……… नज़रिया २१ /०९/१५ …………
वो ज़लील फैसले ही थे की
बेक़सूर आँखे छलक पड़ी
कुछ अजीब सी थी मजबूरियां ,
की खामोश थी ज़ुबान पड़ी ,
दौलत की अन्धी उनकी नज़र
सच्चाई पर न नज़र पड़ी ,
बेअक्ल पर न जाया करो
तेरी आसुओं की है इज़्ज़त बड़ी ,
वो गुलाम है अब तक गुरुर के
तुम मुस्कुराती मुश्किल में खड़ी ,
ना गुमान कर तू ऐ रहनुमां
इस जहाँ में सब की है इक घड़ी ,
वो ज़लील फैसले ही थे की
बेक़सूर आँखे छलक पड़ी
कुछ अजीब सी थी मजबूरियां ,
की खामोश थी ज़ुबान पड़ी ,
दौलत की अन्धी उनकी नज़र
सच्चाई पर न नज़र पड़ी ,
बेअक्ल पर न जाया करो
तेरी आसुओं की है इज़्ज़त बड़ी ,
वो गुलाम है अब तक गुरुर के
तुम मुस्कुराती मुश्किल में खड़ी ,
ना गुमान कर तू ऐ रहनुमां
इस जहाँ में सब की है इक घड़ी ,
Bahurt khoob!
ReplyDeleteaakhri misra bahut jaandaar hai!