Sunday 11 October 2015

Poem on zindagi , life's , KAI BAAR HINDI POEM कई बार - poem on sometimes by sunil agrahari

******कई बार ******९ /१०/२०१५ 


यूँ अँधेरे को ऐसे ना इल्ज़ाम दो ,
लोग उजाले में भी तो भटक जाते है ,

मुफलिसी पे ना तू ऐसे आंसू बहा ,
दौलतमन्द भी भिखारी बहुत होते है ,

कोस कर यूँ मुकद्दर को पायेगा क्या ,
हौसले से मुकद्दर बदल जाते है ,

दूसरों को ग़लत कह के खुद ना बचो ,
खुदबखुद भी तो लोग बहक जाते है ,

ये ज़रूरी नहीं अपनों में अपना हो ,
कई बार ग़ैर भी  अपने बन जाते है ,




8 comments:

  1. हर बार की तरह इस बार भी आपने प्रसन्न कर दिया। ये छन्दबद्ध कविता का सुन्दर प्रयास है। इसे गीत व संगीत से भी सजाइए। बहुत बहुत बधाई ।

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  2. हर बार की तरह इस बार भी आपने प्रसन्न कर दिया। ये छन्दबद्ध कविता का सुन्दर प्रयास है। इसे गीत व संगीत से भी सजाइए। बहुत बहुत बधाई ।

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  3. दूसरों को ग़लत कह के खुद ना बचो ,
    खुदबखुद भी तो लोग बहक जाते है ,

    Beautiful thoughts!Loved these lines........How easily we are misled by our own self.

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  4. Kya baat ! Bhatakne wale phir bhi bhatak jaate hain

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  5. Kya baat ! Bhatakne wale phir bhi bhatak jaate hain

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  6. Wonderful lines ! Congratulations for your wonderful work.

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  7. Wonderful lines ! Congratulations for your wonderful work.

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  8. यह ज़रूरी नहीं अपनों में अपना हो
    कई बार गेर भी अपने बन जाते हें

    बहुत सुंदर कविता ....गहरी सोच वाली कविता ......बहुत - बहुत बधाई ...

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