Friday 4 October 2013

तृष्ण -कविता , hindi poem on love

  

                 ………… तृष्ण  ………


कश्ती के निशां  मै  ढूंढ रहा 
दरिया के हिलते पानी में ,
है पता मुझे न मिलेगा तू , 
पर तलाश रहा नादानी में 



खुशबू सी तेरी आती है , 
मै सांस रोक रुक जाता हूँ ,
हर सूरत में तू दीखता है , 
हरकत करता बचकानी मै ,

कान मेरे बजने लगते  
इक आहट सी आ जाती है ,
दिल करता है इन्तज़ार तेरा 
अपनी इस नई कहानी में ,

ज़ेहन में जब से आये हो,
रीते  पल न मिले मुझे ,
सवाल तेरा जब आता है ,
करता हूँ आना कानी मै 


मै समझ न पाया अब तक क्यूँ ,

मन मृग तृष्णा बन भाग रहा 
क्या सब ऐसा ही करते है 
मेरी तरह जवानी में ?

1-रीते पल = खाली समय 
2-तृष्णा = प्यास 









No comments:

Post a Comment