Wednesday 18 December 2019

सौदा खरा खरा


                    sauda khara sauda khara lyrics in hindi

                                        सौदा खरा खरा 


दिल देना दिल लेना है  सौदा खरा खरा x4
दिल दे सौदे विच ना चलदी ना चंडी न सोना 
दिल डा सौदा करिये  बस के 
जावे जान दे जांदी जे सौदा।।।।।।।।।।
जे  सौदा खरा खरा

दिल दे सौदे खातिर रांझे 
छाड़ियाँ तखत हज़ारा 
फिर भी अक्खा लगदा मैनु 
सौदा सस्ता यारा के सौदा खरा खरा 

दिल दे सौदे विच ना चलदी 
दूजी कोई दलाली 
एक होव दिल वाला ते बस 
एक होव दिल वाली ते सौदा 
दिल देना दिल लेना है  सौदा खरा खरा x4
दिल देना दिल लेना है  सौदा खरा खरा x4

Saturday 16 November 2019

Article on Contributions of Indian music- to promote Hindi language -हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय एवं सरल संगीत की भूमिका

                    


Professor  Harvindar sing ji 

professor and vocalist Hindustani classical music 

member of RAC at indian council for cultural relation

air classical singer 

               
                     
हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय एवं सरल संगीत की भूमिका 


सुनिल - गुरु जी आप पुरे विश्व में हिंदुस्तानी  शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार  के लिए  आते जाते रहते है,    मैं आप से समझना चाहता हूँ की हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय एवं सरल संगीत की क्या भूमिका  है ?

 गुरु जी -जिस तरह साहित्य और समाज का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है ठीक उसी तरह भाषा और सभ्याचार  का आपसी सम्बन्ध होता है , जैसे जैसे जीवन सभ्याचारक होता गया वैसे वैसे भाषा विकास करती गई।
भाषा मनुष्य के बौद्धिक विकास तथा उनके  कलात्मक शिखर का प्रतीक है ,हम मनुष्य के विचारों तथा अनुभवों को भाषा द्वारा ही समझ सकते है।भाषा की अमीरी या प्रफुल्लता से किसी जाति की सभ्यता एवं संस्कृति  के उच्च या निम्न स्तर का पता लगता है , जिस देश की भाषा जितनी अमीर होगी उस देश की सभ्यता उतनी ही उच्च स्तर की  होगी।

संगीत तथा भाषा का साहित्य परस्पर पूरक है ,दोनों का प्रधान लक्ष्य भाव अभिव्यक्ति है एवं दोनों का आधार स्वर तथा भाषा है, जिन भावों को संगीत द्वारा  प्रकट नहीं किया जा सकता वो भाषा द्वारा संभव होते है  और जिन भावों को व्यक्त करने में  भाषा असमर्थ होती है उन्हें संगीत द्वारा प्रकट किया जा सकता है !
इसी लिए कहा जा सकता है काव्य संगीत का अलंकार है ,संगीत रचना के सम्बन्ध में मान कौतुहल ग्रन्थ में कहा गया है कि  श्रेष्ठ गायक तथा रचयिता को व्याकरण, पिंगल , अलंकार , रस , भाव , देशाचार , लोकाचार के साथ  शब्द ज्ञान में भी प्रवीण होना चाहिये !
इस दृष्टि से भारतीय शास्त्रीय संगीत का हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में विशेष योगदान रहा है, भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक लम्बी परम्परा रही है ,भारत वर्ष में मूल रूप से संगीत की दो पद्धतियां प्रचलित है , एक तो कर्नाटक या दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति और दूसरी उतर भारतीय संगीत ,दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति का  प्रचलन  कर्णाटक,तमिलनाडु,तेलंगाना ,आंध्रा ,तथा केरल राज्यों में ही है लेकिन आज सम्पूर्ण भारत के साथ साथ दक्षिण भारत  में भी हिंदी गायन की सभी विधाएँ  बहुत प्रचलित हो रही है , यहाँ पर भी देखा जाय तो हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है।

 

सुनील- गुरु जी, कृपया हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में प्रमुख रूप से गई जाने वाली  गायन शैलियों के बारे कुछ बताएं। 

गुरु जी -आज सम्पूर्ण भारत वर्ष में  हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में प्रमुख रूप से गई जाने वाली  गायन शैलीया ,ध्रुपद ,धमार, ख्याल, टप्पा ,तराना, सादरा ,ठुमरी, दादरा ,सरल संगीत , फिल्म संगीत इत्यादि हिन्दी भाषा को अपने में समाहित किये हुए देश विदेश में सम्मान के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है।


हिन्दुस्तानी संगीत में ध्रुपद धमार एवं ख्याल  के विभिन्न  घरानो और उससे सम्बंधित संगीतज्ञों ने अपनी अमूल्य रचनाओं , बन्दिशों द्वारा हिन्दी भाषा तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया है , हिन्दुस्तानी संगीत में शास्त्रीय गायन की भिन्न भिन्न रचनाओं बंदिशों की भाषा ,हिन्दी ,उर्दू ,संस्कृत ,राजस्थानी , ब्रज , पंजाबी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओँ से सम्बंधित रही है लेकिन इन सब में हिन्दी भाषा की रचनाये प्रमुख स्थान रखती है।  इन हिन्दी रचनाओं को केवल हिन्दी भाषी संगीतकार  ही नहीं अपितु दूसरी भाषा के विभिन्न संगीत गायको में सीना-बा-सीना गाई तथा सिखाई जाती है।ख्याल गायन से पहले जब ध्रुपद , धमार गायन शैली का बोलबाला था तब भी उसकी समस्त रचनाये हिन्दी भाषा में ही प्राप्ति होती है तथा आज भी ध्रुपद तथा धमार गायको द्वारा गई जाती है।

१८वी शताब्दी के पूर्वार्ध में मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीले  के  दरबारी गायको सदारंग तथा अदारंग आदि के सन्दर्भ में विशेषरूप से  मिलता है जिन्होंने हज़ारो की संख्या में हिन्दी, ब्रजभाषा , पंजाबी भाषा
में ख्याल की बंदिशों की रचना कर भारतीय शास्त्रीय संगीत विधा द्वारा हिन्दी भाषा की उन्नति में श्रेष्ठ योगदान दिया।
हिन्दी भाषाई  रचनाओं को भारतीय साहित्य के प्रसंग में देखे तो इनमे हिंदी काव्य धारा की अमीर परंपरा स्पस्ट रूप से झलकती  है। भाषा के पक्ष में ये  रचनाये हिन्दी काव्य की महत्वपूर्ण कृतियां है तथा ये हिन्दी भाषायी शास्त्रीय गायन रचनाएँ विभिन्न संगीतकारो द्वारा सदियों का सफर तय करते हुए परम्परा के रूप में आज हमारे तक पहुंची है।


सुनील- गुरु जी ,हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में  फिल्म संगीत एक बड़ा माध्यम बन कर उभरा है , आप इसको किस तरह से देखते  है ?

गुरु जी -आज संगीत कलाकारों के परस्पर आदान प्रदान से हिन्दी भाषा में गाये जाने वाले ख्याल जहाँ पर क्षेत्रीय भाषाओं का बोलबाला है वहां तथा अन्य सभी देशों में भी सुनने को मिलने लगे है ।

अगर हम विदेशो में हिन्दी की बात करे तो पकिस्तान ,अफगानिस्तान , बांगला देश , भूटान,नेपाल, मॉरीशस , सूरीनाम त्रिनिदाद, अमरीका ,रूस ,जापान ,चीन, फिजी ,कनाडा , सिंगापोर जैसे देशों में  हिन्दी  सिखने और बोलने की प्रवृति बढ़ रही है और इन सब के पीछे हिन्दी संगीत का बहुत बड़ा योगदान है , फिल्म संगीत पिछले ८ दशकों से हिन्दी प्रचार प्रसार में  एक बड़ा माध्यम बन कर उभरा है  , हिन्दी फिल्म के संवाद एवं गीत सारी दुनिया  में हिन्दी सिखने में मदद कर रहे है ,लोग जाने अनजाने हिन्दी रूचि अनुसार गीत गुनगुनाते है फिल्म देखते है और कब संगीत के माध्यम से हिन्दी उनके जीवन में प्रवेश कर जाती है उन्हें पता ही नहीं चलता।
 
ये वो लोग हैं जिनको हिन्दी भाषा नहीं आती लेकिन वो हिन्दी गीत आनंद पूर्वक गाते है क्यों की उनको तो उस गीत का संगीत अच्छा लगता है और वो व्यक्ति संगीत के माध्यम से हिन्दी गीत शब्द साथ साथ बोलता है परिणाम,स्वरूप  कुछ दिन बाद वो हिन्दी  बोलने भी लगता  है , ये संगीत का प्रभाव है, महत्वपूर्ण और सर्वसिद्ध बात ये है की हिन्दी भाषा पूर्ण रूप से  वैज्ञानिक भाषा है क्यों की हम जो बोलते  है वही लिखते है और अगर ये हिन्दी संगीत के साथ होता है तो व्यक्ति चमत्कारिक रूप से संगीत के साथ साथ हिन्दी भी बहुत आसनी से बोलने ,समझने  लग जाता है। 

ये सारी बाते किताबी नहीं है अपितु ये मेरे संगीत जीवन के सफर के सत्य अनुभव हैं , इस लिए मैं ये कह सकता हूँ की हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में भारतीय शास्त्रीय एवं सरल संगीत का बहुत महान योगदान है।

अंत में मैं अपने पूर्ण अनुभव से  हिन्दी साहित्य संगीत के बारे में एक बात कहना चाहूंगा , उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की ख्याल शैली जिसका स्वरुप १८वी  शताब्दी के पूर्वार्ध  में स्पष्ट हुआ, वो आज के समय में संगीत की सभी विधाओं पर छाई हुई है तथा यह शैली भारतीय संगीत की आधुनिकतम शैली है जिसकी भाषा हिन्दी है , ख्याल का शाब्दिक अर्थ  है - विचार , ध्यान , कल्पना , भावना , अनुमान आदि जो की मनुष्य को सीधे तौर से उसकी  वास्तविकता से जोड़ती है और मेरा विश्वास है जो जोड़ता है वही बढ़ता , इसी लिए हिन्दी भाषा में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से था , है और अनवरत रहेगा। सुनील- गुरु जी हमारा ज्ञान वर्धन करने के लिए आप का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद। 

 

सुनील अग्रहरी 

Ahlcon international school 

delhi 

 






                       Article on Contributions of Indian music to promote Hindi language                
                         हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में शास्त्रीय एवं सरल संगीत की भूमिका 
सुनिल - हमारे देश की भाषा हिंदी है और  विडम्बना ये है की अपने ही देश में हिंदी की स्थिति पहले बहुत अच्छी नहीं  थी लेकिन विभिन माध्यमों के द्वारा  अब हिंदी भाषा की स्थिति अब पहल तुलना में कहाँ देखते है?
गुरु जी -जिस तरह साहित्य और समाज का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है ठीक उसी तरह भाषा और सभ्याचार  का आपसी सम्बन्ध होता है , जैसे जैसे जीवन सभ्याचारक होता गया वैसे वैसे भाषा विकास करती गई।
भाषा मनुष्य के बौद्धिक विकास तथा उनके  कलात्मक शिखर का प्रतीक है ,हम मनुष्य के विचारों तथा अनुभवों को भाषा द्वारा ही समझ सकते है।भाषा की अमीरी या प्रफुल्लता से किसी जाति की सभ्यता एवं संस्कृति  के उच्च या निम्न स्तर का पता लगता है , जिस देश की भाषा जितनी अमीर होगी उस देश की सभ्यता उतनी ही उच्च स्तर की  होगी।
संगीत तथा भाषा का साहित्य परस्पर पूरक है ,दोनों का प्रधान लक्ष्य भाव अभिव्यक्ति है एवं दोनों का आधार स्वर तथा भाषा है, जिन भावों को संगीत द्वारा  प्रकट नहीं किया जा सकता वो भाषा द्वारा संभव होते है  और जिन भावों को व्यक्त करने में  भाषा असमर्थ होती है उन्हें संगीत द्वारा प्रकट किया जा सकता है !
इसी लिए कहा जा सकता है काव्य संगीत का अलंकार है ,संगीत रचना के सम्बन्ध में मान कौतुहल ग्रन्थ में कहा गया है कि  श्रेष्ठ गायक तथा रचयिता को व्याकरण, पिंगल , अलंकार , रस , भाव , देशाचार , लोकाचार के साथ शब्द ज्ञान में भी प्रवीण होना चाहिये !

इस दृष्टि से भारतीय शास्त्रीय संगीत का हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में विशेष योगदान रहा है, भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक लम्बी परम्परा रही है ,भारत वर्ष में मूल रूप से संगीत की दो पद्धतियां प्रचलित है , एक तो कर्नाटक या दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति और दूसरी उतर भारतीय संगीत ,दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति का  प्रचलन  कर्णाटक,तमिलनाडु,तेलंगाना ,आंध्रा ,तथा केरल राज्यों में ही है लेकिन आज सम्पूर्ण भारत के साथ साथ दक्षिण भारत  में भी हिंदी गायन की सभी विधाएँ  बहुत प्रचलित हो रही है , यहाँ पर भी देखा जाय तो हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है।

आज सम्पूर्ण भारत वर्ष में  हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में प्रमुख रूप से गाई  जाने वाली  गायन शैलीया ,ध्रुपद ,धमार, ख्याल, टप्पा ,तराना, सादरा ,ठुमरी, दादरा ,सरल संगीत , फिल्म संगीत इत्यादि हिन्दी भाषा को अपने में समाहित किये हुए देश विदेश में सम्मान के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है।

हिन्दुस्तानी संगीत में ध्रुपद धमार एवं ख्याल  के विभिन्न  घरानो और उससे सम्बंधित संगीतज्ञों ने अपनी अमूल्य रचनाओं , बन्दिशों द्वारा हिन्दी भाषा तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया है , हिन्दुस्तानी संगीत में शास्त्रीय गायन की भिन्न भिन्न रचनाओं बंदिशों की भाषा ,हिन्दी ,उर्दू ,संस्कृत ,राजस्थानी , ब्रज , पंजाबी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओँ से सम्बंधित रही है लेकिन इन सब में हिन्दी भाषा की रचनाये प्रमुख स्थान रखती है।  इन हिन्दी रचनाओं को केवल हिन्दी भाषी संगीतकार  ही नहीं अपितु दूसरी भाषा के विभिन्न संगीत गायको में सीना-बा-सीना गाई तथा सिखाई जाती है।ख्याल गायन से पहले जब ध्रुपद , धमार गायन शैली का बोलबाला था तब भी उसकी समस्त रचनाये हिन्दी भाषा में ही प्राप्ति होती है तथा आज भी ध्रुपद तथा धमार गायको द्वारा गई जाती है।

१८वी शताब्दी के पूर्वार्ध में मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीले  के  दरबारी गायको सदारंग तथा अदारंग आदि के सन्दर्भ में विशेषरूप से  मिलता है जिन्होंने हज़ारो की संख्या में हिन्दी, ब्रजभाषा , पंजाबी भाषा
में ख्याल की बंदिशों की रचना कर भारतीय शास्त्रीय संगीत विधा द्वारा हिन्दी भाषा की उन्नति में श्रेष्ठ योगदान दिया।
हिन्दी भाषाई  रचनाओं को भारतीय साहित्य के प्रसंग में देखे तो इनमे हिंदी काव्य धारा की अमीर परंपरा स्पस्ट रूप से झलकती  है। भाषा के पक्ष में ये  रचनाये हिन्दी काव्य की महत्वपूर्ण कृतियां है तथा ये हिन्दी भाषायी शास्त्रीय गायन रचनाएँ विभिन्न संगीतकारो द्वारा सदियों का सफर तय करते हुए परम्परा के रूप में आज हमारे तक पहुंची है।

आज संगीत कलाकारों के परस्पर आदान प्रदान से हिन्दी भाषा में गाये जाने वाले ख्याल जहाँ पर क्षेत्रीय भाषाओं का बोलबाला है वहां तथा अन्य सभी देशों में भी सुनने को मिलने लगे है ।
अगर हम विदेशो में हिन्दी की बात करे तो पकिस्तान ,अफगानिस्तान , बांगला देश , भूटान,नेपाल, मॉरीशस , सूरीनाम त्रिनिदाद, अमरीका ,रूस ,जापान ,चीन, फिजी ,कनाडा , सिंगापोर जैसे देशों में  हिन्दी  सिखने और बोलने की प्रवृति बढ़ रही है और इन सब के पीछे हिन्दी संगीत का बहुत बड़ा योगदान है , फिल्म संगीत पिछले ८ दशकों से हिन्दी प्रचार प्रसार में  एक बड़ा माध्यम बन कर उभरा है  , हिन्दी फिल्म के संवाद एवं गीत सारी दुनिया  में हिन्दी सिखने में मदद कर रहे है ,लोग जाने अनजाने हिन्दी रूचि अनुसार गीत गुनगुनाते है फिल्म देखते है और कब संगीत के माध्यम से हिन्दी उनके जीवन में प्रवेश कर जाती है उन्हें पता ही नहीं चलता।
 ये वो लोग हैं जिनको हिन्दी भाषा नहीं आती लेकिन वो हिन्दी गीत आनंद पूर्वक गाते है क्यों की उनको तो उस गीत का संगीत अच्छा लगता है और वो व्यक्ति संगीत के माध्यम से हिन्दी गीत शब्द साथ साथ बोलता है परिणाम,स्वरूप  कुछ दिन बाद वो हिन्दी  बोलने भी लगता  है , ये संगीत का प्रभाव है, महत्वपूर्ण और सर्वसिद्ध बात ये है की हिन्दी भाषा पूर्ण रूप से  वैज्ञानिक भाषा है क्यों की हम जो बोलते  है वही लिखते है और अगर ये हिन्दी संगीत के साथ होता है तो व्यक्ति चमत्कारिक रूप से संगीत के साथ साथ हिन्दी भी बहुत आसनी से बोलने ,समझने  लग जाता है। 
ये सारी बाते किताबी नहीं है अपितु ये मेरे संगीत जीवन के सफर के सत्य अनुभव हैं , इस लिए मैं ये कह सकता हूँ की हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में भारतीय शास्त्रीय एवं सरल संगीत का बहुत महान योगदान है।

अंत में मैं अपने पूर्ण अनुभव से  हिन्दी साहित्य संगीत के बारे में एक बात कहना चाहूंगा , उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की ख्याल शैली जिसका स्वरुप १८वी  शताब्दी के पूर्वार्ध  में स्पष्ट हुआ, वो आज के समय में संगीत की सभी विधाओं पर छाई हुई है तथा यह शैली भारतीय संगीत की आधुनिकतम शैली है जिसकी भाषा हिन्दी है , ख्याल का शाब्दिक अर्थ  है - विचार , ध्यान , कल्पना , भावना , अनुमान आदि जो की मनुष्य को सीधे तौर से उसकी  वास्तविकता से जोड़ती है और मेरा विश्वास है जो जोड़ता है वही बढ़ता , इसी लिए हिन्दी भाषा में संगीत का योगदान प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से था , है और अनवरत रहेगा। 


                  Article on-Contribution of Indian music in the promotion of Hindi language

 









Sunday 10 November 2019

SDG goals song lyrics , sdgs anthem lyrics by sunil agrahari











SDGs Anthem by sunil agrahari 

SDG goals song lyrics 

sdg goals 17 sdg goals
targets 169 For ,17 goals
“leaving no one behind”
i do believe
that we will achieve sdg goals
1
No Poverty, Zero Hunger, X2
we will remove from the world
hooo i do believe i do believe
that we will achieve sdg goals
2
Good Health and, Well-being X2
Quality Education, Gender Equality
hooo i do believe i do believe
that we will transform our world
3
Clean Water and Sanitation X2
Affordable and Clean Energy
hooo i do believe i do believe
that we will transform our world
4
Decent Work, Economic Growth x 2
Industry, Innovation and Infrastructure
Sustainable Cities and Communities
Reduced Inequality one day
     5

Responsible Consumption and Production
Life Below Water, Climate Action
Life on Land, i do believe
that we will achieve sdg goals
6
Peace and Justice Strong Institutions,
Partnerships to achieve the Goal
hooo i do believe i do believe
that we will achieve sdg goals




Composed by
Sunil Agrahari
Coordinator Activity Department 
Music teacher and poet
Ahlcon International School 




Thursday 10 October 2019

NIDAN GEET निदान गीत- BY SUNIL AGRAHARI

 ******NIDAN ANTHEM*****

          SELF MOTIVATIONAL SONG IN HINDI 

                                    

                                      

  *****निदान गीत *****

आओ करे शुभ काज , छोड़े कदमो के निशान 
हल मुश्किलों का ढूढें , और उनका करे निदान 

प्यारे से इस जीवन के सुख दुःख दो मेहमान 
 सुख तो खुशियां देता है दुख लेता इम्तहान 

संस्कृति  की इस धरती पर करे शोध अनुसंधान 
 बोये ज्ञान विज्ञान का बीज ,बने शिक्षा के किसान 
हर पल निज खुशियों के खातिर जीता है इंसान 
आओ जिए औरों के खातिर ,करें समाज उत्थान 

मानवता जीवित  रहे सब हों एक सामान 
जन जन भागिदार हों,सफल करें अभियान 



Thursday 3 October 2019

POEM ON SINGLE USE PLASTIC IN HINDI

  






POEM ON SINGLE USE PLASTIC IN HINDI

*****प्लास्टिक का रावण*****

प्लास्टिक का रावण तब ही मरेगा 
जब इंन्सा इसका विभीषण बनेगा 
हमी ने बुलाया हमी ने बैठाया
प्रदूषण का रावण हमने बनाया 
धीरे धीरे प्लास्टिक सब में समाया 
सारी दुनिया में अब पैर है जमाया 

जीने की खातिर क्या कर दिया
जहर को हमने अमृत समझ लिया
हमारा ही वंश कल को आएगा 
प्रदूषण से जान मुश्किल में पाएगा 
पहले भी तो हम तुम रहते ही थे 
ज़रूरतें सारी  पूरी हम करते ही थे
आओ हम रहे जिए पहले जैसे 
मुश्किल होगी पर रह लेंगे ऐसे वैसे

गलती तो हम तुम, कर ही चुके है 
प्लास्टिक के मेहमान घर ला चुके है 

ये दुनिया मिटटी में मिल जाएगी 
प्लास्टिक की दुनिया रह जायगी





Wednesday 2 October 2019

poem on drugs, ANDAZE NASHA , अन्दाज़े नशा POEM BY SUNIL AGRAHARI

 poem on drug addiction in hindi 

    



Published in Jankari kaal , magazine November 2021 

*****अन्दाज़े नशा *****

   दुर्दशा है जीवन की नशे की दिशा    
   उजाला है जीवन ना लाओ निशा 

  ज़िल्लत की मौत नशे से क्यूँ मरे
 बदल दें हम अपनें अन्दाज़े नशा 

 मुश्किल से कितने ये नर तन मिला 
 ना मारो इस रूह को कर के नशा 

मादक हो लत तो इन्सा खुद मरता है 
आओ हम करें मकसद जीने का नशा 
  
  है कितने ही दुनिया में पिछड़े यहाँ 
 आओ सब की तरक्की का कर लें नशा 

 नफरतों के नशे से क्यों बर्बाद हो 
आओ हम करे भाईचारे  का नशा 

इस जहाँ में  रुगबत तलब हर जगह 
ग़ुरबत मिटाने का आओ कर ले  नशा 

फैला है चहुँ ओर आतंक अन्याय  
आओ हम करें इंसानियत का नशा 

 ज़ाहिल  न जाने ही कितने यहाँ  
 आओ फैलायें हम इल्म  का नशा 

   लत नशे से बचे , रोक ले औरों को 
  आओ मिल कर सुधारें दुनियाँ की दशा  



सुनील अग्रहरि 

एलकोन इंटरनेशनल स्कूल 
मयूर विहार - फेज -१ 
दिल्ली -९१  

रुगबत -भूख  ,
तलब -प्यास -तृष्णा
ज़ाहिल- अनपढ़ 
मादक - नशीला 

POEM ON DRUG ADDICTION     

 POEM ON NASHA MUKTI 


      

Wednesday 18 September 2019

SINGLE USE PLASTIC BREAKUP SONG IN HINDI

     SINGLE  USE PLASTIC BREAKUP SONG IN HINDI  - 

       SDG#16 

poem on pollution 


                    











सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खातिर देसी कुल्हड़ तोड़ दिया 
मैंने छोड़ दिया उसे छोड़ दिया 
प्लास्टिक के प्रदुषण  ने उसका भाण्डा फोड़ दिया 
मैंने छोड़ दिया उसे छोड़ दिया 

सिंगल यूज़ प्लास्टिक ने वर्ल्ड स्मैशप कर  दिया 
पोल्लुशन से लाइफ़ का मेकअप कर दिया 
इसी लिए प्लास्टिक से मैंने ब्रेकअप कर लिया 
सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मैंने ब्रेकअप कर लिया 


     तुमको हम  बताते है ये  कैसे कर लिया 
   तुम भी ये कर सकते हो जो मैंने कर  दिया 
 आज प्लास्टिक से मैंने तो  ब्रेकअप कर लिया
   डेली प्लास्टिक नीड से  ब्रेकअप कर दिया 

आने वाली पीढ़ी को हम प्लास्टिक में ना पैक करे 
थैले कपडे कागज़ के में सामान ले जाने आये है 
प्लास्टिक खुद कभी नस्ट न होती प्रकृति को क्षति पहुँचती है 
सकल जगत की मीठी छुरी हम बतलाने आये है 

लुक बेबी मुझे लगता है जो भी मैंने किया वो  वैरी वैरी राइट है 

भूत काल को भूल जा अब तू आने वाला फ्यूचर वैरी वैरी ब्राइट है 

माइंड ना करना थोड़ा ज्यादा बोल दू क्यों की बन्दा  वैरी वैरी राइट है 







Wednesday 24 July 2019

APAHIJ SHISTACHAR , अपाहिज शिष्टाचार

           

*APAHIJ SHISTACHAR STORYU  IN HINDI* 

       अपाहिज शिष्टाचार    

            यात्रा वृतांत  (सत्य घटना )
लोकल ट्रेन स्टेशन पे रुकी रोज़ की तरह , और आँखे तलाश रही थी मेरी बैठने की जगह ,
मै घुसा डिब्बे में  पिता जी के साथ , तभी एक बुज़ुर्ग ने आवाज़ दी मुझेहिला के हाथ ,
कहा ,आओ बेटा यहाँ बैठो बाबू जी के साथ .
वो डिब्बा था ख़ास अपाहिज और बीमार लोगो का ,मगर उम्मीद ,दर्द ,शांतिजैसे से भरे हौसलों  का ,
उसमे कोई महिला गर्भावस्था में,तो कोई बुज़ुर्ग ज़र्ज़र अवस्था में,जीवन की चाह से भरपूर
 ज्यादातर लोग दुखों से द्रवित बैठे थे. 
मैं भी जा रहा था कराने पिता जी का उपचार ,बुढ़ापे में उनके दिन बचे है अब थोड़े से चार ,
और हम सब की कोशिश है की जिए दिन हज़ार। मेरे पिता जी ऊपर से स्वस्थ मगर अंदर थे  कैंसर से ग्रसित,
बाकी बैठे लोग संतुष्ट है या असंतुष्ट, समझ नहीं पा रहा था मै था असमंजस में ,
क्यों की इंसानियत की नूर टपक रही थी इनके  सब के चहरे के नस नस में , 
लेकिन हाव भाव थे ऐसे , जियेंगे सदियों जैसे . 
इनमे से कुछ की ज़िन्दगी की शाम ढलने वाली है, लेकिन उन्हें ज़रा भी ना था मलाल ,
सब कर रहे थे एक दूजे का ख़याल , दूसरों के आँसू पोछने को निकल रहे थे कई  रुमाल ,
कौन है किसका सगा कौन  पराया कुछ पता ही नहीं चल रहा था ,ये बात थी कमाल ,
ये सब देख कर मै  कर रहा था उनके ज़िन्दादिली को मन ही मन सलाम,
यहाँ के माहौल आपसी भाई चारा , प्यार मुहब्बत, इंसानियत  से मेरी आँखें नम 
,ह्रदय करुण क्रंदन  कर रहा था  अचानक इन सब के बीच  
"टाटा मोरियल कैंसर अस्पताल आ गया ,
मैं उठा , पिता जी उठे और ....... "उठा मेरे मानस पटल पर  एक झकझोरता सा सवाल" ,
क्या होता जा रहा है आज कल हमारी आने वाली पीढ़ी में कुछ लोगों के सामजिक संवेदना को ? 
जिनको ,ख़ुदा ने बख्शी है पूरी नियामत ,घर परिवार से सुखी और शरीर से सलामत ,
वो क्यों  हो रहे है इंसानियत से दूर और स्वार्थी ? चूर है मस्ती में नहीं मतलब किसी की भी हो अर्थी ,
क्यों वो  लोग किसी की परवाह नहीं करते? उनका भी वख़्त आएगा क्यूँ नहीं डरते ?
क्यों नहीं बढ़ते हाथ एक अदद  ? किसी  की करने  को मदद ,
कब जागेगी सहानुभूति असहायों के लिए  ?
धन के नशे में चूरपढ़े लिखे अज्ञानी ,सभ्य समाज के वासी  ,
शायद ऐसे  लोगों का शिष्टाचार अपाहिज हो रहा है ,
ऐ मेरे  ख़ुदा मेरी आप से है दुआ ,उन बेगैरत लोगो को ,जिनको गुमाँ  है अपनी नियामत पर , 
उनको दुःख का एहसास ज़रूर कराना उनकी  परिभाषित इंसानियत पर ,
शायद ठीक हो जाये उन लोगो का अपाहिज शिष्टाचार। 
मेरे पिता जी तो स्वस्थ हो गए लेकिन इस दुनिया रुपी ट्रेन के डिब्बे  मेरी यात्रा जारी है ,मुझे इंतज़ार है उन अपाहिज शिष्टाचार वालों के ठीक होने का। llll



सुनिल अग्रहरि 
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल 
मयूर विहार - फेस -१ 
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