…उम्मीद … १९ /०९/२०१५
मुझे उनसे कितनी उम्मीद थी
उन्हें मुझसे कितनी शिकायतें ,
दिलों दिल में मुझसे खफा रहे
रहा पूछता उनसे मैं खैरियतें
यूँ ही कशमकश में ही रह गए
न वो सुन सके मेरी आहटें ,
थोड़ी इल्म की ही कसर रही
वर्ना हो रही होती मुहब्बते ,
मेरे दिल में ऐसे बसे है वो
जैसे कुरान की हो आयतें
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