Published in Mauritius
Magazine - Akrosh
October 16
....पत्थर का धर्म ......
तुम कौन हो ये जो पूछते हो,
किस
जात के हो
किस धर्म के
हो,
वो पत्थर तो खामोश
है,
तू
जिसकी इबादत करता
है ,
एक शिला के टुकड़े टुकड़े कर
बना दिया एक
गिरजा घर
फिर कुछ टुकड़े नक्काशी
कर,
उसे
सजा दिया मकबरे
पर
क्या वो
आपस में लड़ते
है,
तू
हिन्दू है
तू मुसलमाँ है ?
तू सिक्ख
है तू
इसाई है
?
हाय
रे ये कैसी
खुदाई है ?
जिस इन्सां में जान है ,
तू उनको पत्थर मारता है,
जिस पत्थर में जान नहीं ,
तू उनमे जान ढूढता है,
फिर ऐ
इन्सां तू कहता
है , पत्थर में जान नहीं होती,
ये
बुत तो केवल
पत्थर है ,
फिर तू
क्यूँ सजदे करता
है ?
तू
फूलों से कुछ
सीख ले ,
एक ही पेड़ में खिलते हैं
फिर सभी धर्मो में जाते हैं
तेरे दिल
की बात को ,
तेरे पीर
तक पहुंचाते है
,
वैसे ही एक शिला के पत्थर
रूप लेते घिस कट कर
फिर धर्म में शामिल होते हैं
हर धर्म की इबादत के खातिर ,
पत्थर ही कुर्बान होते है,
वो फिर भी नही झगड़ते हैं
वो फिर भी नही झगड़ते हैं
कोई फ़र्क नहीं धर्मो के
बीच,
कोई नर्क नहीं कोई
स्वर्ग नहीं,
ईश्वर है सच्चे
रिश्तों में ,
कोई
कौम नहीं कोई
जात नहीं ,
ये धर्म
नहीं ये सियासत है ,
जिसके
लिए तुम लड़ते
हो,
मज़हब तो प्यार
सिखाता है
जिसे तुम नहीं
समझते हो।
सुनील अग्रहरि
अध्यापक -संगीत (coordinator activity department )
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल
मयूर विहार -फेस -१
दिल्ली -९२
मोबाइल न. 7011290161
सुनील अग्रहरि
अध्यापक -संगीत (coordinator activity department )
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल
मयूर विहार -फेस -१
दिल्ली -९२
मोबाइल न. 7011290161
kya baat, kya baat, kya baat. bahut badiya sandesh de rahi hai aapki kavita
ReplyDeleteExcellent thoughts . keep writing and inspiring people
ReplyDeleteExcellent thoughts . keep writing and inspiring people
ReplyDeleteनमस्कार सर , अति सुन्दर I अगर इंसान , इंसान कि इज्ज़त करे तो उसे उसी में ईश्वर नज़र आने लगता है फिर मज़हब , मंदिर , मस्जिद कोई मायने नहीं रह जाते आपने बहुत सुंदर लिखा है
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