**क्यों झुकायें सर**१७ /०९/२०१४
(मेरी ये कविता समर्पित है सम्पूर्ण सम्मानित नारीयों की तरफ से उन अत्याचारी पुरुषों को जो अपमानित करते हैं महिलाओं को )हमी हम क्यों झुकायें सर,ये दुनियाँ भी हमारी है
किसी की हम नहीं जागीर , इज़्ज़त भी हमारी है
कभी डर छोड़ कर तुम भी रहो ससुराल में आकर ,
करो सेवा ससुर और सास की खाना तुम बना कर
मगर हिम्मत नहीं पड़ती , रीतियों का आड़ लेते हो ,
दहेज़ के नाम पर बहुओं को ज़िन्दा ही जलाते हो
पति की मौत पे नारी ही चिता में क्यों जलती है
करे बीवी के मरने पे जौहर , शौहर में ग़र हिम्मत है
हमी हम क्यों झुकाये सर …………
कभी कोठे पे बैठे हम ,कभी घर बर्तन मांजे हम ,
कभी न बन पाएं माँ या वारिस ना दे सके हम ,
बाँझ औरत कह के बेइज़्ज़त घर से भागते हो ,
कभी ऐसा भी होता है दोष तुम्हरा होता है
मगर वो दोष तुम्हारा भी मेरे हिस्से में होता है
अगर हिम्मत है तो ये इल्ज़ाम ले लो सर
हमी हम क्यों झुकाये सर ……………
टीका और सिन्दूर रखे व्रत परुषों के खातिर ,
कभी तुम पहनो मंगलसूत्र , रखो व्रत महिला के खातिर ,
शरम आती नहीं तुमको बल अबला पर दिखाते हो
मन्दिर में पूजा देवी की ,सड़क पे बलात्कार करते हो ,
कभी तो समझो इज़्ज़त , राखी ,करवाचौथ, माँ का प्यार
नहीं तुम मर्द हो डरपोक शिकार औरत का करते हो
ना समझो तुम के नारी है केवल भोग के काबिल ,
तुम्हारी हर मुश्किल में निकाल के रख देती अपना दिल ,
हमी हम क्यों झुकाये सर ………
नहीं हिम्मत , करो तुम सामना ईमान से किसी भी नारी का ,
क्यों कि , हर इक कोने में सम्मान हो रहा है नारी का,
पहुँच गए चाँद तारों पे हम ,तुम्हें चूल्हा चक्की में दिखते हैं ,
नज़रे खोल के देखो हम ऊँचाई पर भी देखते है
जहाँ के हर एक काम में, नाम हो रहा है नारी का ,
सदियों से रही आदत, किया अपमान नारी का,
परीक्षा अग्नि में सीता , सभा में द्रोपदी निर्वस्त्र,
छुपाते नाकामी अपनी , चलाते हो हमपे अस्त्र ,
हमी पर दाँव परीक्षा क्यों , हमी पर दाँव परीक्षा क्यों,
सहेगी अब नहीं नारी , सहेगी अब नहीं नारी ,
सोच पुराना सदियों का ,नहीं अब चलने वाला है,
चली अब तक है पुरुषों की , जाग चुकी अब नारी है ,
हमी हम क्यों झुकाये सर ................
जौहर=पती के मृत्यु के बाद (चिता में जलना )
बहुत ही सुंदर कविता है ! मैं तो नि:शब्द हो गयी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता है ! मैं तो नि:शब्द हो गयी
ReplyDeleteAprateem.......apki kavita dil ko choo gai.
ReplyDeleteSir read your poem today. It's very well written. I hope men ( those who need to) change their perpective towards women after reading this graet piece of work!
ReplyDeletethanks allot mam for encouraging me to write more like this and i respect your valuable words .
Deleteवास्तविकता रखी है आपने । बहुत| खूब| !!!! 👍👍
ReplyDeleteकुछ ऐसी पंक्तियाँ ही मनोबल बडाती हैं
ReplyDeleteदुनिया की रवायतें कुछ और बताती हैं
ऐसी नज़र खुदाया हर एक को मिले
जो नारी को हीन दीन अबला बताती है।
कुछ ऐसी पंक्तियाँ ही मनोबल बडाती हैं
ReplyDeleteदुनिया की रवायतें कुछ और बताती हैं
ऐसी नज़र खुदाया हर एक को मिले
जो नारी को हीन दीन अबला बताती है।
Neautiful poem sir
ReplyDeleteBeautiful poem sir
ReplyDeleteवाह ! बहुत बढिया ...नारी के मनोभावों को इतनी खूबसूरती के साथ शब्दों में पिरोकर जीवंत प्रस्तुति हृदय को छू गई और सबके समक्ष वास्तविकता को बयाँ करती है ।
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