***गुल्लक *** मेरा प्यार का गुल्लक टूट गया,
मेरा सब कुछ जैसे रूठ गया,
उसमे रिश्तों की जमा पाई थी,
जो अन्जाने में मैंने कमाई थी,
छोटी मोटी खुशियों के फुटकर थे उसमें,
बचपन के माता पिता का प्यार था जिसमें,
वो मेरे सबसे अनमोल थे सिक्के,
लड़कपन और दोस्ती वाले मासूम प्यारे सिक्के,
अड़ोस पड़ोस रिश्तेदारों के खट्टे मीठे सिक्के,
वो पहला स्कूल गया था मैं जिसमे,
तोतली ज़ुबाँ से बोला था उनसे,
समझ नहीं पाते थे अध्यापक ,
फिर भी प्यार किया मुझसे ,
फिर भी प्यार किया मुझसे ,
वो प्यार जैसे रिश्ते ,खनखन खनकते जैसे सिक्के,
बड़ा हुआ अब मैं हुआ समझदार,
इन रिश्तों के गुल्लक में देखा दरार,
भरा हुआ गुल्लक मेरा टूटा पहली बार,
कच्ची मिट्टी पक कर टूट हुई जैसे बेकार,
वो सिक्के हो गए खोटे, अब नहीं पुराने बाजार,
जहाँ चले मेरा सिक्का , चले जमा पाई प्यार,
फूटा मेरा गुल्लक, बिखरा मेरा प्यार,
रिश्तों के सिक्कों की इज़्ज़त करो यार ,
पैसे मिल जायेंगे ,पर रिश्ते न मिलेंगे यार ,
रिश्तो के बिना ये दुनियाँ है बेकार ,
रिश्तों के गुल्लक में न आने दो दरार ........
रिश्तों के सिक्कों की इज़्ज़त करो यार ,
पैसे मिल जायेंगे ,पर रिश्ते न मिलेंगे यार ,
रिश्तो के बिना ये दुनियाँ है बेकार ,
रिश्तों के गुल्लक में न आने दो दरार ........
१३/०६/२०१६---रात १ बजे
Bahot badiya kavita likhi h Sir with beautiful ending. If people work upon the ending, then it can work wonders in everyone's life. Thanks for sharing.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर, आपने बिलकुल सही कहा है| काश यह गुल्लक कभी टूटे ही नहीं|बहुत सुन्दर कविता है, मुबारक हो आपको|इसी तरह आपकी कविता सुनने का मौका मिलता रहे, धन्यवाद |
ReplyDeletevery nice Sunil Sir . Keep on writing and sending.
ReplyDeleteAwesome 👍
ReplyDeleteHeartiest big thanks 2u , for giving ur prescious time to my small poem .
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