… अरे नेता जी ( व्यंग्य )....
मरो तुम तो झुके झंडा
करे हम बात हक़ की तो
पुलिस बरसाती है डंडा ,
शपथ लेकर बने नेता ,आई जनता की शामत है
खिला तेरा मुकद्दर है ,तो मैली आज खद्दर है ,
तू मातम का है सौदागर ,छलकता पाप का गागर
तेरा तो खेल है दंगा,तू आँखों के है संग अँधा ,
खरीदा वोट देके नोट ,सियासत में भी भर दी खोट ,
हमें तो होती है हैरत ,बची न तुममे कुछ गैरत ,
तुमसे तो भली वैश्या,बेचती है जो अपना तन
तुम इससे हो गए गुज़रे,बेचते हो अपना वतन
वतन की आबरू इज़्ज़त
बचाई जान दे कर के ,
पुराने थे वो कैसे नेता
न उनके पास कुछ भी था
मिटे वो देश के खातिर
वफादारी नहीं छोड़ी ,
तूने बेच दिया इज़्ज़त,
कफ़न तक उनकी ना छोड़ी
नहीं बेचा अपना ज़मीर
आज़ादी के बदले में ,
चाहे रह गए फ़क़ीर ,
कंगाली के बंगले में ,
सलाम उनको तहे दिल से,करो ऐ देश की जनता ,
करो इज़्ज़त शहादत की
के उनका हक़ हमपे बनता,
झंडा कहता है नेता जी से ……………
तम्हारे शोक में झुकता नहीं झंडा ऐ नेता जी
शरम से झुकता हूँ मजबूर हूँ लाचार नेता जी
बिना झंडे के हो गए दफ़्न , वतन को नाज़ है जिनपे
सलाम उनको नमन मेरा ,फहरता हूँ उनके दमपे ,
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