PUBLISHED-JANKARIKAAL MAGAZIN - MARCH 2022
****ना करो सियासत ****(व्यंग्य )२९/०९/२०१५
ऐ श्वेत वस्त्र धारी प्राणी ,श्यामल से कार्य तुम्हारे है ,
ईश्वर भी घबरा के कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,
बेरंग पानी को रंग दिया ,और हवा की साँसे घुटने लगी ,
गड्ढे की मिट्टी तुझसे कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,
सब्ज़ी संग रोटी कैसे रहे ,महंगाई की आंत सुलगती है,
बोर में बन्द प्याज कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,
जात धरम में बैर करा ,इन्सां से इन्सां लड़वाया ,
घबरा कर पार्टी झण्डा कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,
छीन नेवाला जनता का,अपने ही उदर को तृप्त किया ,
भीगा सड़ा अनाज़ कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,
ज़ीरो भी हीरो बन जाता ,जिस पर भी तेरी कृपा हुंई ,
अय्याशी त्राहिमाम तुझसे कहे,ना करो सियासत नेता जी ,
भस्मासुर की तुझपे कृपा,तूने जिसे छुआ वो भस्म हुवा,
डर भस्मासुर की भसम कहे ,ना करो सियासतनेता जी ,