Sunday 9 August 2020

एक मुलाकात - महान साहित्यकार हिंदी भाषा सेवी भाई राज हीरा मन जी से













एक मुलाकात -  महान साहित्यकार हिंदी भाषा सेवी भाई राज हीरा मन जी से 

जीवन में कभी कुछ अनजाने रिश्ते ऐसे बन जाते है जिन्हे अनुभव करने पर पता चलता है की ये तो पिछले जन्म के अच्छे कर्मो का फल जैसा है , उसी कड़ी में मैं आज बात कर रहा हूँ हिंदी भाषा के महान सेवक मॉरीशस के श्री मान राज हिरामन जी जो मेरे ही नहीं अपितु देश विदेश के सभी हिंदी सेवक उनके सरल स्वभाव से परिचित है। 
 मेरी पहली मुलकात आज से लगभग १० वर्ष पूर्व मेरे एक संगीत के कार्यक्रम के दौरान हुई थी , तब से लेकर आज तक उनकी हिंदी भाषा के प्रति लगाव प्रेम दिनप्रतिदिन बढ़ते  में क्रम में ही देखा  है। 
 यूँ तो कोरोना काल वैश्विक महामारी में आज कल सब से मिल पाना  बहुत असम्भव है  लेकिन तकनिकी सहायता से बहुत कुछ सम्भव हो पा रहा है , उसीकी सहायता से उनसे कुछ संवाद के अंश आप सब से साझा कर रहा हूँ 

सुनील-भाई जी आप मॉरीशस से भारत अब तक इतनी बार आ चुके है , ये आप का भारत और हिंदी के प्रति अगाध प्रेम है , मैं चाहता हूँ आप थोड़ा इस विषय पर प्रकाश डालें। 

हीरामन जी - शिशु जब पैदा होता है तो उसकी नाभि नाल माँ के पेट से जुडी होती है  , वो बच्चा अन्न जल साँस उसी नाल से लेता है ठीक उसी प्रकार से मैं भी भारत और  हिंदी  भाषा से जुड़ा हुआ हूँ  ,मेरी आत्मा हिंदी और भारत माँ से जुडी हुई है ,एक बच्चा अपनी माँ से मिलने कभी भी आ सकता है  . पिछले साल मैं काफी अस्वस्थ रहा २०१९ दिसंबर में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उपचार करवा कर स्वस्थ हो कर मॉरीशस वापस गया , मुझे ऐसा लगा मेरी माँ यानि भारत माँ ने मुझे स्वस्थ कर  के वापस भेजा है। अब तक लगभग ३५ से ४० बार भारत यात्रा कर चूका हूँ और भविष्य में जब भी अवसर मिलगे फिर आऊंगा। 

सुनील-आप अपने बचपन के बारे में और मॉरीशस में हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में  आप का  योगदान किस तरह का रहा है , आप की शुरुआत कैसे हुई ?

हीरामन जी -  मेरा जन्म १९५३ में मॉरीशस के   त्रियोल गाँव में हुआ, ढाई साल की उम्र में पिता जी का देहांत हो गया ,मै अपने भाई बहनों में सब से छोटा हूँ ,स्कूली शिक्षा के बाद संघर्ष संघर्षपूर्ण जीवन में मज़दूरी की फिर पोलिस की नौकरी की , फिर हिंदी भाषा का अध्यापक बना , १९७६  टाइम्स ऑफ़ इंडिया मुंबई में पत्रकारिता का प्रशिक्छण लेने आया , फिर उसके बाद  स्थानीय मॉरीशस ब्रॉडकास्टिंग  कॉर्पोरेशन रेडिओ व टेलीविज़न में २२ सालो तक काम किया ,१९७८ में महात्मा गाँधी संसथान में सृजनात्मक लेखन विभाग से जुड़ गया तथा रिमझिम तथा वसंत पत्रिका का वरिष्ष्ठ उप संम्पादक रहा । मैंने माध्यमिक कॉलेज में हिंदी और   हिंदुत्व  पढ़ायाऔर हिंदी विब्भाग में भी काम किया। 
मेरी अब तक हिंदी भाषा की लगभग २५ पुस्तक दिल्ली से प्रकाशित हो चुकी है  , देश विदेश में हिंदी भोजपुरी भाषा के लिए लगभग ५० शोधपत्र दे चूका हूँ , देश विदेश से सैकड़ो सम्मान प्राप्त किया ,
'स्वदेशी मिटटी' नमक साप्ताहिक अखबार का प्रधान संपादक रह कर संचालन किया , मॉरीशस में सरकारी , गैर सरकारी , सभी स्कूलों को सहयोग किया एवं हिंदी लेखन पाठन पैनल का सदस्य भी रहा हूँ  ।
 आज कल कोरोना जब से शुरू हुआ है तब से अब तक देश विदेश के लगभग २५ वेबनार  का हिस्सा रहा हूँ और लेखक कभी भी रिटायर नहीं  होता ,जब  तक मेरी साँसे चलती रहेंगी मेरी लेखनी हिंदी की सेवा करती रखेगी। 

सुनील- वैश्विक अस्तर पर आप हिंदी को कहाँ पर देखते हैं ?

 हिरामन जी  - वैश्विक अस्तर पर हिंदी भाषा बहुत को अच्छी जगह पर देखता हूँ , लेकिन एक बात निकल कर सामने आती है  वो ये की , हिंदी भाषा प्रचार प्रसार में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है , लेकिन अंतर्राष्ट्रीय अस्तर पर मीडिया  इसे दिखाता बताता नहीं  ये  एक बड़ी  कमी। 
एक बात जो मैंने बहुत अच्छा अनुभव किया है हिंदी भाषा के बारे में वो ये की दुनिया भर के लोग हिंदी भाषा स्वेच्छा  से बोल रहे है , उनके ऊपर थोपी लादी नहीं गई अन्य विदेशी  भाषाओ की तरह अपितु लोग अपने मन से अपना रहे है , ये संस्कार भारत देश का है इतिहास गवाह है भारत ने किसी भी देश पर अपनी सभ्यता संस्कृति के लिए जबरदस्ती नहीं की इसी लिए हिंदी शायद थोड़ा पीछे लगती है लेकिन भविष्य स्वर्णिम है ,
मैंने दुनिया के कई देश देखे है वहाँ के लोग अपने बच्चो को  हिंदी संस्कृत इस लिए पढ़ा रहे है की उनके बच्चे जीवन मूल्य समझे और संस्कारी बने ,विश्व समाज में  ये हिंदी भाषा की जीत और आशीर्वाद है.


सुनील -वर्तमान पीढ़ी को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?

 राज हिरामन जी -अपनी सभ्यता संस्कृति की रक्षा  हमें स्वयं ही करनी होगी , सभी अभिभावक से एक बात कहना चाहूंगा की,  जीविका के लिए आप  कोइ भी भाषा चुने इसमें कोई भी आपत्ति नहीं है ,बस आप सब अपने घर का माहौल हिंदीमय बनाये ,  हिंदी किस्से कहानी गीत संगीत अखबार , टेलीविज़न पर  हिंदी समाचार देखे और बच्चों को दिखाए  , अपनी भारतीय संस्कृति भाषा इतिहास के बारे में बच्चो को बताये तभी वो बच्चा भारतवासी हिन्दीभाषी बनेगा ,  नहीं तो आप का विदेश प्रेम दीमक की तरह आप को समाप्त कर देगा  और आप को पता भी नहीं चलेगा  , सभी भाषाएँ पढ़े उनका सम्मान करे , व्यवसाइक कार्य करें , लेकिन अपनी भाषा का भी उतना ही सम्मान करे, जिस मिटटी में जन्म लिया  उसकी रक्षा सम्मान करना हमारा धर्म और जिम्मेदारी है। 
मारीशस हमेशा से भारत के साथ था , है और रहेगा है। 


धन्यवाद 
 
साक्षात्कार करता 
सुनील अग्रहरि 
Ahlcon international school 
Delhi 
 
 



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