Thursday 25 September 2014

Poem on zindagi , relationship ,Maati aadam ki hindi poem , माटी - आदम की - hindi poem on human nature

  
Published in  Mauritius 
Magazine - Akrosh
January 19

   माटी - आदम की  ...... (२५ /०९/२०१४ )

ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की 
जिससे बनाता  आया है अब तक उसका जिस्म ,

ये माटी अब कच्ची सी लगती है ,
नहीं बर्दाश्त कर पाती ज़िन्दगी के छोटे बड़े सदमे,

जो मिलते है, देते है ,एक दूसरों को,
सगे, अपने, पराये और अन्जान से  ,
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी   मेरे आदम की ……………… 

आप की माटी तो ऐसी ना थी 
जो दे किसी को धोखा ,
रिश्तों की थी इज़्ज़त 
 जैसे छत को दीवार पर भरोसा ,
ये कैसी माटी है ?
जिम्मेदारी की कमी सी इसमें आ रही  है ,
इस माटी में रिश्तों की मियाद खत्म सी  हो रही है ,
बड़ी जल्दी घुट रहा है दम रिश्तों का ,
दरारें  पड़ रही है ,
कई बार तो छूने से चिटक जा रही है 
हद तो होती है तब 
जब देखने मात्र से ही बिखर जा रही है 
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी   मेरे आदम की ………………

एक रिश्ता भी बताये इन्सान

जिसका ना  हुवा हो अब तक अपमान  ?
छोटी छोटी बेजान चीज़ो के खातिर
ले लेता है आदम मसूमों की जान ,
सवाल ये नहीं की  इंसान मर रहा है ,
ये तो पैदा  होते ही हैं मरने के  लिए ,
मगर ये अपने पीछे छोड़ जाता  है " भाव" 
नए पैदा होने वालों के लिए ,
सवाल ये है की वो  "भाव"  जैसे ,
भरोसा ,रिश्ता,शिष्टाचार और अन्य भावों  का  
हो  रहा है क़त्ल और अपमान ,
खुद को ख़ुदा  समझ रहा इन्सान ,
तो आप के बनाये आदम का कैसे होगा  सम्मान   ? 
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी   मेरे आदम की …………………

आप की माटी ऐसी तो न थी ,

ऐ खुदा आप से है इल्तज़ा ,
ख़त्म कर दे इस माटी के  सीलन की बू ,
भर दे इनमे पहली बरसात की सिली सोंधी माटी की खुशबू  ,  
दे दे माटी के सुराही का ठण्डा मीठा सा स्वभाव ,
जिसका हो रहा आप के आदम में अभाव ,
हो सके तो बदल दे अपने आदम की माटी
हो सके तो बदल  दे मेरे आदम की माटी 
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी   मेरे आदम की …………………




Monday 22 September 2014

poem on love , pyar , muhabbat , romantic memories यहीं हो





..यहीं हो    … २३ /०९/२०१४ 

लम्हा बासी भी  न हुवा था अभी उनके जाने के बाद ,
आई एक महकती मासूम मुलायम मखमली सी हवा 
छू कर मुझे सुबह सुबह समुद्र से निकलती अंजान 
कच्ची धूप की ताज़ी किरन सी उनकी याद ताज़ा करा गई 
उनका भोर में  अलसाया सा  चेहरा 
कमल नयन के किनारे लाल डोरे की नमी 
पीपल के पत्ते से  हवा में झूलते माथे पर बाल 
हरसिंगार के फूल की गुलाबी पंखुड़ी से गाल
और होंठ हो जैसे  उसकी डंठल केसरिया लाल 
आपस में एक दूसरे से शर्मा कर कह रहे हो 

काली घटा सी  गेसुओं में छुपा लो हमें
कही नज़र न लग जाये किसी की ,
खेत में रसीले गन्ने की खड़ी  फसल सी तरुणाई 

महुवे के फूल की मादक  खुशबू के नशे  में चूर 
उनके नाज़ुक बेल सी बाँहों में उलझ कर झूम रहा हूँ 
हाथो की उंगलियां मेरे बालों के बीच इस तरह फसी थी 
जैसे बेल की छोटी छोटी  जड़े पेड़ पर अपनी पकड़ बना  रही हों 
वो मेरा सरमाया है जो चारों तरफ  छाया है 
महसूस करता हूँ वर्तमान काल में 
जब की भूतकाल हो चूका है सब कुछ 
कैसे कहूँ की तुम नहीं हो....... तुम यहीं हो यहीं हो    ............. 

सांसों की ताल , अगन की तृप्ती 
तुम्हारे एहसास में बीते हुवे बिस्तर पर 
मेरे जिस्म के एक एक करवट का आराम हो, 
रात में तुम्हारे ख्वाब को जीने के बाद 
सुबह की अंगड़ाई का मीठा दर्द हो ,
मुमकिन नहीं तुम्हे याद न करूँ हर बार सोचता हूँ 
मगर क्या करूँ तुम मेरे स्वभाव में शामिल हो ,
तुम्हारे न होने के एहसास में 
होने को महसूस कर तिल तिल जी रहा  हूँ ,
ये मेरे मुहब्बत की पराकाष्ठा है 
के तुमपे  मर के ही जी गया हूँ 
कैसे कहूँ की तुम नहीं हो.......हैं  ?  तुम यहीं हो यहीं हो    ............. 

मेरे जिन्दगी का तिनका तिनका
तुम्हारे वफ़ा के जज़्बात के रौशनी से नहाया हुवा है 
और बर्फीली  झील के ठन्डे मीठे की सी 
तासीर  बस गई है बदन  के  रोम रोम में ,
करते हो इश्क़ जिस शिद्दत से
उसके सामने अपने आप को बौना पाता हूँ 
लेकिन इश्क़ इश्क़ होता है ,बस उसकी  अदा अलग होती है 
मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे लिए 
मेरा  आवारापन  बंजारापन दीवानपन 
और सारी  दुनियां के लिए पागलपन 
खो रहा हूँ अपना वज़ूद 
तुम्हारे बिना मेरा होश तार्रुफ़ कराती है बेहोशी का  
मत निकालो मुझे इस दरिया से 
मैं  इसी में डूबना  चाहता हूँ 
क्यों की  तुम यहीं हो यहीं हो    ...........कैसे कहूँ की तुम नहीं हो.......













Sunday 21 September 2014

Poem on train journey ,अपाहिज शिष्टाचार hindi kavita - true poem on Mumbai local train , very inspiring .



  




***अपाहिज शिष्टाचार ** २२/०९/२०१४ 

      यात्रा वृतांत  (सत्य घटना ) 
लोकल ट्रेन स्टेशन पे  रुकी रोज़ की तरह ,
आँखे तलाश रही थी मेरी , बैठने की जगह ,
मै घुसा डिब्बे में  पिता जी के साथ , 
एक बुज़ुर्ग ने आवाज़ दी मुझे, हिला के हाथ ,
कहा ,आओ बेटा यहाँ बैठो बाबू जी के साथ ,
वो डिब्बा था ख़ास अपाहिज और बीमार लोगो का ,
जैसे उम्मीद ,दर्द ,शांति, से भरे हौसलों  का ,
कोई महिला गर्भावस्था में,
तो कोई बुज़ुर्ग ज़र्ज़र अवस्था में,
जीवन की चाह से भरपूर 
ज्यादातर लोग दुखों से द्रवित ,
मेरे पिता जी ऊपर से स्वस्थ 
मगर अंदर थे  कैंसर से ग्रसित,
ये सब लोग संतुष्ट है या असंतुष्ट, मै  था असमंजस में ,
क्यों की इंसानियत की नूर टपक रही थी 
इनके  सब के चहरे के नस नस में , 
लेकिन हाव भाव थे ऐसे , जियेंगे सदियों जैसे ,
इनकी ज़िन्दगी की शाम ढलने वाली है
ना ज़रा भी था मलाल ,
सब कर रहे थे एक दूजे का ख़याल ,
दूजो के आँसू पोछने को निकल रहे थे कई  रुमाल ,
मै  कर रहा था उनके ज़िन्दादिली को मन ही मन सलाम,

यहाँ के माहौल से मेरी आँखें नम 

ह्रदय करुण क्रंदन  कर रहा था  ,
"टाटा मोरियल कैंसर अस्पताल आने वाला था 
मैं उठा , पिता जी उठे और ....... 
उठा मेरे मानस पटल पर  
एक झकझोरता सा सवाल 
क्या होता जा रहा है हमारी सामजिक संवेदनाओं  को ?
ख़ुदा ने जिनको बख्शी है पूरी नियामत ,
घर, परिवार से सुखी और शरीर से सलामत ,
वो क्यों  हो रहे है इंसानियत से दूर और स्वार्थी ?
चूर है मस्ती में नहीं मतलब किसी की भी हो अर्थी ,
क्यों  लोग किसी की परवाह नहीं करते?
उनका भी वख़्त  आएगा क्यूँ नहीं डरते ?
क्यों नहीं बढ़ते हाथ एक अदद  ?
किसी  की करने  को मदद ,
कब जागेगी सहानुभूति असहायों के लिए  ?
धन के नशे में चूर, पढ़े लिखे अज्ञानी ,सभ्य समाज के वासी  ,
शायद इन सब का शिष्टाचार अपाहिज हो रहा है 
ओ मेरे  ख़ुदा मेरी आप से है दुआ 
जिनको गुमाँ  है अपनी नियामत पर , 
उनको दुःख का एहसास ज़रूर कराना क़यामत पर , 
शायद ठीक हो जाये हमारा अपाहिज शिष्टाचार……… 
शायद ठीक हो जाये हमारा अपाहिज शिष्टाचार……… ……………

नोट -----

ये  घटना काल्पनिक नहीं मेरे साथ घटित  हुई २००८  में  , किसी को ठेस पहुंची हो तो माफ़ी चाहता हूँ , मेरी हार्दिक गुज़ारिश है कृपया मेरे भावों को समझने की कोशिश ज़रूर करें  .  ) धन्यवाद। .... 


रचनात्मक प्रतिभा शिक्षक सम्मान 

Saturday 20 September 2014

Poem on women's life's , क्यों झुकायें सर- hindi kavita on women's day , women's problems. Sunil agrahari

  



 

**क्यों झुकायें  सर**१७ /०९/२०१४ 

(मेरी ये कविता समर्पित है सम्पूर्ण सम्मानित नारीयों की तरफ से उन  अत्याचारी पुरुषों को जो अपमानित करते हैं महिलाओं को )




हमी हम क्यों झुकायें सर,ये दुनियाँ भी हमारी है 
किसी की हम नहीं जागीर , इज़्ज़त भी हमारी है 
कभी डर छोड़ कर तुम भी रहो  ससुराल में आकर ,
करो सेवा ससुर और सास की खाना  तुम बना कर 
मगर हिम्मत नहीं पड़ती , रीतियों का आड़ लेते हो ,
दहेज़ के नाम पर बहुओं  को ज़िन्दा ही जलाते हो
पति की मौत पे नारी ही चिता में क्यों  जलती  है
करे बीवी के मरने पे जौहर , शौहर में ग़र हिम्मत है 
हमी हम क्यों झुकाये सर  ………… 

कभी कोठे पे बैठे हम ,कभी घर बर्तन मांजे हम ,

कभी न बन पाएं माँ या वारिस ना दे सके हम ,
बाँझ औरत कह के बेइज़्ज़त घर से भागते हो ,
कभी ऐसा  भी होता है दोष तुम्हरा होता  है
मगर वो दोष तुम्हारा भी मेरे हिस्से में होता है
अगर हिम्मत है तो ये इल्ज़ाम  ले लो सर 
हमी हम क्यों झुकाये सर  …………… 

टीका और सिन्दूर रखे व्रत परुषों  के खातिर ,

कभी तुम पहनो मंगलसूत्र , रखो व्रत महिला  के खातिर ,
शरम आती नहीं तुमको बल अबला पर दिखाते हो
मन्दिर में पूजा देवी की ,सड़क पे  बलात्कार करते हो ,
कभी तो समझो  इज़्ज़त , राखी ,करवाचौथ, माँ का प्यार 
नहीं तुम मर्द हो डरपोक शिकार औरत का करते हो
ना समझो  तुम के नारी है केवल भोग के काबिल ,
तुम्हारी हर मुश्किल में निकाल के रख देती अपना दिल ,
हमी हम क्यों झुकाये सर  ………

नहीं हिम्मत , करो तुम सामना ईमान से  किसी भी  नारी का ,

क्यों कि , हर इक कोने में सम्मान हो रहा है नारी का,
पहुँच गए चाँद तारों पे हम ,तुम्हें चूल्हा चक्की में दिखते हैं ,
नज़रे खोल के देखो हम ऊँचाई पर भी देखते है 
जहाँ के हर एक काम में, नाम हो रहा है नारी का ,
सदियों से रही आदत, किया अपमान नारी का,
परीक्षा अग्नि में सीता , सभा में द्रोपदी निर्वस्त्र,
छुपाते नाकामी अपनी , चलाते हो हमपे अस्त्र ,
हमी पर दाँव परीक्षा क्यों , हमी पर दाँव परीक्षा क्यों,
सहेगी अब नहीं नारी , सहेगी अब नहीं नारी , 
सोच पुराना सदियों का ,नहीं अब चलने वाला है,
चली अब तक है  पुरुषों की , जाग चुकी अब नारी है  ,
हमी हम क्यों झुकाये सर   ................ 

जौहर=पती  के मृत्यु के बाद (चिता में जलना ) 

Friday 19 September 2014

Poem on special guest , मुख्य अतिथि - hindi kavita on chief guest , sunil agrahari

                                                               मुख्य अतिथि 

 

मैंने ये रचना आदरणीय श्री मलेकर जी के व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर रची है,जब वो  AHLCON INTERNATIONAL SCHOOL में मुख्या अतिथि बन कर आये थे , उनके बारे में ये रचना सूरज को रोशनी दिखने जैसा है। हार्दिक शुक्रिया श्री अशोक पाण्डे जी  का जिनकी वजह मिलना सम्भव हो पाया। 





मुस्कुराते प्रधानाचार्य  जी से वो कर रहे थे जिरह 
बच्चों की प्रतिभा से प्रफुल्लित  हो रहे थे 
और अतिथियों की तरह ,
अमूमन लोग जाते है मुख्या अतिथि बन कर  
अनगिनत ख्वाहिशो के साथ ,
कद होगा ऊंचा व्यवहार होगा उम्मदा उनके साथ 
नाम होगा उनका गले फूलों का हार 
इज़्ज़त नवाजी होगी हाथो में भर उपहार ,
मगर उलट इन सब से देखा इनका व्यवहार
'सेन्टा ' बन बाँट रहे थे तोहफे और प्यार  ,
और जब आते है श्रोताओं को करने सम्बोधित ,
करते है मंत्रमुग्ध विचारों से सम्मोहित ,
असहमत उनके बात से कोई एक भी न था वहाँ  ,
सहमति जताते बैठे थे लोग जहाँ तहाँ ,
समझ थी उनमे समाज धर्म मानवता और कर्म की ,
ग़र वैसा हो समाज , जो सोच थी उनकी 
न होगा कोई दंगा , न होगा कोई फसाद ,
होगी इन्सानियत , फैलेगा भाईचारा ,
ग़र मौका मिले किसी को मुख्या अतिथि बनने का ,
भाव यही होना चाहिए , चाहे घर हो किसी का   .......       



                                                                                          



SUNIL AGRAHARI
MUSICIAN AND POET  
CORDINATOR ACTIVITY 
AHLCON INTERNATIONAL SCHOO











Tuesday 16 September 2014

neta ji hindi kaviat अरे नेता जी ( व्यंग्य )-, hindi poem on corrupt leaders

  

  … अरे नेता जी  ( व्यंग्य  ).... 

मरो तुम तो झुके झंडा 
मरे हम तो मिले अंडा ( शून्य )
करे  हम बात हक़ की तो 
पुलिस  बरसाती है डंडा ,

शपथ लेकर बने नेता ,आई जनता की शामत  है 
खिला तेरा मुकद्दर है  ,तो मैली आज खद्दर है ,

तू मातम का है सौदागर ,
छलकता पाप का गागर
तेरा तो खेल है दंगा,तू आँखों के है संग अँधा ,

खरीदा वोट देके नोट ,
सियासत में भी भर दी खोट ,
हमें तो होती है हैरत ,बची न तुममे  कुछ गैरत ,

तुमसे तो भली वैश्या,
बेचती है जो अपना तन
तुम इससे हो गए गुज़रे,बेचते हो अपना वतन

वतन की आबरू इज़्ज़त

बचाई जान दे कर के ,
पुराने थे वो कैसे नेता
न उनके पास कुछ भी था

मिटे वो देश के खातिर

वफादारी नहीं छोड़ी ,
तूने बेच दिया इज़्ज़त,
कफ़न  तक उनकी ना छोड़ी 
नहीं बेचा अपना ज़मीर
आज़ादी के बदले में ,
चाहे रह गए फ़क़ीर ,
कंगाली के बंगले में ,
सलाम उनको तहे दिल से,
करो ऐ देश की जनता ,
करो इज़्ज़त शहादत की
के उनका हक़  हमपे  बनता,
झंडा  कहता है  नेता  जी से ……………


तम्हारे शोक में झुकता नहीं झंडा ऐ नेता जी

शरम से झुकता हूँ मजबूर हूँ लाचार  नेता जी
बिना झंडे के हो गए दफ़्न , वतन को नाज़ है  जिनपे 
सलाम उनको नमन मेरा  ,फहरता   हूँ  उनके  दमपे ,





Monday 15 September 2014

वक़्त की बिसात - , hindi kavita on game of times , destiny

       

....   वक़्त की बिसात   ....... १६ /०९ / २०१४ 
वक्त की बिसात पर मुकद्दर  की चाल तय है ,
न एक घर काम न घर ज्यादा 
कहीं ख़ुशी मिले कम कभी ग़म मिले ज्यादा ,

वक्त जितना चाहता है मुकद्दर देता है वही ,
हमारे हिसाब से होता है कुछ गलत या सही ,
लकिन ज़िन्दगी में ऐसा होता नहीं
 जैसा चाहो जब चाहो जो चाहो मिल जाये वही 
जिससे बचना चाहो सामने आता है वही ,
मन के कोने में हमेशा एक शिकायत सी बनी रहती है 
वक्त की बिसात पर   ………। 

वक्त दोहराता है कई बार कहानियां ,
किरदार बदल जाते है , बदलती है रावनियाँ ,
मगर वापस नहीं देता किसी की जवानियाँ ,
पैदा होते है मरते है सब इसके सामने 
बर्बाद आबाद होता है इसके सामने 
किसको मिलेगी मन्ज़िल , कौन मिल जायेगा धूल  के गुबार में ,
ये इतिहास बनाने में है माहिर , मगर करता नहीं ज़ाहिर ,
वक्त की बिसात पर     ......................... 

कहते है वक्त का हर शै ग़ुलाम , वक्त ही इबादत वक्त को सलाम 
लिखता यही है सब के कलाम ,
कोई भी रहा न इससे अछूता , करे इसका सामना न है किसी में बूता ,
वक्त तो हर काम का बनाता है  बहाना ,
हम देते रह जाते है एक दूसरे को ताना ,
वक्त अथाह समुद्र है इसको पार पाना मुश्किल ही नहीं न मुमकिन है ,
जो इससे ताल मिला बहाव में तैर पाया वो वर्तमान होता है ,
वक्त की बिसात पर   ......................... 

एक अजीब सी डोर से बाँध रखा है सारी कायनात को , 
सब हँसते गाते रोते थकते सोते जागते सफर तय करते है ,
सारी  दुनियां का मुंसिफ़  , हर   लम्हे पे इसका पहरा है ,
फैसला होता है अटल , सजा सब की मुकर्रर है ,
 किसी को मिली आह ,किसी को मिली वाह ,
ये सगा न किसी का ,न  रत्ती भर परवाह किसी  की,
 सुदामा को   भी न बख्शा , सखा थे कृष्णा के जब की ,
भटकाया दर दर , किया दाने दाने  को मोहताज ,
कराया गलती का एहसास , फिर दिया सुख का ताज ,
वक्त की बिसात पर    ……………… ....... 

Monday 1 September 2014

substitution song - , funny hindi poem on school teachers

                                             

                                                                                                                        पायो जी मैंने सबसी रतन धन पायो   ……  रतन धन पायो ----२ 


                              १-जिसने भी न सबसी पाई 
                                वो क्या जाने पीर पराई 
                                जीवन व्यर्थ गवायो। …… पायो जी मैंने सबसी

                         २-खाली prd . सब को भाये ,
                           सबसी का जो, दुश्मन कहलाये 
                         लिए बिन सबसी, लिए पछतायो … पायो जी मैंने सबसी

                         ३-सबसी बिन मुझे चैन न आये 
                            पेट में गैस सिर दर्द सताए 
                            खली काम बढायो  ……… पायो जी मैंने सबसी

                        ४-  बच्चे क्लास में शोर मचाये 
                            सुन कर मेरा जी घबराये 
                    टीचर्स की वाट इंचार्जेस लगायो    ....... पायो जी मैंने सबसी

                        ५- fd , od  hd  ,ने सबसी बनाई 
                             इसका अंत नहीं कोई भाई 
                             साढ़े सत्रह नारियल चढायो 
                            २१ कुण्ड का हवन करायो 
                            फिर भी पार न पायो   … ....... पायो जी मैंने सबसी

                     ६-सबसी देने का टाइम जब आयो 
                      एक्टिविटी पर नज़र गडायो 
                     साढ़े साती उन टीचर्स पर  आयो    ....... पायो जी मैंने सबसी
                                 
                    ७ -धड़कन सबसी चार्ट  बढ़ायो ,
                      किस prd . में मुसीबत आयो ,
                      नाम कहीं जब अपना ना पायो ,
                     मन ही मन हरसायो   ………..... पायो जी मैंने सबसी                                 

               ८ -सबसी को appreciate कराओ 
                    सबसी को पेमेंट  दिलवाओ 
                   बेस्ट सबसी टेकर अवार्ड दिलाओ 
                  तब हर कोई सबसी गुण  गायो 
                   क्या गयो   ……। 
                  सुनो जी मैंने दस सबसी निपटायो
                 सुनो जी मैंने एक्स्ट्रा    पैसा कमायो 
                 पायो जी मैंने सबसी रतन धन पायो