Saturday 21 March 2015

, Mai nahi to kya hindi poem मैं नहीं तो क्या- HINDI POEM ABOUT FIRST TIME SCHOOL. GOING CHILD,



....* मैं नहीं तो क्या* ...... 

















एक माँ जब अपने बच्चे को पहली बार स्कूल भेजती है 
तब उसके मन में तमाम सवाल होते है "जैसे वो कैसे  रहेगा  खायेगा ,खेलेगा मेरे बिन , और वो बच्चे को 
पूरे भरोसे के साथ टीचर के पास भेजती है  मासूस करते हुए कहती है। … 


तुम जा रहे स्कूल संग मैं नहीं तो क्या ,




Tuesday 17 March 2015

POEM ON ZINDAGI , LIFES PAR , Aashcharya hindi kavita , आश्चर्य- HINDI POEM ABOUT CHANGING OF LIFE STYLE AND VALUES

 

             




 ………* आश्चर्य * ……… १६/०३/२०१५ 


महसूस होता  है मुझको बचपन की याद ,
ख़त्म हुई न उसकी अब तलक  मियाद ,
देखा है पहले जब कोई  दुःखी  होता था ,
मोहल्ला सारा रिश्तेदार मिलने आता था ,
अब कोई होता है मरने की कगार पर 
पूछते  न हाल चाल लोग भूल कर ,
वक्त है न पास किसी के शोक मानाने का ,
चलन ख़त्म हो रहा है किसी की मिटटी में जाने का ,
बड़ा आश्चर्य होता है  ……



अपनापन ख़त्म या अपनों से ही मतलब ?
झांको गहराई में तो अपनों में भी गफलत ,
मतलबी हो गए है हम , या चुक  गई है संवेदना ? 
सुनाई नहीं  देती है  , किसी को किसी की वेदना ,
रोज़ रोज़ मौत को देख पढ़ सुन कर ,
मौत को देखने सुनने पढ़ने की आदत सी हो गई है 
मगर डरता है अपनी मौत से , औरों से क्या मतलब ,
बड़ा आश्चर्य होता है  ……

तो क्या हम साश्वत सत्य , "मृत्यु "को समझ रहे है ?

''गीता'' का ज्ञान तो यही कहता है ,
तो  क्या हम इतने परिपक्व  है ?
यानी  मातमपुरसी ,शोक संवेदन सब मित्थ्या है ?
नहीं  , ये "भावनात्मक ऊर्जा " मानवता है ,
और इसका अंत  नही होना  चाहिए
इन्सान कहलाने के लिए ,अनवरत चलना चाहिए,
वार्ना मनुष्य और पशु  में अंतर न रहा जायेगा ,
आश्चर्य शब्द का मानो वज़ूद ही ख़त्म हो जायेगा ,
ये सब देख पढ़ सोच समझ कर ,अब आश्चर्य नहीं होता ,
इन्सान अच्छे बुरे हालात से जल्दी कर लेता है समझौता ,
आश्चर्य पैदा करती थी  ,पहले हर छोटी सी बात ,
अब आश्चर्य नहीं होता  ,हो कैसी भी "बड़ी बात " ,
अगले ही पल हो जाती है वो  "छोटी सी बात "
आश्चर्य है के अब आश्चर्य ही नहीं होता  …… 













Monday 16 March 2015

MAA GANGA माँ गंगा HINDI POEM KAVITA BY SUNIL AGRAHARI , ganga ji ki hindi kavita






   *  माँ गंगा *


आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण है माँ गंगा 
बहुत दिनों तक शायद ना रह पायेगा अब चंगा 
खुद को हम तार रहे , माँ गंगा को मार रहे ,
अपनी ही अर्थी से माँ को सजा दे रहे 
कैसी है आस्था कैसा है विश्वाश 
तिल तिल कर मर रही है माँ गंगा की आस 
गंगा ने मुक्ति दी पापों से ,दिया विशुद्ध निर्मल जल 
हमने दिया बदले में अजैविक रासायनिक कचरा मल 
फिर कहते है "गंगा तेरा पानी अमृत "
और वो अमृत अपना अस्तित्व बचाते हो रही  है मृत ,
हम लोग स्वान्तः सुखाय एवं संतुष्टि के आदि है
इसी लिए जाने अंजाने में प्राणधारा श्रोत रूपी गंगा को  
अपमानित कर मजबूर कर रहे है विलुप्त होने को , 

विडम्बना है 
मिलता है मुफ्त ,अमृत गंगा जल है ,
पर कीमत न मुफ्त की ,
स्वार्थी है हम लोग करते माँ से छल है,
सिखाती है अगर आस्था अमृत  विष करना ,
तो लानत है ऐसी आस्था पर जो ढकोसला मात्र है
धन्य है माँ गंगे ,तेरा निर्मल पवित्र ह्रदय विशाल है,
लेकिन प्रश्न ये है की ,
कब तक चलेगी  , इस  विशाल ह्रदय की  सांसों की डोर ,
अन्धी आस्था ,अन्ध विश्वास में लोग है भाव विभोर ,
मजबूत से ज्यादा इसे सब कर रहे  है कमज़ोर 
क्या हम तब जागेंगे जब गंगा मचाएगी शोर ?
ऐसा कभी न होगा क्यों की ,
गंगा त्याग का दूसरा नाम है,त्याग की मूर्ति तो होती है माँ 
माँ केवल  देती है लेती नहीं , इस लिए इसको कहते है गंगा माँ 
असल में हम आप प्रदूषित नहीं कर रहे गंगा को ,
हम अपवित्र प्रदूषित कर रहे है अपनी आस्था को ,
संस्कृति, विश्वास ,और  संस्कार को ,
आओ करे एक प्रण,
प्रदूषण से करे रण 
माँ को अविरल बहने दो
अमृत निर्मल रहने दो ।







Friday 13 March 2015

Women's day hindi poem, WOMAN'S SAFETY, Balaatkaar hindi poem , बलात्कार- HINDI POEM ON RAPS , WOMAN'S SAFETY , SOCIAL PROBLEMS, MAHILA SURAKSHA BY SUNIL AGRAHARI , SAMJIK VITRITI

 




*बलात्कार *१३/०३/२०१५  





इज़्ज़त अस्मिता का हरपल हो रहा शिकार ,
कोई जी के मर ,कोई मर के जी रहा है बार बार ,
नष्ट हो रहा है ,सामाजिक शिष्टाचार का आकार ,
सामाजिक भूखे भेड़ियों में, मानसिक विकार, 
पुरुष ने  नारियों  का  ,कर  के  तिरस्कार ,
अपनी ही कमजोरियों का, कर के बहिस्कार, 
दोष देते नारियों को, करते नहीं स्वीकार ,
ये तो अज्ञान पुरुषो के पुरुसत्व की है हार, 
परिवार में ख़त्म हो रहे है ,जैसे संस्कार ,
रूढ़िवादी , अबला को समझते हैं बेकार 
पहले बलात्कारी, करता है बलात्कार
फिर कोर्ट में , सालो साल तारीख से बलात्कार
कानून का भय नहीं ,सब धराशाही लाचार ,
स्त्री के मर्यादा से नहीं कोई सरोकार, 
झूठी इज़्ज़त के खातिर ,सच्ची  इज़्ज़त का बलात्कार,
नारित्वा रौंदा करते ,अबला को तार तार  ,
सीता बच सकी न ,द्रोपदी थी  लाचार ,
कन्या भ्रूण हत्या भी है इक बलात्कार ,
पैदा होने से पहले ही करते अंतिम संस्कार ,
नारी उत्थान का सपना कब होगा साकार ?
पुरुष  समाज में स्त्री मर्यादा का कब होगा संचार ?
कब देवी जैसी नारियों की होगी जय जयकार ? ....... ३ 







Wednesday 11 March 2015

hashya vyangya kavita -Asar bivi ka hind haasya kavita,i असर बीवी का- HINDI FUNNY POEM ON WIFE'S BY SUNIL AGRAHARI


                 

 






 ****असर बीवी का**** व्यंग्य - ११/०३/२ ०१५ 

हार्मोन्स बदलते हैं  जैविक क्रिया होती है 
नतीजे में शादी जैसा रोग लग जाता है ,
दवाओं सा असर है बीवियों का पतियों  पे ,
कौन सी ये पैथी  है , समझ नहीं आता है ,

शादी होते पतियों की ऐसी तैसी होने लगे ,
घर अस्त व्यस्त,सैलरी भाप बन उड़ने लगे 
कैप्सूल सुई जैसे बातें शूल लगने लगे ,
बीवी का असर जानो एलोपैथी वाला है ,

 सीधी सादी मीठी मीठी  गोली दे के बाते करे ,
बातो का असर उसपे काफी देर बाद करे ,
हलाल मीठी छूरी जैसे मदरटिंचर करने लगे ,
बीवी का असर जानो होमियोपैथी वाला है ,

काढ़े सा पकाये सबको रात दिन कढ़ाई में ,
पुरखों सी बातें करे अपनी बड़ाई में ,
खसम भसम करे लौह भस्म जैसा ,
बीवी का असर जानो आयुर्वेदिक  वाला है ,


poem on zindagi, social life's -Kaaran hindi poem कारण - HINDI POEM ON LIFE'S DEFEAT AND WIN , haar jit saflta ki hindi kavita BY SUNIL AGRAHARI

       







         




                      कारण


साम दाम दण्ड  भेद , दुनिया इससे जीतती है ,

जो जीता वही सिकन्दर , दुनिया मुहावरा कहती है 
  कारण चाहे जो भी हो , जीत तो जीत होती है ,

कोई हार गया मुकद्दर से , कोई हारा हिम्मत से ,
 कोई हारा हालातो  से ,कोई औलाद की ज़िल्लत से 
 कारण चाहे जो भो हो  , बाबू हार  तो हार  होती है ,  

भूख रोग दुर्घटना से , कोई मरा ज़लालत बातों से ,
मौत मुफलिसी एक है , कोई मर रहा जज़्बातों से ,
   कारण चाहे जो भो हो  , मौत तो मौत होती है ,

शासन सत्ता इज़्ज़त की भूख , रोटी कपड़ा मकान की ,
आशिक़ को माशुका की ,वारिस भूख खानदान की ,
    कारण चाहे जो भो हो  , भूख  तो भूख  होती है ,  

Tuesday 10 March 2015

poem on pyar ,muhabbat, love ,Khoobsurti hindi kavita ,तारीफे हुस्न -खजुराहो मूरत, stri sundarta , yaovan par kavita







खजुराहो मूरत

        

 … तारीफे हुस्न     (१०/०३/२०१५ )         






खजुराहो मूरत सी बोतल में हुस्ने नशा  बेशुमार  है ,
पथरीली सख्त है कारीगरी , मखमल सा एहसास है 
   
बर्फीले बदन से उठता धुआँ , आँखों  में तपिश देता है ,
आग बर्फ में होती है , ऐ  खुदा  क्या  ऐसा होता है ?,

तेरे हुस्न के इस दरिया में ,लगता है कोई डूबा ही नहीं ,
खामोश रवानी कहती है ,वार्ना छूते ही कोई हिलता नहीं ,

तुझे आग समझ मैं दूर रहा , छूना मुनासिब न समझा ,
जलने की ज़िद कर लेता तो, शायद जलने से बच जाता ,

तुझको   छुने  से पहले मैं  सर्द  हवा का झोंका था 
 छू कर उलझा तेरे आँचल से , तूफान जेठ का हो गया। ……













Wednesday 4 March 2015

Diwaar hindi poem , दीवार , diwar par kavita , simaa rekha poem ,contemporary hindi kavita





………दीवार  …… ०५/०३/२०१५ 

ईट , कच्चे गारे , या  लकड़ी की दिवार ,
मैं हूँ  कितनी उपयोगी , ऐ परवरदिगार ,
कभी बना मैं पीर मज़ार की दिवार ,
सर को छुपाने को छत की दिवार ,
जुर्म को करने छुपाने की  बनी आड़ की दिवार ,
जानवरो के खातिर कच्चे बाड़  की दिवार   ,
रिश्तों में आई खटास तो दिल में खीच गई दिवार ,
देश बट गए तो  सीमा पर बन गई दिवार ,
इतिहास गवाह है जैसे के  बर्लिन की दिवार ,
इंसानी हिम्मत का नमूना चीन की दिवार ,
बदरंग हो जाता हूँ नेताओं के नाम टैटू छपवा कर ,
ज्योतिष तांत्रिक, बाबा ,इन्वर्टर बैटरी  का नाम लिखवा कर ,
विज्ञापन जगत कमाई करता है इश्तहार  लिखवा कर ,
स्त्री रोग ,मर्दाना कमजोरी वाले डाक्टर का पता बता कर,
मुहब्बत अनारकली की  दफ़न हुई , दिवार में चुनवा कर ,
बदनाम हुआ  " दीवारों के भी कान होते है " मुहवारा बन कर ,
इंसानो के बड़े राज छुपा रखा है सीने में दबा  कर ,
"दीवारे बोल उठेंगी " इंतज़ार है , विज्ञापन में सुन कर 
मगर हैरानी है ऐ इन्सा , तुझे दू बद्दुआ या करू शुक्रिया 
इतनी इज़्ज़त दे कर तूने मुझपर  सूसू भी किया 
चलो दिल बड़ा है हमारा माफ़ तुमको किया  
मुझपर रहम कर  बस इतना 
के ……… 

"मजबूत बनाना सर छुपाने के  छत की दिवार ,
और कमजोर बनाना दिलों को बांटने की दिवार "  ……।