Tuesday 19 May 2015

Poem on politics , GHAR WAPSI HINDI POEM ON POLITICAL PARTIES , BAD POLITICS घर वापसी - SUNIL AGRAHARI

 

       
........घर वापसी.......(घर = धर्म )19/05/2015

यहाँ पर घर का मतलब है धर्म , घर वापसी मतलब धर्म परिवर्तन या जिन्होंने धर्म बदल लिया था किसी भी कारण से उनको फिर पुराने  धर्म में वापसी के लिए प्रेरित करना और मैं क्या सोचत हूँ इस मुद्दे पर  वो इस कविता में है । 


कहते है करो घर वापसी,
रक्खा है तुम्हारे घर में क्या ?
इस घर से जाना  है इक दिन,
मौत से बढ़ कर सच है क्या ?कहते है करो घर … 

इक घर बताओ ऐसा जो ,

जिसमे कोई बीमार ना हो ,
घर में भीड़ बढ़ाने से,
बीमारी ठीक होगी क्या ?कहते है करो घर.…  

एक भी घर ऐसा नहीं ,

जहाँ लोग सुकूँ  से रहते हों ,
झाँक  ज़रा अपने घर में ,
देख सब चैन रहते है क्या ?कहते है करो घर.…

पहले से तेरे घर में है जो ,

तू दुःख उनके सुनता ही नहीं ,
दुजो के घर वापसी से ,
दुःख सब के दूर होंगे क्या ?कहते है करो घर.…

पहले ही तेरे घर में , 

कितने भूखे बैठे हैं ,
उनका खाना मुझको  दे ,
उनको भूखा मरेगा क्या ?कहते है करो घर.…

हर बारिश में कितने सर ,

बिन छत के गीले होते हैं ,
पहले उनको छत  देदे,
फिर देखूँ  तेरे घर है क्या ,कहते है करो घर.…

हर घर में बच्चे गली गली ,

निर्वस्त्र घूमते फिरते  हैं 
पहले उनके तन ढक दे ,
फिर देखूँ मुझे पहनाओगे क्या ?कहते है करो घर.…

खुद सन्यासी बन बैठे ,

जनता को फरमान दिया ,
छै बच्चे पैदा करो 
एक से घर का होगा क्या ?कहते है करो घर.…

ऐसे घर गद्दारों को ,

घर वाले ही रुसवा करें ,
ऐसी घटिया सोच से ,
घर का भला हुवा है क्या ?कहते है करो घर.…

सब के घर एक से है ,

सब के सुख दुःख एक से है ,
समस्या तो हमारी सोच में है ,
घर बदल के होगा क्या ?कहते है करो घर.…












Monday 18 May 2015

POEM ON NEWS PAPER , AKHBAAR HINDI POEM ON NEWS PAPER BY SUNIL AGRAHARI

…अख़बार ....१८/०५/२०१५ 

मैं हूँ अख़बार ,मैं हूँ अख़बार ,
सब को सुबह रहता है मेरा इंतज़ार ,
मेरे बिन चाय का ज़ायका है बेकार,
मैं हूँ नाचीज़ लोग पढ़ते बार बार 

ज़मी के अंदर या ज़मी के बाहर ,
आसमां के अंदर या आसमां के बाहर ,
समुन्दर के अंदर समुन्दर के बाहर  ,
जंगल से तेंदुआ कैसे आया बाहर ,
मुझमे है छपती बाते हज़ार,
 मैं हूँ अख़बार ……

कहीं कोई भागा , गया कोई पकड़ा ,
ग़रीब और भूखे को चोर कह के पकड़ा ,
बिना बात के धक्का मुक्की और झगड़ा ,
घूसखोर साहब के घर छापा तगड़ा ,
खट्टी मीठी खबरों का मै  हूँ बाजार ,
 मैं हूँ अख़बार ……

कहाँ आई बाढ़ ,कौन  बह गया,
कहाँ आया भूकम्प ,कौन  दब गया।,
बरसात और सूखे से कौन मर गया ,
बिल्ली की गोद  में चूहा सो गया ,
सुख दुःख की खबरों का मै हूँ अम्बार , 
मैं हूँ अख़बार …… 

इंसान बिक गया मिट्टी के भाव में ,
मिट्टी बिक गई सोने के भाव में ,
जीरा बिक गया  हीरे के भाव में ,
पेट्रोल जल गया मंदी के भाव में ,
खबर पढ़ के मेरी, होती है टकरार ,
 मैं हूँ अख़बार ……

सत्ता विपक्ष में हूँ दोनों  का प्यारा ,
सरकारी ठेकों का मै हूँ पिटारा ,
विज्ञापन की दुनियाँ का मै हूँ सहारा ,
खबर सच छपे तो हिल गई सरकार ,
मैं हूँ अख़बार ……


फिल्मो के हीरो  हीरोइन की सूरत ,
चटपटी खबरें भी लोगों की ज़रूरत ,
फैशन के दुनियाँ की भूतों की मूरत ,
फोटो तो ऐसी की शकल है न सीरत ,
मनोरंजन की दुनियां से कराता सरोकार ,
मैं हूँ अख़बार ……


कहाँ कौन रूठा कहाँ कौन छूटा ,
गरीबों का खाना अमीरों का जूठा,
नेता को पीटा सर किसका फूटा  ,
सरकारी अफसर ठग फर्जी झूठा ,
खबरों में बिक जाता है गवाँर ,
मैं हूँ अख़बार ……

सोने चांदी का भाव चढ़ा कितना टूटा ,

कौन सी कंपनी ने ग्राहकों को लूटा ,
नकली माल बेच  जेल से कौन छूटा ,
ज़मीन किसने बेचा कर के वादा झूठा ,
खबर बिक रहे बिक रहा है बाजार 

मैं हूँ अख़बार ……मैं हूँ अख़बार ……

मैं हूँ अख़बार ……मैं हूँ अख़बार ……







Sunday 17 May 2015

Vyngya kavita , Batton HINDI POEM ON BUTTON BY SUNIL AGRAHARI

    

            



...बटन ...१६/०५/२०१५  

बटन भी क्या  चीज़ है 
लगे कपड़े में तो तन ढकता  है,
टूट जाये जगह से तो इज़्ज़त पे आ बनता है ,
आज कल तो बटन का चलन कुछ ज्यादा है ,
सारी दुनियाँ बटन से चलने पर आमादा  है ,

गलत बटन दबाते ही मुसीबत खड़ी  होती है ,
बटनों की भी अपनी समस्या बड़ी होती है ,
बटन मरते दम  तक अपना काम करता है ,
अटके एक धागे से भी बटन इज़्ज़त बचाता  है ,

रिमोट का बटन तो घायल हो कर भी चलता है ,
कमजोर बैटरी अपनी सजा , बटन पे मढ़ता है ,
कम्प्यूटर कीबोर्ड खुलते ही पटापट पिटता है ,
बटन टूट जाये तो ऑपरेटर और भी पीटता है ,

लिफ्ट में तो उंगली बटन के मुँह में घुस जाती है ,
मिक्सी को थोड़ा राहत है रह रह के दबाई जाती है ,
ठाठ बाठ एटीएम बटन के ए. सी रूम में रहता है ,
पैसों के संग रहता है पर २४ घंटे  दबता है ,

जब आया मोबाइल तो बटनों पे आफत आई ,
सच्ची हो या झूठी पर दब के सब से बात कराई ,
एंड्रॉएड टच स्क्रीन शुभ दिन राहत ले कर आया ,
दबना दबाना दूर हुवा , छू कर ही काम चलाया ,

कीमत तो बटन की कपड़ो में ही होती है ,
क्यों की बटन की डोर इज़्ज़त से जुड़ी  होती है ,
वरना बटन हो ख़राब तो गाली है मिलती ,
ठीक हो बटन तो फुर्सत काम से नहीं मिलती ,
आने वाला वक़्त है बटन के लिए भारी ,
बटनों पे आ रही  है बड़ी ज़िम्मेदारी ,
छूने से काम होगा , चलेगी दुनियाँ सारी ,
क्यों की  ....  
इंसानो से जुड़ गई है अब किस्मत हमारी …।  
इंसानो से जुड़ गई है अब किस्मत हमारी …।