Wednesday, 18 December 2019
सौदा खरा खरा
Saturday, 16 November 2019
Article on Contributions of Indian music- to promote Hindi language -हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय एवं सरल संगीत की भूमिका
Professor Harvindar
sing ji
professor and vocalist
Hindustani classical music
member of RAC at indian
council for cultural relation
air classical singer
हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय
एवं सरल संगीत की भूमिका
संगीत
तथा भाषा का साहित्य परस्पर पूरक है ,दोनों का प्रधान लक्ष्य भाव अभिव्यक्ति है एवं दोनों का
आधार स्वर तथा भाषा है, जिन भावों को संगीत द्वारा प्रकट नहीं किया जा सकता वो
भाषा द्वारा संभव होते है
और
जिन भावों को व्यक्त करने में भाषा असमर्थ होती है उन्हें संगीत द्वारा प्रकट किया जा
सकता है !
इसी
लिए कहा जा सकता है काव्य संगीत का अलंकार है ,संगीत रचना के सम्बन्ध में मान कौतुहल ग्रन्थ में कहा गया
है कि
श्रेष्ठ
गायक तथा रचयिता को व्याकरण, पिंगल , अलंकार , रस , भाव , देशाचार , लोकाचार के साथ शब्द ज्ञान में भी प्रवीण होना चाहिये !
इस
दृष्टि से भारतीय शास्त्रीय संगीत का हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में विशेष
योगदान रहा है, भारतीय शास्त्रीय संगीत की
एक लम्बी परम्परा रही है ,भारत वर्ष में मूल रूप से संगीत की दो पद्धतियां प्रचलित है , एक तो कर्नाटक या दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति और दूसरी उतर भारतीय
संगीत ,दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति
का
प्रचलन कर्णाटक,तमिलनाडु,तेलंगाना ,आंध्रा ,तथा केरल राज्यों में ही है लेकिन आज सम्पूर्ण भारत के साथ साथ दक्षिण भारत में भी हिंदी गायन की सभी
विधाएँ
बहुत
प्रचलित हो रही है , यहाँ पर भी देखा जाय तो
हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है।
सुनील- गुरु जी, कृपया हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में प्रमुख रूप से गई जाने
वाली
गायन
शैलियों के बारे कुछ बताएं।
गुरु जी -आज सम्पूर्ण भारत वर्ष में हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति
में प्रमुख रूप से गई जाने वाली गायन शैलीया ,ध्रुपद ,धमार, ख्याल, टप्पा ,तराना, सादरा ,ठुमरी, दादरा ,सरल संगीत , फिल्म संगीत इत्यादि हिन्दी भाषा को अपने में समाहित किये
हुए देश विदेश में सम्मान के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है।
हिन्दुस्तानी
संगीत में ध्रुपद धमार एवं ख्याल के विभिन्न घरानो और उससे सम्बंधित संगीतज्ञों ने अपनी
अमूल्य रचनाओं , बन्दिशों द्वारा हिन्दी भाषा तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र
में बहुमूल्य योगदान दिया है , हिन्दुस्तानी संगीत में शास्त्रीय गायन की भिन्न भिन्न
रचनाओं बंदिशों की भाषा ,हिन्दी ,उर्दू ,संस्कृत ,राजस्थानी , ब्रज , पंजाबी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओँ से सम्बंधित रही है लेकिन
इन सब में हिन्दी भाषा की रचनाये प्रमुख स्थान रखती है। इन हिन्दी रचनाओं को केवल
हिन्दी भाषी संगीतकार ही नहीं अपितु दूसरी भाषा के विभिन्न संगीत गायको में सीना-बा-सीना गाई तथा सिखाई जाती है।ख्याल गायन से पहले जब
ध्रुपद , धमार गायन शैली का बोलबाला
था तब भी उसकी समस्त रचनाये
हिन्दी भाषा में ही प्राप्ति होती है तथा आज भी ध्रुपद तथा धमार गायको द्वारा गई जाती है।
१८वी
शताब्दी के पूर्वार्ध में मुग़ल सम्राट
मुहम्मद शाह रंगीले
के दरबारी गायको सदारंग तथा
अदारंग आदि के सन्दर्भ में विशेषरूप से मिलता है जिन्होंने हज़ारो की संख्या में हिन्दी, ब्रजभाषा , पंजाबी भाषा
में
ख्याल की बंदिशों की रचना कर भारतीय शास्त्रीय संगीत विधा द्वारा हिन्दी भाषा की
उन्नति में श्रेष्ठ योगदान दिया।
हिन्दी
भाषाई
रचनाओं
को भारतीय साहित्य के प्रसंग में देखे तो इनमे हिंदी काव्य धारा की अमीर परंपरा
स्पस्ट रूप से झलकती है। भाषा के पक्ष में ये रचनाये हिन्दी काव्य की
महत्वपूर्ण कृतियां है तथा ये हिन्दी भाषायी शास्त्रीय गायन रचनाएँ विभिन्न
संगीतकारो द्वारा सदियों का सफर तय करते हुए परम्परा के रूप में आज हमारे तक
पहुंची है।
सुनील-
गुरु जी ,हिन्दी भाषा के प्रचार
प्रसार में
फिल्म
संगीत एक बड़ा माध्यम बन कर उभरा है , आप इसको किस तरह से देखते है ?
गुरु जी -आज संगीत कलाकारों के परस्पर आदान प्रदान
से हिन्दी भाषा में गाये जाने वाले ख्याल जहाँ पर क्षेत्रीय भाषाओं का बोलबाला है वहां तथा अन्य
सभी देशों में भी सुनने को मिलने लगे है ।
अगर हम विदेशो में हिन्दी की बात करे तो
पकिस्तान ,अफगानिस्तान , बांगला देश , भूटान,नेपाल, मॉरीशस , सूरीनाम त्रिनिदाद, अमरीका ,रूस ,जापान ,चीन, फिजी ,कनाडा , सिंगापोर जैसे देशों में हिन्दी सिखने और बोलने की प्रवृति बढ़ रही है और इन सब
के पीछे हिन्दी संगीत का बहुत बड़ा योगदान है , फिल्म संगीत पिछले ८ दशकों से हिन्दी प्रचार प्रसार में एक बड़ा माध्यम बन कर उभरा है , हिन्दी फिल्म के संवाद एवं
गीत सारी दुनिया में हिन्दी सिखने में मदद कर
रहे है ,लोग जाने अनजाने हिन्दी रूचि
अनुसार गीत गुनगुनाते है फिल्म
देखते है और कब संगीत के माध्यम से हिन्दी उनके जीवन में प्रवेश कर जाती है उन्हें
पता ही नहीं चलता।
ये वो लोग हैं जिनको हिन्दी भाषा नहीं आती लेकिन वो
हिन्दी गीत आनंद पूर्वक गाते है क्यों की उनको तो उस
गीत का संगीत अच्छा लगता है और वो व्यक्ति संगीत के माध्यम से हिन्दी
गीत शब्द साथ साथ बोलता है परिणाम,स्वरूप कुछ दिन बाद वो हिन्दी बोलने भी लगता है , ये संगीत का प्रभाव है, महत्वपूर्ण और सर्वसिद्ध बात ये है की हिन्दी
भाषा पूर्ण रूप से
वैज्ञानिक
भाषा है क्यों की हम जो बोलते है वही लिखते है और अगर ये
हिन्दी संगीत के साथ होता है तो व्यक्ति चमत्कारिक रूप से संगीत के साथ साथ हिन्दी
भी बहुत आसनी से बोलने ,समझने लग जाता है।
ये सारी बाते किताबी नहीं है अपितु ये मेरे संगीत जीवन के
सफर के सत्य अनुभव हैं , इस लिए मैं ये कह सकता हूँ
की हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में भारतीय शास्त्रीय एवं सरल संगीत का बहुत महान योगदान है।
सुनील अग्रहरी
Ahlcon international
school
delhi
हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय एवं सरल संगीत की भूमिका
सुनिल - हमारे देश की भाषा हिंदी है और विडम्बना ये है की अपने ही देश में हिंदी की स्थिति पहले बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन विभिन माध्यमों के द्वारा अब हिंदी भाषा की स्थिति अब पहल तुलना में कहाँ देखते है?
गुरु जी -जिस तरह साहित्य और समाज का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है ठीक उसी तरह भाषा और सभ्याचार का आपसी सम्बन्ध होता है , जैसे जैसे जीवन सभ्याचारक होता गया वैसे वैसे भाषा विकास करती गई।
संगीत तथा भाषा का साहित्य परस्पर पूरक है ,दोनों का प्रधान लक्ष्य भाव अभिव्यक्ति है एवं दोनों का आधार स्वर तथा भाषा है, जिन भावों को संगीत द्वारा प्रकट नहीं किया जा सकता वो भाषा द्वारा संभव होते है और जिन भावों को व्यक्त करने में भाषा असमर्थ होती है उन्हें संगीत द्वारा प्रकट किया जा सकता है !
इसी लिए कहा जा सकता है काव्य संगीत का अलंकार है ,संगीत रचना के सम्बन्ध में मान कौतुहल ग्रन्थ में कहा गया है कि श्रेष्ठ गायक तथा रचयिता को व्याकरण, पिंगल , अलंकार , रस , भाव , देशाचार , लोकाचार के साथ शब्द ज्ञान में भी प्रवीण होना चाहिये !
इस दृष्टि से भारतीय शास्त्रीय संगीत का हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में विशेष योगदान रहा है, भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक लम्बी परम्परा रही है ,भारत वर्ष में मूल रूप से संगीत की दो पद्धतियां प्रचलित है , एक तो कर्नाटक या दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति और दूसरी उतर भारतीय संगीत ,दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति का प्रचलन कर्णाटक,तमिलनाडु,तेलंगाना ,आंध्रा ,तथा केरल राज्यों में ही है लेकिन आज सम्पूर्ण भारत के साथ साथ दक्षिण भारत में भी हिंदी गायन की सभी विधाएँ बहुत प्रचलित हो रही है , यहाँ पर भी देखा जाय तो हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है।
हिन्दुस्तानी संगीत में ध्रुपद धमार एवं ख्याल के विभिन्न घरानो और उससे सम्बंधित संगीतज्ञों ने अपनी अमूल्य रचनाओं , बन्दिशों द्वारा हिन्दी भाषा तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया है , हिन्दुस्तानी संगीत में शास्त्रीय गायन की भिन्न भिन्न रचनाओं बंदिशों की भाषा ,हिन्दी ,उर्दू ,संस्कृत ,राजस्थानी , ब्रज , पंजाबी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओँ से सम्बंधित रही है लेकिन इन सब में हिन्दी भाषा की रचनाये प्रमुख स्थान रखती है। इन हिन्दी रचनाओं को केवल हिन्दी भाषी संगीतकार ही नहीं अपितु दूसरी भाषा के विभिन्न संगीत गायको में सीना-बा-सीना गाई तथा सिखाई जाती है।ख्याल गायन से पहले जब ध्रुपद , धमार गायन शैली का बोलबाला था तब भी उसकी समस्त रचनाये हिन्दी भाषा में ही प्राप्ति होती है तथा आज भी ध्रुपद तथा धमार गायको द्वारा गई जाती है।
१८वी शताब्दी के पूर्वार्ध में मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीले के दरबारी गायको सदारंग तथा अदारंग आदि के सन्दर्भ में विशेषरूप से मिलता है जिन्होंने हज़ारो की संख्या में हिन्दी, ब्रजभाषा , पंजाबी भाषा
में ख्याल की बंदिशों की रचना कर भारतीय शास्त्रीय संगीत विधा द्वारा हिन्दी भाषा की उन्नति में श्रेष्ठ योगदान दिया।
हिन्दी भाषाई रचनाओं को भारतीय साहित्य के प्रसंग में देखे तो इनमे हिंदी काव्य धारा की अमीर परंपरा स्पस्ट रूप से झलकती है। भाषा के पक्ष में ये रचनाये हिन्दी काव्य की महत्वपूर्ण कृतियां है तथा ये हिन्दी भाषायी शास्त्रीय गायन रचनाएँ विभिन्न संगीतकारो द्वारा सदियों का सफर तय करते हुए परम्परा के रूप में आज हमारे तक पहुंची है।
आज संगीत कलाकारों के परस्पर आदान प्रदान से हिन्दी भाषा में गाये जाने वाले ख्याल जहाँ पर क्षेत्रीय भाषाओं का बोलबाला है वहां तथा अन्य सभी देशों में भी सुनने को मिलने लगे है ।
ये वो लोग हैं जिनको हिन्दी भाषा नहीं आती लेकिन वो हिन्दी गीत आनंद पूर्वक गाते है क्यों की उनको तो उस गीत का संगीत अच्छा लगता है और वो व्यक्ति संगीत के माध्यम से हिन्दी गीत शब्द साथ साथ बोलता है परिणाम,स्वरूप कुछ दिन बाद वो हिन्दी बोलने भी लगता है , ये संगीत का प्रभाव है, महत्वपूर्ण और सर्वसिद्ध बात ये है की हिन्दी भाषा पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भाषा है क्यों की हम जो बोलते है वही लिखते है और अगर ये हिन्दी संगीत के साथ होता है तो व्यक्ति चमत्कारिक रूप से संगीत के साथ साथ हिन्दी भी बहुत आसनी से बोलने ,समझने लग जाता है।
अंत में मैं अपने पूर्ण अनुभव से हिन्दी साहित्य संगीत के बारे में एक बात कहना चाहूंगा , उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की ख्याल शैली जिसका स्वरुप १८वी शताब्दी के पूर्वार्ध में स्पष्ट हुआ, वो आज के समय में संगीत की सभी विधाओं पर छाई हुई है तथा यह शैली भारतीय संगीत की आधुनिकतम शैली है जिसकी भाषा हिन्दी है , ख्याल का शाब्दिक अर्थ है - विचार , ध्यान , कल्पना , भावना , अनुमान आदि जो की मनुष्य को सीधे तौर से उसकी वास्तविकता से जोड़ती है और मेरा विश्वास है जो जोड़ता है वही बढ़ता , इसी लिए हिन्दी भाषा में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से था , है और अनवरत रहेगा।
Article on-Contribution of Indian music in the promotion of Hindi language
Sunday, 10 November 2019
SDG goals song lyrics , sdgs anthem lyrics by sunil agrahari
Thursday, 10 October 2019
NIDAN GEET निदान गीत- BY SUNIL AGRAHARI
******NIDAN ANTHEM*****
*****निदान गीत *****
Thursday, 3 October 2019
POEM ON SINGLE USE PLASTIC IN HINDI
POEM ON SINGLE USE PLASTIC IN HINDI
*****प्लास्टिक का रावण*****
जब इंन्सा इसका विभीषण बनेगा
हमी ने बुलाया हमी ने बैठाया
ज़रूरतें सारी पूरी हम करते ही थे
Wednesday, 2 October 2019
poem on drugs, ANDAZE NASHA , अन्दाज़े नशा POEM BY SUNIL AGRAHARI
poem on drug addiction in hindi
Published in Jankari kaal , magazine November 2021
*****अन्दाज़े नशा *****
रुगबत -भूख ,
तलब -प्यास -तृष्णा
POEM ON DRUG ADDICTION
POEM ON NASHA MUKTI
Wednesday, 18 September 2019
SINGLE USE PLASTIC BREAKUP SONG IN HINDI I POLLUTION BREAKUP SONG IN HINDI @sunilagrahari
SINGLE USE PLASTIC BREAKUP SONG IN HINDI -
SDG#16
poem on pollution
NOTE- USE THE TUNE OF BOLLTWOOD RANVEER KAPOOR SONG
सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खातिर देसी कुल्हड़ तोड़ दिया
सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मैंने ब्रेकअप कर लिया
Wednesday, 24 July 2019
APAHIJ SHISTACHAR , अपाहिज शिष्टाचार
*APAHIJ SHISTACHAR STORYU IN HINDI*
अपाहिज शिष्टाचार
मेरे पिता जी तो स्वस्थ हो गए लेकिन इस दुनिया रुपी ट्रेन के डिब्बे मेरी यात्रा जारी है ,मुझे इंतज़ार है उन अपाहिज शिष्टाचार वालों के ठीक होने का। llll