खजुराहो मूरत |
… तारीफे हुस्न (१०/०३/२०१५ )
पथरीली सख्त है कारीगरी , मखमल सा एहसास है
बर्फीले बदन से उठता धुआँ , आँखों में तपिश देता है ,
आग बर्फ में होती है , ऐ खुदा क्या ऐसा होता है ?,
तेरे हुस्न के इस दरिया में ,लगता है कोई डूबा ही नहीं ,
खामोश रवानी कहती है ,वार्ना छूते ही कोई हिलता नहीं ,
जलने की ज़िद कर लेता तो, शायद जलने से बच जाता ,
तुझको छुने से पहले मैं सर्द हवा का झोंका था
छू कर उलझा तेरे आँचल से , तूफान जेठ का हो गया। ……
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