Monday 16 March 2015

MAA GANGA माँ गंगा HINDI POEM KAVITA BY SUNIL AGRAHARI , ganga ji ki hindi kavita






   *  माँ गंगा *


आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण है माँ गंगा 
बहुत दिनों तक शायद ना रह पायेगा अब चंगा 
खुद को हम तार रहे , माँ गंगा को मार रहे ,
अपनी ही अर्थी से माँ को सजा दे रहे 
कैसी है आस्था कैसा है विश्वाश 
तिल तिल कर मर रही है माँ गंगा की आस 
गंगा ने मुक्ति दी पापों से ,दिया विशुद्ध निर्मल जल 
हमने दिया बदले में अजैविक रासायनिक कचरा मल 
फिर कहते है "गंगा तेरा पानी अमृत "
और वो अमृत अपना अस्तित्व बचाते हो रही  है मृत ,
हम लोग स्वान्तः सुखाय एवं संतुष्टि के आदि है
इसी लिए जाने अंजाने में प्राणधारा श्रोत रूपी गंगा को  
अपमानित कर मजबूर कर रहे है विलुप्त होने को , 

विडम्बना है 
मिलता है मुफ्त ,अमृत गंगा जल है ,
पर कीमत न मुफ्त की ,
स्वार्थी है हम लोग करते माँ से छल है,
सिखाती है अगर आस्था अमृत  विष करना ,
तो लानत है ऐसी आस्था पर जो ढकोसला मात्र है
धन्य है माँ गंगे ,तेरा निर्मल पवित्र ह्रदय विशाल है,
लेकिन प्रश्न ये है की ,
कब तक चलेगी  , इस  विशाल ह्रदय की  सांसों की डोर ,
अन्धी आस्था ,अन्ध विश्वास में लोग है भाव विभोर ,
मजबूत से ज्यादा इसे सब कर रहे  है कमज़ोर 
क्या हम तब जागेंगे जब गंगा मचाएगी शोर ?
ऐसा कभी न होगा क्यों की ,
गंगा त्याग का दूसरा नाम है,त्याग की मूर्ति तो होती है माँ 
माँ केवल  देती है लेती नहीं , इस लिए इसको कहते है गंगा माँ 
असल में हम आप प्रदूषित नहीं कर रहे गंगा को ,
हम अपवित्र प्रदूषित कर रहे है अपनी आस्था को ,
संस्कृति, विश्वास ,और  संस्कार को ,
आओ करे एक प्रण,
प्रदूषण से करे रण 
माँ को अविरल बहने दो
अमृत निर्मल रहने दो ।







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