………आज़ादी ?...........१४/०९/२०१५
वक्त हो गणतंत्र दिवस या हो स्वतन्त्रता दिवस ,
हर चौराहे की लाल बत्ती पर,तिरंगा बिकता है बेबस ,
अमीरी से आज़ाद मुफलिसी के ग़ुलाम ,
बच्चे बूढ़े और जवान ,
भूखी ज़िंदगी, हाथ तिरंगा ले कर ,
गुजारते है दिन , झंडा बेच कर,
ये है बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर ,
दिल में चुभती है जैसे बन के तीर ,
इन्हे देख आभास होता है ऐसे ,
कुछ ही लोग आज़ाद हुए थे
अंग्रेजो की गुलामी से जैसे,
ये ग़ुलाम तब भी थे , ये ग़ुलाम आज भी है
अंग्रेजो को तिरंगा बेचा जिसने,
वो गद्दार अमीर आज भी है ,लेकिन
आज भी चौराहे पे ये भूखे गरीबहै ,
ये नागरिक भी तो देश के करीब है ,
अंग्रेजो से आज़ाद हुवे,तो गुलाम हुवे सामजिक पिछड़ेपन से ,
एक दूसरे को हलाल कर रहे आरक्षण की छुरी से ,
ये कैसी आज़ादी , कैसा सामाजिक ढाँचा ?
कैसा नियम कानून ,कैसा क़ानूनी साँचा ?
ये है आज़ादी पे भरपूर करारा तमाचा ,
चौराहे पे तिरंगा नहीं , बिक रहा है ज़मीर ,
है राजनीत ज़िम्मेदार ,फरेबी और अमीर ,ये स्याह रंग आज़ादी का, कब चमकेगा अबीर ?
ये देख नीर आँखों में ले कोने में रो रहा कबीर …………………
भारत माता की जय
ReplyDeleteयथार्थपरक, कटुसत्य एवं देश के वर्तमान परिस्थिति की दशा बयां करने वाली कविता...मार्मिक
ReplyDeleteयथार्थपरक, कटुसत्य एवं देश के वर्तमान परिस्थिति की दशा बयां करने वाली कविता...मार्मिक
ReplyDeletebahot bahot dhnywad sunil ji
Deletebahot bahot dhnywad sunil ji
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