Published in Mauritius Magazine - AkroshJanuary 19
माटी - आदम की ...... (२५ /०९/२०१४ )
जिससे बनाता आया है अब तक उसका जिस्म ,
ये माटी अब कच्ची सी लगती है ,
नहीं बर्दाश्त कर पाती ज़िन्दगी के छोटे बड़े सदमे,
सगे, अपने, पराये और अन्जान से ,
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की ………………
आप की माटी तो ऐसी ना थी
रिश्तों की थी इज़्ज़त
जैसे छत को दीवार पर भरोसा ,
ये कैसी माटी है ?
जिम्मेदारी की कमी सी इसमें आ रही है ,
इस माटी में रिश्तों की मियाद खत्म सी हो रही है ,
बड़ी जल्दी घुट रहा है दम रिश्तों का ,
दरारें पड़ रही है ,
दरारें पड़ रही है ,
कई बार तो छूने से चिटक जा रही है
हद तो होती है तब
जब देखने मात्र से ही बिखर जा रही है
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की ………………
एक रिश्ता भी बताये इन्सान
जिसका ना हुवा हो अब तक अपमान ?
छोटी छोटी बेजान चीज़ो के खातिर
ले लेता है आदम मसूमों की जान ,
सवाल ये नहीं की इंसान मर रहा है ,
ये तो पैदा होते ही हैं मरने के लिए ,
मगर ये अपने पीछे छोड़ जाता है " भाव"
नए पैदा होने वालों के लिए ,
सवाल ये है की वो "भाव" जैसे ,
भरोसा ,रिश्ता,शिष्टाचार और अन्य भावों का
हो रहा है क़त्ल और अपमान ,
खुद को ख़ुदा समझ रहा इन्सान ,
तो आप के बनाये आदम का कैसे होगा सम्मान ?
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की …………………
आप की माटी ऐसी तो न थी ,
ऐ खुदा आप से है इल्तज़ा ,
ख़त्म कर दे इस माटी के सीलन की बू ,
भर दे इनमे पहली बरसात की सिली सोंधी माटी की खुशबू ,
दे दे माटी के सुराही का ठण्डा मीठा सा स्वभाव ,
जिसका हो रहा आप के आदम में अभाव ,
हो सके तो बदल दे अपने आदम की माटी
हो सके तो बदल दे मेरे आदम की माटी
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की …………………
एक रिश्ता भी बताये इन्सान
जिसका ना हुवा हो अब तक अपमान ?छोटी छोटी बेजान चीज़ो के खातिर
ले लेता है आदम मसूमों की जान ,
सवाल ये नहीं की इंसान मर रहा है ,
ये तो पैदा होते ही हैं मरने के लिए ,
मगर ये अपने पीछे छोड़ जाता है " भाव"
नए पैदा होने वालों के लिए ,
सवाल ये है की वो "भाव" जैसे ,
भरोसा ,रिश्ता,शिष्टाचार और अन्य भावों का
हो रहा है क़त्ल और अपमान ,
खुद को ख़ुदा समझ रहा इन्सान ,
तो आप के बनाये आदम का कैसे होगा सम्मान ?
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की …………………
आप की माटी ऐसी तो न थी ,
ऐ खुदा आप से है इल्तज़ा ,
ख़त्म कर दे इस माटी के सीलन की बू ,
भर दे इनमे पहली बरसात की सिली सोंधी माटी की खुशबू ,
दे दे माटी के सुराही का ठण्डा मीठा सा स्वभाव ,
जिसका हो रहा आप के आदम में अभाव ,
हो सके तो बदल दे अपने आदम की माटी
हो सके तो बदल दे मेरे आदम की माटी
ऐ ख़ुदा बदल दे माटी मेरे आदम की …………………


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eeshwar aapki dua kabool karen ! waqai ab mati bhi humari maati se katraane lagi hai, hame apne me milaane me use sharm aane lagi hai. bahut sunder aur bhavpoorna kavitaa hai ye!
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