Monday 28 September 2015

Poem on politics ,NAA KARO SIYAST HINDI POEM ,ना करो सियासत-(व्यंग्य )- poem on bad politics by sunil agarahari

     

 

PUBLISHED-JANKARIKAAL MAGAZIN - MARCH 2022
 

****ना करो सियासत ****(व्यंग्य )२९/०९/२०१५ 



ऐ श्वेत वस्त्र धारी प्राणी ,श्यामल से कार्य तुम्हारे है ,
ईश्वर भी घबरा के कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

बेरंग पानी को रंग दिया ,और हवा की साँसे घुटने लगी ,
गड्ढे की मिट्टी तुझसे कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

सब्ज़ी संग रोटी  कैसे रहे ,महंगाई की आंत सुलगती है,
बोर में बन्द प्याज कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

जात धरम में बैर करा ,इन्सां से इन्सां लड़वाया ,
घबरा कर पार्टी झण्डा कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

छीन नेवाला जनता का,अपने ही उदर को तृप्त किया ,
भीगा सड़ा अनाज़ कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

ज़ीरो भी हीरो बन जाता ,जिस पर भी तेरी कृपा हुंई ,
अय्याशी त्राहिमाम तुझसे कहे,ना करो सियासत नेता जी ,

भस्मासुर की  तुझपे कृपा,तूने जिसे छुआ वो भस्म हुवा, 
डर भस्मासुर की भसम कहे ,ना करो सियासतनेता जी ,








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