*बलात्कार *१३/०३/२०१५
कोई जी के मर ,कोई मर के जी रहा है बार बार ,
नष्ट हो रहा है ,सामाजिक शिष्टाचार का आकार ,
सामाजिक भूखे भेड़ियों में, मानसिक विकार,
पुरुष ने नारियों का ,कर के तिरस्कार ,
अपनी ही कमजोरियों का, कर के बहिस्कार,
ये तो अज्ञान पुरुषो के पुरुसत्व की है हार,
परिवार में ख़त्म हो रहे है ,जैसे संस्कार ,
रूढ़िवादी , अबला को समझते हैं बेकार
पहले बलात्कारी, करता है बलात्कार
फिर कोर्ट में , सालो साल तारीख से बलात्कार
कानून का भय नहीं ,सब धराशाही लाचार ,
स्त्री के मर्यादा से नहीं कोई सरोकार,
नारित्वा रौंदा करते ,अबला को तार तार ,
सीता बच सकी न ,द्रोपदी थी लाचार ,
कन्या भ्रूण हत्या भी है इक बलात्कार ,
पैदा होने से पहले ही करते अंतिम संस्कार ,
नारी उत्थान का सपना कब होगा साकार ?
कब देवी जैसी नारियों की होगी जय जयकार ? ....... ३
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