***अपाहिज शिष्टाचार ** २२/०९/२०१४
यात्रा वृतांत (सत्य घटना )
लोकल ट्रेन स्टेशन पे रुकी रोज़ की तरह ,आँखे तलाश रही थी मेरी , बैठने की जगह ,
मै घुसा डिब्बे में पिता जी के साथ ,
एक बुज़ुर्ग ने आवाज़ दी मुझे, हिला के हाथ ,
कहा ,आओ बेटा यहाँ बैठो बाबू जी के साथ ,
वो डिब्बा था ख़ास अपाहिज और बीमार लोगो का ,
जैसे उम्मीद ,दर्द ,शांति, से भरे हौसलों का ,
कोई महिला गर्भावस्था में,
तो कोई बुज़ुर्ग ज़र्ज़र अवस्था में,
जीवन की चाह से भरपूर
ज्यादातर लोग दुखों से द्रवित ,
मेरे पिता जी ऊपर से स्वस्थ
मगर अंदर थे कैंसर से ग्रसित,
ये सब लोग संतुष्ट है या असंतुष्ट, मै था असमंजस में ,
क्यों की इंसानियत की नूर टपक रही थी
इनके सब के चहरे के नस नस में ,
लेकिन हाव भाव थे ऐसे , जियेंगे सदियों जैसे ,
इनकी ज़िन्दगी की शाम ढलने वाली है
ना ज़रा भी था मलाल ,
सब कर रहे थे एक दूजे का ख़याल ,
दूजो के आँसू पोछने को निकल रहे थे कई रुमाल ,
मै कर रहा था उनके ज़िन्दादिली को मन ही मन सलाम,
यहाँ के माहौल से मेरी आँखें नम
ह्रदय करुण क्रंदन कर रहा था ,
"टाटा मोरियल कैंसर अस्पताल आने वाला था
मैं उठा , पिता जी उठे और .......
उठा मेरे मानस पटल पर
एक झकझोरता सा सवाल
क्या होता जा रहा है हमारी सामजिक संवेदनाओं को ?
ख़ुदा ने जिनको बख्शी है पूरी नियामत ,
घर, परिवार से सुखी और शरीर से सलामत ,
वो क्यों हो रहे है इंसानियत से दूर और स्वार्थी ?
चूर है मस्ती में नहीं मतलब किसी की भी हो अर्थी ,
क्यों लोग किसी की परवाह नहीं करते?
उनका भी वख़्त आएगा क्यूँ नहीं डरते ?
क्यों नहीं बढ़ते हाथ एक अदद ?
किसी की करने को मदद ,
कब जागेगी सहानुभूति असहायों के लिए ?
धन के नशे में चूर, पढ़े लिखे अज्ञानी ,सभ्य समाज के वासी ,
शायद इन सब का शिष्टाचार अपाहिज हो रहा है
ओ मेरे ख़ुदा मेरी आप से है दुआ
जिनको गुमाँ है अपनी नियामत पर ,
उनको दुःख का एहसास ज़रूर कराना क़यामत पर ,
शायद ठीक हो जाये हमारा अपाहिज शिष्टाचार………
शायद ठीक हो जाये हमारा अपाहिज शिष्टाचार……… ……………
नोट -----
( ये घटना काल्पनिक नहीं मेरे साथ घटित हुई २००८ में , किसी को ठेस पहुंची हो तो माफ़ी चाहता हूँ , मेरी हार्दिक गुज़ारिश है कृपया मेरे भावों को समझने की कोशिश ज़रूर करें . ) धन्यवाद। ....
रचनात्मक प्रतिभा शिक्षक सम्मान
Priy Anuj,
ReplyDeleteNaman.
Aap ki karoonik kavita parh kar royein khade ho gaye.Iss mein manawta
ki talash hai.Zaari rakho.Mujhe yah kavita behad pasand hai.Badhai jo
iss dharatal par utar aaye ho.
raj heeramun.
24 सितंबर 2014 को 12:06 am को, Sunil Agrahari
ने लिखा: