Monday 15 September 2014

वक़्त की बिसात - , hindi kavita on game of times , destiny

       

....   वक़्त की बिसात   ....... १६ /०९ / २०१४ 
वक्त की बिसात पर मुकद्दर  की चाल तय है ,
न एक घर काम न घर ज्यादा 
कहीं ख़ुशी मिले कम कभी ग़म मिले ज्यादा ,

वक्त जितना चाहता है मुकद्दर देता है वही ,
हमारे हिसाब से होता है कुछ गलत या सही ,
लकिन ज़िन्दगी में ऐसा होता नहीं
 जैसा चाहो जब चाहो जो चाहो मिल जाये वही 
जिससे बचना चाहो सामने आता है वही ,
मन के कोने में हमेशा एक शिकायत सी बनी रहती है 
वक्त की बिसात पर   ………। 

वक्त दोहराता है कई बार कहानियां ,
किरदार बदल जाते है , बदलती है रावनियाँ ,
मगर वापस नहीं देता किसी की जवानियाँ ,
पैदा होते है मरते है सब इसके सामने 
बर्बाद आबाद होता है इसके सामने 
किसको मिलेगी मन्ज़िल , कौन मिल जायेगा धूल  के गुबार में ,
ये इतिहास बनाने में है माहिर , मगर करता नहीं ज़ाहिर ,
वक्त की बिसात पर     ......................... 

कहते है वक्त का हर शै ग़ुलाम , वक्त ही इबादत वक्त को सलाम 
लिखता यही है सब के कलाम ,
कोई भी रहा न इससे अछूता , करे इसका सामना न है किसी में बूता ,
वक्त तो हर काम का बनाता है  बहाना ,
हम देते रह जाते है एक दूसरे को ताना ,
वक्त अथाह समुद्र है इसको पार पाना मुश्किल ही नहीं न मुमकिन है ,
जो इससे ताल मिला बहाव में तैर पाया वो वर्तमान होता है ,
वक्त की बिसात पर   ......................... 

एक अजीब सी डोर से बाँध रखा है सारी कायनात को , 
सब हँसते गाते रोते थकते सोते जागते सफर तय करते है ,
सारी  दुनियां का मुंसिफ़  , हर   लम्हे पे इसका पहरा है ,
फैसला होता है अटल , सजा सब की मुकर्रर है ,
 किसी को मिली आह ,किसी को मिली वाह ,
ये सगा न किसी का ,न  रत्ती भर परवाह किसी  की,
 सुदामा को   भी न बख्शा , सखा थे कृष्णा के जब की ,
भटकाया दर दर , किया दाने दाने  को मोहताज ,
कराया गलती का एहसास , फिर दिया सुख का ताज ,
वक्त की बिसात पर    ……………… ....... 

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