………दीवार …… ०५/०३/२०१५
मैं हूँ कितनी उपयोगी , ऐ परवरदिगार ,
कभी बना मैं पीर मज़ार की दिवार ,
सर को छुपाने को छत की दिवार ,
जुर्म को करने छुपाने की बनी आड़ की दिवार ,
जानवरो के खातिर कच्चे बाड़ की दिवार ,
देश बट गए तो सीमा पर बन गई दिवार ,
इतिहास गवाह है जैसे के बर्लिन की दिवार ,
इंसानी हिम्मत का नमूना चीन की दिवार ,
बदरंग हो जाता हूँ नेताओं के नाम टैटू छपवा कर ,
ज्योतिष तांत्रिक, बाबा ,इन्वर्टर बैटरी का नाम लिखवा कर ,
विज्ञापन जगत कमाई करता है इश्तहार लिखवा कर ,
स्त्री रोग ,मर्दाना कमजोरी वाले डाक्टर का पता बता कर,
मुहब्बत अनारकली की दफ़न हुई , दिवार में चुनवा कर ,
बदनाम हुआ " दीवारों के भी कान होते है " मुहवारा बन कर ,
इंसानो के बड़े राज छुपा रखा है सीने में दबा कर ,
"दीवारे बोल उठेंगी " इंतज़ार है , विज्ञापन में सुन कर
मगर हैरानी है ऐ इन्सा , तुझे दू बद्दुआ या करू शुक्रिया
इतनी इज़्ज़त दे कर तूने मुझपर सूसू भी किया
इतनी इज़्ज़त दे कर तूने मुझपर सूसू भी किया
चलो दिल बड़ा है हमारा माफ़ तुमको किया
मुझपर रहम कर बस इतना
के ………
"मजबूत बनाना सर छुपाने के छत की दिवार ,
और कमजोर बनाना दिलों को बांटने की दिवार " ……।
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