******कई बार ******९ /१०/२०१५
यूँ अँधेरे को ऐसे ना इल्ज़ाम दो ,लोग उजाले में भी तो भटक जाते है ,मुफलिसी पे ना तू ऐसे आंसू बहा ,दौलतमन्द भी भिखारी बहुत होते है ,कोस कर यूँ मुकद्दर को पायेगा क्या ,हौसले से मुकद्दर बदल जाते है ,दूसरों को ग़लत कह के खुद ना बचो ,खुदबखुद भी तो लोग बहक जाते है ,ये ज़रूरी नहीं अपनों में अपना हो ,कई बार ग़ैर भी अपने बन जाते है ,
Sunday, 11 October 2015
Poem on zindagi , life's , KAI BAAR HINDI POEM कई बार - poem on sometimes by sunil agrahari
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हर बार की तरह इस बार भी आपने प्रसन्न कर दिया। ये छन्दबद्ध कविता का सुन्दर प्रयास है। इसे गीत व संगीत से भी सजाइए। बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteहर बार की तरह इस बार भी आपने प्रसन्न कर दिया। ये छन्दबद्ध कविता का सुन्दर प्रयास है। इसे गीत व संगीत से भी सजाइए। बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteदूसरों को ग़लत कह के खुद ना बचो ,
ReplyDeleteखुदबखुद भी तो लोग बहक जाते है ,
Beautiful thoughts!Loved these lines........How easily we are misled by our own self.
Kya baat ! Bhatakne wale phir bhi bhatak jaate hain
ReplyDeleteKya baat ! Bhatakne wale phir bhi bhatak jaate hain
ReplyDeleteWonderful lines ! Congratulations for your wonderful work.
ReplyDeleteWonderful lines ! Congratulations for your wonderful work.
ReplyDeleteयह ज़रूरी नहीं अपनों में अपना हो
ReplyDeleteकई बार गेर भी अपने बन जाते हें
बहुत सुंदर कविता ....गहरी सोच वाली कविता ......बहुत - बहुत बधाई ...