Published in Mauritius
Magazine - Akrosh
November 17
रक्षक ही भक्षक आज बन गया देश का ,
देश को बचाने वाला अक्षत एक चाहिए ,
सालों साल देश को आज़ाद हुए हो गए ,
ग़रीबों और किसानों को भी हक़ मिलना चाहिए।
भूखों और गरीबों पे तो बातें बहोत हो गई ,
भिखारी और लाचारी पे किताबें बहोत हो गई
फिल्में बना के इनपे कितने अमीर हुए ,
अब इनकी भी अमीरी का उपाय होना चाहिए
भूख की तड़प से भूखा पेट मर रहा ,
उनका अनाज भीगे रखे सड़ जाता है ,
अन्नदाता भूखों का खुद महलों में रहे क्यूँ ,
अब भूखों और अनाज को भी छत एक चाहिए ,
जिन्हें हाथ जोड़ तुम संसद गए नेता जी ,
भूले तुम क्यों उस भोली जनाधार को ,
पहले टहलते थे खुलेआम सड़को पे ,
अब उनके बीच तुम्हें गार्ड एक चाहिए ,
अन्न का दाना आज रो कर कह रहा ,
मुझको उगाने वाला भूखों पेट पर रहा ,
किसान ना रहा तो दुनियाँ ना बच पाएगी ,
किसानों को बचाने का उपाय होना चाहिए ,
सुनील अग्रहरि
उपाय कौन कर सके , प्रवाह कैसे थम सके
ReplyDeleteअंतरात्मा कि सोयी नींद से जो जग सके
ऐसा एक स्तम्भ जो संभाल ले बवाल को
बेह गया जो बाढ़ में लौटा ले उस उबाल को
एक विवेकानंद भी जो मिल सके भारत को तो
ऐसे युग पुरुष का अवतार होना चाहिए
टूटी है कश्ती तो क्या, पतवार होना चाहिए
मुश्किलें बढ़ीं तो क्या उपाए होना चाहिए