्यचकित हूँ  … अपनी प्रतिभा से ,
इस कायनात का हर जीवित शै 
मुझको ज़रूर उपयोग करता है ,
चाहे  अपनी अस्मिता  बचानी हो ,
या किसी की मिटानी  हो ,
कभी चला सत्य पर ,
कभी चला असत्य पर ,
कभी चला जुबान से , शब्दों का बाण बन कर ,
कभी चला कमान  से , दुश्मन पे तीर बन कर ,
निशाने पर लगते ही विपक्ष ढेर होता है ,
तीर की वफ़ाई पर पक्ष शेर होता है ,

लेकिन       लेकिन      लेकिन ,
मै हूँ ग़ुलाम , बात ये है सच्ची 
पर मेरी किस्मत तब तक है अच्छी 
जब तक तरकश में हूँ पड़ा सोता ,
हकीक़त में मै कई  बार हूँ  रोता ,
कैसे कहूँ ,कितना कहूँ ,  समझ नहीं आता ,
कैसी भूल कर दी  ,  ओ मेरे जन्मदाता ,
इक बार  चल दिया तो वापस नहीं आता ,
कहता हूँ दिल की बात ,  मेरा नाम तीर है ,
मेरे भी दिल में उठती  पीर  है ,

हर अच्छी बुरी भावनाओं को ढोता हूँ 

मै चलूँ चाहे जिसपर ,मरता  घायल  मै ही  हूँ ,
इस लिए कहता हूँ ,मुझे चलाने  वालों ,
ग़र  ज्ञान का कमान हो, तो तीर तरकश पालो ,
वर्ना , मुझको  छूने से पहले , सोचो कई बार ,
मै आऊँगा ना वापस जो चला एक बार ,
जी हाँ मै तीर हूँ    ………





इतिहास गवाह है.… पृथ्वी राज चौहान की एक घटना  जिसमे वो शब्द भेदी  बाण चलाते है  मुग़ल शासक मुहम्मद गोरी  पर तब उनकी दोनों आँख निकाल  दी गई थी ,  उनके वफादार "कवि चाँद बरदाई " ने  उस वक्त  दोहे के रूप में कहा था.…
   
  " चार हाथ चौबीस गज़ ,अंगुल अस्ट प्रमाण ,
          ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान ''…
इस वाक्य  ने तीर का  काम किया और फिर कमान से तीर निकला .......