ऐ क्रूर कोरोना सुन ले ज़रा ,तू कितने इंसा मारेगा
हम आदम की औलादे है ,तू ख़त्म नहीं कर पायेगा।
बूढ़े बच्चे और जवां ,सब को तू हर पल मार रहा
अरे घोंट मेरा दम कितने भी ,ना आस ख़तम कर पायेगा।
सदियों से ज़ुल्म मनुष्यों पर ,हर तरह से होते आया है
अरे तूभी कर ले अपने सितम ,भरम तेरा मिट जाएगा।
गद्दार है जो तेरे साथ खड़े,तू उनका भी तो सगा नही
भस्मासुर की औलाद है तू,इंसान ही तुझे मिटाएगा ।
कुछ पल को तू मुझे हरा सकता ,दुनियाँ शमशान बना सकता
पर इंसा वीर एक योद्धा है ,तू इसको जीत ना पायेगा।
धरती पर इंसा का वज़ूद.ना मिटा था ,ना मिटने पायेगा
हम तुझको तुझसे मारेंगें ( वैक्सीन ),मेरी चाल तू समझ न पायेगा।
माना की आज अंधेरा है,संगी साथी सब बिछड़ रहे
इंसान उम्मीद का दीपक है,उस लौ में तू भस्म हो जाएगा ।
लालच गिद्ध कालाबाज़ारी का,वायरस कब मारा जाएगा ?
गद्दारी से जीत का टीका,जाने कब इंसा बनाएगा ।
Wah Wah
ReplyDeleteBahut sundar 👌
Bahut bahut shukriya
DeleteGood Sir Nice Poem written
ReplyDeleteThank u so much .
DeleteHaalate e Bayan aaj ke daur ka bade hi khubsurati se Kia hai.
ReplyDeleteकविता को अपना अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार।
DeleteBeautifully written Sunil,great
ReplyDeleteकविता को अपना अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार।
DeleteBeautifully expressed!!
ReplyDeleteकविता को अपना अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार।
DeleteSir bahut badiya likha h उम्मीद का दीपक जलता रहेगा ऐसी कामना है
ReplyDeleteकविता को अपना अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार।
DeleteVery well said
ReplyDeleteThank u so much .
DeleteSir, Too good !!!
ReplyDeleteThank u so much mam.
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