PUBLISHED IN JANKARI KAAL DELHI MAGAZINE MAY22
******सियासत मौत की******(कटाक्ष)१४/१०/२०१५
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर ,
तू कफ़न के रंग में रहता है ,
क्यूँ मौत की लीला रचता है
लाशों पे सियासत करता है ,
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर .....
ग़म के दरिया का पानी
तू पी कर प्यास बुझाता है
खून से लथपथ लाशों से
मज़हब बदनाम करता है ,
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर .....
इस ज़िन्दादिल दुनियाँ में ,
तू लाशे पैदा करता है ,
सोच है तेरी कब्रिस्तान ,
तू खुद को ख़ुदा समझता है
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर .....
लहू उबाल के जनता का
सरे आम कत्ल करवाता है ,
संगीत सुनाता मातम का ,
शमसान सी राह दिखाता है,
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर .....
चीर कलेजा अपना तू ,
हिम्मत है तो सच बतला ,
तेरी ज़ुबाँ लहू हो जाएगी
जिससे तू मौत बाँटता है ,
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर .....
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