………* आश्चर्य * ……… १६/०३/२०१५
महसूस होता है मुझको बचपन की याद ,
ख़त्म हुई न उसकी अब तलक मियाद ,
ख़त्म हुई न उसकी अब तलक मियाद ,
अब कोई होता है मरने की कगार पर
पूछते न हाल चाल लोग भूल कर ,
वक्त है न पास किसी के शोक मानाने का ,
चलन ख़त्म हो रहा है किसी की मिटटी में जाने का ,
बड़ा आश्चर्य होता है ……
अपनापन ख़त्म या अपनों से ही मतलब ?
झांको गहराई में तो अपनों में भी गफलत ,
मतलबी हो गए है हम , या चुक गई है संवेदना ?
सुनाई नहीं देती है , किसी को किसी की वेदना ,
रोज़ रोज़ मौत को देख पढ़ सुन कर ,
मौत को देखने सुनने पढ़ने की आदत सी हो गई है
मगर डरता है अपनी मौत से , औरों से क्या मतलब ,
बड़ा आश्चर्य होता है ……
तो क्या हम साश्वत सत्य , "मृत्यु "को समझ रहे है ?
''गीता'' का ज्ञान तो यही कहता है ,
तो क्या हम इतने परिपक्व है ?
यानी मातमपुरसी ,शोक संवेदन सब मित्थ्या है ?
नहीं , ये "भावनात्मक ऊर्जा " मानवता है ,
और इसका अंत नही होना चाहिए
इन्सान कहलाने के लिए ,अनवरत चलना चाहिए,
वार्ना मनुष्य और पशु में अंतर न रहा जायेगा ,
आश्चर्य शब्द का मानो वज़ूद ही ख़त्म हो जायेगा ,
ये सब देख पढ़ सोच समझ कर ,अब आश्चर्य नहीं होता ,
इन्सान अच्छे बुरे हालात से जल्दी कर लेता है समझौता ,
आश्चर्य पैदा करती थी ,पहले हर छोटी सी बात ,
अब आश्चर्य नहीं होता ,हो कैसी भी "बड़ी बात " ,
अगले ही पल हो जाती है वो "छोटी सी बात "
आश्चर्य है के अब आश्चर्य ही नहीं होता ……
आश्चर्य शब्द का मानो वज़ूद ही ख़त्म हो जायेगा ,
ये सब देख पढ़ सोच समझ कर ,अब आश्चर्य नहीं होता ,
इन्सान अच्छे बुरे हालात से जल्दी कर लेता है समझौता ,
आश्चर्य पैदा करती थी ,पहले हर छोटी सी बात ,
अब आश्चर्य नहीं होता ,हो कैसी भी "बड़ी बात " ,
अगले ही पल हो जाती है वो "छोटी सी बात "
आश्चर्य है के अब आश्चर्य ही नहीं होता ……
No comments:
Post a Comment