Thursday 8 December 2016

poem for society , SAMRIDDH SAMAJ HINDI POEM , SAJAG NAGARIK HINDI POEM ,BY SUNIL AGRAHARI -समृद्ध समाज-SDGs # 17- poem on - Revitalize the global partnership for sustainable development by sunil agrahari

SDG SONG GOAL 17: PARTNERSHIPS FOR THE GOALS

Published in  Mauritius 
Magazine - Akrosh
February 17

 *******समृद्ध समाज *******

जब होगा ये सजग नागरिक ,
तब होगा समृद्ध समाज ,
कल पर नहीं टालना इसको,
हमें सोचना होगा आज। 

मानव का धर्म सत्य अहिंसा ,

विश्वास हमारा शान्ति में हो ,
जाति भेद रंग दूर करे हम, 
स्थापित हो संयुक्त समाज। 

श्रेष्ठ उत्थान ,भविष्य हो स्वर्णिम,
जन जन करे सामाजिक कार्य ,
सतत प्रयास से सफल बनेगा ,
सजग नागरिक , समृद्ध समाज। 

दृढ़ प्रतिज्ञ हों ,दिव्य मूल्य से ,
अन्तः उर  से  हो  आवाज़ ,
विलम्ब ना करना , आगे बढ़ना 
सजग नागरिक , समृद्ध समाज। 

स्नेह दया का मान रखे हम 
एक दूजे का रखे ध्यान 
सिद्धांत पुरातन नूतन जोड़ ,
निर्माण करें आदर्श समाज। 

अपना पराया सोच से हट कर 
प्रथम वरीयता समाज हो ,
प्रगति करे पर नैतिकता के संग ,
सजग नागरिक समृद्ध समाज। 

मानवता ही सम्प्रदाय हो 

प्रेम ईमान की भाषा हो ,
प्रेरणा लेकर आत्म संयम की,
निर्मित करे नवीन समाज। 

परोपकार में मन हो समर्पित ,

सब का हो हार्दिक सम्मान ,
देश प्रेम से प्रेरित हो कर ,
राष्ट्रहित में करे सब काज।  ८/१२/२०१६


सुनील अग्रहरि 
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल 
मयूर विहार ,फेज़ -१ 
दिल्ली -९१ 
फ़ोन -011 47770777 
मोबाइल -07011290161 

विषय -जाति रंग सम्प्रदाय ,देश और भाषा का भेद भाव ना रखते हुए मनुष्य को आत्मसंयम की प्रेरणा  







Thursday 29 September 2016

samajik samsya par hindi kavita , social issues , NAA BHOOLE -poem by sunil agrahari -on social media issues-ना भूले

   
***ना भूले ***        

वो भूख की आग में जलता रहा ,
कोई भूख न उसकी मिटा सका  ,
लोग मजामँ लगा कर देखते रहे ,
पर फोटो खींचना ना भूले ,

दुर्घटना की चोट से ,
वो सड़क पे मौत से लड़ता रहा , 
लोग खड़े  तमाशबीन रहे  
पर  फोटो खींचना ना भूले ,

वो नदी में डूबता बचता रहा 
चिल्ला के गुज़ारिश करता रहा ,
ज़िन्दगी बह गई पानी में ,
पर फोटो खींचना ना भूले ,

क़त्ल हुवा चौराहे पर सुनील 
वो जान की भीख मांगता रहा ,
लोग छुप के नज़ारा देखते रहे ,
पर फोटो खींचना  ना भूले ,

क्यों वेदना शून्य हो रहे हैं हम  ,
और मौत का तांडव देख रहे ,
एक कदम इन्सानियत बढ़ जाए ,
क्या पता कोई जान बच जाए,

कोई अमर नहीं इस दुनियां में ,
कुछ भी हो सकता किसी के साथ ,
ऐ मौत की फोटो खींचने वालों ,
डर उस मौत के मंज़र से ,
जब मौत के सामने तू होगा ,
कोई तेरी फोटो खींचेगा ,
सोच दिल पे तेरी क्या गुज़रेगी ,

 इंसानियत का काम क्या काम यही अब  ,
फोटो मौत की सोशल मीडिया पर भेजो,
" मौत की फोटो बनने से
 इंसानियत कहता है रोको "
लोगो की पसंद का क्या कहना
क्या देख रहे ,क्या दिखा रहे,
इंटरनेट की दुनियां में ,
मनोरंजन मौत से कर रहे,
घटना से न कोई सबक लेते
बस फोटो लाइक करते रहे , 
हैं बुरा वक़्त इंसानियत का ,
या बुरा वक़्त इन्सान का  ,
पहले चार कन्धों पर लाशें जाती थीं ,
अब एक कन्धा भी नहीं मिलता
मिलते हैं तो बस 
अन्जानी भीड़ में
 फोटो खींचने वाले।   (२६/०९ /२०१६)











Friday 23 September 2016

Poem on ghamand , GUROOR -hindi poem by sunil agrahari - on ego arrogancy -गुरूर

        

******गुरूर*****     

हुवा जो दूर गुरुर से 
खुद से मुलाकात हुई 
सातवें आसमान पे रहने की,
आदत ही बदल गई ,
लगता था मुझको ,
सब कुछ का ज्ञान है ,
सिर्फ मेरा ही सम्मान है ,
और जो ना समझ पाया ,
उसमे  अपमान है ,
मेरे ही काम से आन बान शान है ,
कैसी ग़लतफ़हमी मैंने पाल रखी थी 
शेर के खाल में बिल्ली पाल रखी थी ,
ज़िन्दगी का मुझपर एहसान हो गया ,
वक़्त रहते  गलतियों का भान हो गया , 
खाली जगह ज़िन्दगी में रह गई है काफ़ी ,
मुझे ज़िन्दगी में बिछड़ो से मांगनी है माफ़ी ,
ऊँचाई पर न बैठना , रहता है डर गिरने का ,
ऊँची सोच रखना , रहता ना ग़म मरने का ,
सब का अंत आना है , सब कुछ यहीं रह जाना है ,
अहम की कश्ती को कम पानी में डूब जाना है ,
रहम के परिंदों को जीते जी तर जाना है ,
गुरूर का सुरूर तो एक दिन उतर ही जाना है ,
मैं मैं के गुरूर में तो बकरे को कट जाना है ,
वक़्त रहते संभलो ,
वर्ना क्या समझना और क्या समझाना है। 

 (२३/०९/२०१६ )


Tuesday 20 September 2016

Poem on bhrstachar , corruption , PATI DANA KI by sunil agrahari- hindi poem on bad policies problems , ODISA HOSPITAL DEATH CASE SUFFERER DANA .-पाती दाना की

  

****पाती दाना की *****(१५ /०९/२०१६ )





poem on social issues 




ऐ मेरे ज़िन्दगी के माझी दाना ,
उदास मत होना , न रोना ,
मुझे हर जनम में तुझको ही पाना 
जिन पढ़े लिखे सभ्य कहे जाने वाले दौलतमन्द 
लोगों से तू लगा रहा था गुहार ,
वो आज सब गए तुमसे हार ,
अनपढ़ है तू ,लेकिन इल्म है तुझे इंसानियत का ,
जो शायद उनके पास नहीं ,
ग़रीब है तू ,लेकिन प्यार की  दौलत बेशुमार है तेरे पास ,
जो शायद उनके पास नहीं ,
वो दौलत के पुजारी , मुहब्बत करते है जिस्मानी ,
इन सब से जुदा तूने तो प्यार किया रूहानी ,
क्यों की 
मीलों चले पैदल ,कन्धों पे मुझे रख कर ,
मैं तो जी गई तेरे काँधो पे चल कर 
हिचके ज़रा  भी नहीं , थके ज़रा भी नहीं 
हौसला ना तेरा टूटा , जब धरा पर धरा ,
मुझे  ढोते ढोते  तू हो रहा था अधमरा ,
हर कदम आत्मविश्वास से पूरा था भरा ,
लोगो  की आँखों बातों से तू ना डरा ,
तेरी मुहब्बत के सामने ताजमहल ,
बौना लग रहा है , 
जो है इश्क की निशानी,
खामोश इंसानियत, कब्रिस्तान लग है ,
जो है ज़िन्दादिली की निशानी , 
तरसते है महलों वाले तेरे जैसे प्यार को ,
उनकी  ज़िन्दगी बीत जाती है , यार के दीदार को,
ऐ मेरे ज़िन्दगी के मांझी , तेरी कश्ती डूबी ,
पर कश्ती को मझधार में न छोड़ा ,
पतवार तू चलाता रहा ,रिश्ता ना तोड़ा ,
मुझे अब बड़ा सुकून है  ,
हमारी बेटी एक जिम्मेदार पिता की छाया 
में महफूज़ है ,
उसे मेरी कमी कभी भी महसूस न होगी ,
अगर हम गरीबी के जंगल में रहने वाले 
असभ्य जानवर जैसे प्राणी  है , 
तो कोई ग़म नहीं ,
लेकिन इंसानियत रुपी प्यार तो है ,
जो इन सभ्य शहरियों के पास नहीं,
धिक्कार है धिक्कार है धिक्कार है,
ज्यादा कुछ नहीं कहना , 
मेरे मांझी उदास मत होना ,
हर जनम में मुझे बस तेरा ही होना ..... 




Friday 16 September 2016

WORLD MUSIC DAY SANGEET KAVITA -HINDI POEM ON FEELINGS ABOUT MUSIC -, INTERNATIONAL MUSCI DAY HINDI POEM KAVITA,,संगीत SANGEET SUNIL AGRAHAR

 
मॉरीशस 
प्रकाशित-आक्रोश पत्रिका 
मार्च अप्रैल 2017              

 ****संगीत ****
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में ,
मैं हूँ सन्नाटे में ,  हूँ शोर में ,
मैं हूँ ख़ुशी में , मैं हूँ ग़म में ,
दीदार नहीं मेरा , रहता हूँ ग़ुम मैं ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में..........

पंछियों के पंख ,फड़फड़ाहट के ताल में ,
लहरों के नृत्य कलरव,सागर नदी ताल में ,
बरसात की छोटी बड़ी ,बूंदों के ताल में ,
भूत हो भविष्य या , वर्त्तमान काल में ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में............

इन्सानों  के स्वभाव में ,शब्दों के रसभाव में ,
सूरज की पहली ,किरण की अहसास में,
रात दिन चारों  ,प्रहर के आभास में ,
जीवन के हर क्षण , सुरीले  एहसास में ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में.............

ख़ुदा के पास में , इबादत की आस में ,
सुन कर सुरीले गीत ,बन जाते हैं मेरे मीत ,
जी हाँ ,जी हाँ ,जी हाँ ,जी हाँ 
मैं हूँ संगीत मैं हूँ संगीत मैं हूँ संगीत 
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में................


Saturday 2 July 2016

Poem on zindagi , CHITAKTI RAAT BY SUNIL AGRAHARI - poem on night-चिटकती रात

*****चिटकती रात ***** 

आज  की रात कुछ चिटक सी गई थी ,
रात के अंधरेपन में 
कुछ दरारें सी दिख रही थी ,
पलकें आसपास होकर भी 
एक दूजे से जुदा सी लग रही थी ,
ज़ुबां की नमी भी अब 
रेगिस्तान सी सूखी  महसूस हो थी ,
मेरे अल्फ़ाज़ उस रेत में 
फंसे धंसे से लग रहे थे ,
उस सन्नाटे में मेरी रूह ज़ोर ज़ोर  
से अजान दे रही थी,
मगर सुनने वाला कोई नहीं था यहाँ ,
ख़ामोशी में  डूबा था सारा जहाँ ,
किससे करुँ अपने हालात बयां ,
बेकाबू घोडा सा हो रहा था  समां ,
लगाम मेरे हाथों से छुटी जा रही थी ,
बेलगाम सी ज़िन्दगी हुई जा रही थी ,
मेरे गीत लग रहे थे जैसे रुदाली ,
भरे हुए प्याले लग रहे थे खाली ,
उलझनों के सैलाब में 
डूब रहा था सारा मंज़र ,
हर एक करवट चुभ रहा था जैसे खंज़र ,
अब रात के सियाही  में 
फीकापन आ रहा था ,
गीली आँखों में अब सूखपन सा छा रहा था ,
आँखे ढूंढ रही थी सूरज की  रोशनी को ,
बेताब थी पलके रात के पल समेटने को ,
किसी की आँखों में आस भर सकूं ,
ख़ामोशी की चारदीवारी में शोर भर सकूं ,
मेरी ईद के रोज़े को इंतज़ार है इफ़्तार का ,
ठहरी हुई ज़िन्दगी को इंतज़ार है रफ़्तार का  ................  

२४ /०६/२०१६ - २ बजे रात 



Poem on zindagi life's , KOSHISH hindi poem BY SUNIL AGRAHARI-कोशिश


 

Published in  Mauritius 
Magazine - Akrosh
February 18

*****कोशिश ***** poem on try , positivity 

पंछियों की तरह झूठ बोले बिना ,
एक दिन तो  रहे आओ कोशिश करें ,

नदियों की तरह पानी खुद ना पिए ,

नीर प्यासों को दे ,आओ कोशिश करें ,


पत्थरों की तरह  हर मज़हब में रहे,

सब को सज़दा करें ,आओ कोशिश करें ,

धूप में खुद दरख़्त ,सब को छाया दिए ,

सब की छाया बने ,आओ कोशिश करें 

याद ईसा को कर ,माफ़ सब को करें ,

माफ़ कर ,माफ़ी मांगे ,आओ कोशिश करें 


घास  के जैसे मिट्टी से जुड़ कर रहें ,

पावँ ज़मी पर रहें ,आओ कोशिश  करें ,   

१८/०६/२०१६ - १२ बजे रात





Tuesday 14 June 2016

Poem on zindagi , AYA HUN POEM BY SUNIL AGRAHARI - HINDI POEM ON HELPING OTHERS AND POSITIVITY -आया हूँ



****आया हूँ*** 
                                                                                                                   
                                                                                                               
दो कदम तुम चलो ,चार हम भी चले ,
तुमसे कन्धा मिलाने आया हूँ मैं ,

तेरी खुशियों से मुझको मतलब नहीं ,

बांटने तेरे ग़म को आया हूँ मैं ,

मुश्किलें है तेरी ,लड़ना तुझको ही हैं ,

हौसला बस तेरा बढ़ाने आया हूँ मैं ,

 इस जहाँ में ना रो , तन्हा ही तू ,

अश्क को पोछने तेरे,आया हूँ मैं ,

वक्त हो अच्छा तो ,साथ देते है सब ,

 गर्दीशी को निभाने तेरे, आया हूँ मैं ,

वो इन्सां ही क्या ,जिए खुद के लिये ,

 जीने दूजो के खातिर ,  आया हूँ मैं , 
१२/०६/२०१६--- रात २:३० बजे





Poem on zindagi , life's , BEWAJAH POEM BY SUNIL AGRAHARI -hindi poem on without any reason positivity and willingness-बेवजह

     
**** बेवजह****  
                                                                                                            
समझदार बन के , खामोश बैठे हो ,
बेवजह भी कभी मुस्कुराया करो ,

ग़र मतलब हो , घर से बाहर आते हो ,

बेवजह भी कभी निकल आया करो ,

काम की बाते तो हर वक़्त करते हो ,

बेवजह बातें करने भी कभी आया करो ,

ज़रूरत पर ही लोगो से क्यूँ मिलते हो ?

बेवजह भी कभी मिलने आया करो  ,

अपनों से तो गले तुम रोज़ मिलते हो ,

बेवजह के भी रिश्ते कभी निभाया करो ,

होशियार ज़िम्मेदार बड़े बनते हो ,

बेवजह बच्चों संग कभी खेला करो ,

ज़िंदा रहने के खातिर वजह ढूँढते हो ,

बेवजह ज़िन्दगी भी कभी जिया करो ,    १२/०६/२०१६ ---रात 2 बजे 

Poem on mukaddar, kismat, bhagya , ,CHALTA RAHA POEM by sunil agrahari -hindi poem on gambling , life struggle -चलता रहा

       

                                                                                                                 





****चलता रहा****


चाल पे चाल मैं यूँ ही चलता रहा ,
रात को दिन में तब्दील करता रहा,
ज़िन्दगी से जुआ खेलता ही रहा,
दूर बैठा था मुझसे मुकद्दर मेरा ,

वक़्त भी ये माजरा सब देखता रहा ,
खुल के शै , छुप के मात ,मैं चलता रहा ,
पलके बोझिल हुई , पर संभलता रहा ,
अपनी हिम्मत का परा ना गिरने दिया ,

जीतना मुकद्दर को , मेरा मकसद रहा ,
बिसात की चाल को मैं समझाता रहा ,
बिना वक़्त के मैं यूँ ही मात खाता रहा ,
आया वक़्त जब क़रीब ,शै मेरा हो गया ,


वक्त को साथ ले चाल चलता रहा ,
आहिस्ता आहिस्ता मैं जीत के करीब आ गया। 
  ०९/०६/२०१६  ---रात  १ बजे


Hindi kavita adhunikta par ,TARKKI hindi poem by sunil agrahari- on social progress and leaving our culture तरक्क़ी ( तंज़)






****तरक्क़ी ( तंज़)****

                                                                  तरक्की तो रोज़ हम करते जा रहे है,
कच्चे थे जो मकाँ अब पक्के हो रहे है,
छोटी  छोटी जगह पर मीनार बन रहे है ,
छोटे छोटे कमरों  में  सिकुड़ते जा रहे है ,
क्या खूब रोज़ हम तरक्की कर रहे है ,

बड़े बड़े मैदान  छोटे होते जा रहे है ,
घास मिट्टी कम ,पक्के फर्श बन रहे है , 
घास हटा असली , नकली  लगा रहे है,
कच्ची माटी से पैरों के , रिश्ते ख़त्म हो रहे है ,
क्या खूब रोज़ हम तरक्की कर रहे है , 

अपनी भाषा बोलने में शर्म  रहे है  ,
विदेशी भाषा में पी. एच. डी. कर रहे हैं ,
छोड़ अपनी संस्कृति पाश्चात्य  हो रहे है ,
अपनी ही सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे है ,
क्या खूब रोज़ हम तरक्की कर रहे है ,

रिश्तों के मायने  ,रोज़ ग़ुम हो रहे है , 
सीमित भावनाओं से ग्रसित हो रहे है ,
बिना मतलब ही जज़्बाती हो रहे है ,
मज़हबी उन्माद से वक़्त सींच रहे है,
क्या खूब रोज़ हम तरक्की कर रहे है,

मिट्टी की सोंधी खुशबू से लोग  दूर हो रहे है ,
मिट्टी के खिलौने बच्चों से दूर हो रहे है ,
इस मिट्टी के खातिर तो केवल जवान मर रहे है ,
इस मिट्टी से जुड़े हुवे किसान मर रहे है ,
क्या खूब रोज़ हम तरक्की कर रहे है....3 
 ०८/०६/२०१६  रात 2 बजे 

poem on modern progress , social issues , tarakki 







Poem on zindagi , rishte , relationship ,GULLAK POEM BY SUNIL AGRAHARI-poem-गुल्लक

                              

  ***गुल्लक ***                                                                             मेरा प्यार का गुल्लक टूट गया,

मेरा सब कुछ जैसे रूठ गया,
उसमे रिश्तों की जमा पाई थी,
जो अन्जाने में मैंने कमाई थी,
छोटी मोटी खुशियों के फुटकर थे उसमें,
बचपन के माता पिता का प्यार था जिसमें,
वो मेरे सबसे अनमोल थे सिक्के,
लड़कपन और दोस्ती वाले मासूम प्यारे सिक्के,
अड़ोस पड़ोस रिश्तेदारों के खट्टे मीठे सिक्के,
वो पहला स्कूल गया था मैं जिसमे,
तोतली ज़ुबाँ से बोला था उनसे,
समझ नहीं पाते थे अध्यापक ,
फिर भी प्यार किया मुझसे ,
वो प्यार जैसे रिश्ते ,खनखन खनकते जैसे सिक्के,
बड़ा हुआ अब मैं हुआ समझदार,
इन रिश्तों के गुल्लक में देखा दरार,
भरा हुआ गुल्लक मेरा टूटा पहली बार,
कच्ची मिट्टी पक कर  टूट हुई जैसे बेकार,
वो सिक्के हो गए खोटे, अब नहीं पुराने बाजार,
जहाँ चले मेरा सिक्का , चले जमा पाई प्यार,
फूटा मेरा गुल्लक, बिखरा मेरा प्यार,
रिश्तों के सिक्कों की इज़्ज़त करो यार ,
पैसे मिल जायेंगे ,पर रिश्ते न मिलेंगे यार ,
रिश्तो के बिना ये दुनियाँ है बेकार ,
रिश्तों के गुल्लक में न आने दो दरार  ........  
१३/०६/२०१६---रात १ बजे






Wednesday 18 May 2016

Motivational poem, FAITH , FARK POEM BY SUNIL AGARAHARI - फ़र्क

       

******फ़र्क******

बीज में दम  हो तो ,पौधा ज़रूर निकलता है ,
फिर ज़मी बंज़र भी हो तो क्या फ़र्क  पड़ता है ,

आफ़ताब रोज़ दुनियां में कहीं न निकलता है  ,
फिर मुर्गा बांग  दे या नादे , क्या फर पड़ता है ,

हिम्मत से बढ़ो  ख़ुदा ज़रूर मदद करता है ,
फिर मुक़द्दर साथ ना दे ,क्या फ़र्क पड़ता है ,

इन्सां वही जो इंसानियत की इबादत करता है ,
फिर हो  किसी भी धर्म का, क्या फ़र्क पड़ता है ,

ठेस लगती  है कहीं भी तो ,दर्द ज़रूर होता है ,
फिर अमीर हो या गरीब ,क्या फ़र्क पड़ता है ,
  
हर रिश्ते को निभाने में, क़ुर्बान होना पड़ता है ,
फिर अपना हो या पराया , क्या फ़र्क पड़ता है , 

२४/०४/ २०१६ 


Tuesday 29 March 2016

Social problem hindi poem , dharm jaati ,KUY BADE HUEY POEM BY SUNIL AGRAHARI , Poem on Religion-क्यूँ बड़े हुवे


**क्यूँ बड़े हुवे **१६/०३/२०१६ 
छोटे ही ठीक थे , क्यों हम बड़े हो गए ,
जात और धर्म से कोई यारी ना थी ,
प्यार से , खेल ,खाने ,से बस मतलब था,
सियासत की कोई मारा मारी  न थी ,
जब चाहे मंदिर मस्जिद में  आना ,
बेहिचक गुरूद्वारे में घुस जाना ,
हो कोई नाराज़ तो कोने में घुस जाना ,
मार खाई फिर भी ना रुक आना जाना ,
क्यों की  ...... 
सियासत से महरूम था, वो वो बचपन का ज़माना ,

क़ाज़ी मुल्ला होली के रंग में दीखते थे ,
पंडित जी ईद मुबारक कहते ना  थकते थे ,
क्रिसमस पर सेन्टा बन सरदार जी निकलते थे ,
केक संग गुजिया सिवइयों में मिलते थे ,
सब के त्योहारों में मस्ती हम करते थे ,
इक दूजे से मिलने का इंतज़ार हम करते थे ,
क्यों की  .... 
हम सियासत के बारे में ना जानते थे ,

बड़े होते ही जाने कैसी पढाई आ गई ,
केक गुजिया सिवई में जुदाई आ गई ,
त्योहारों से कोई खुश , कहीं मनहूसियत छा गई ,
इंसान के इन्सानियत को सियासत खा गई ,
सियासत की कोई सीमा न रह गई ,
दुनियां में सब से ऊपर सियासत हो गई ,
क्यों  की  .... 
सब को सियासत की नज़र लग गई , 



गुलाल रंग अबीर का अब भी वही है ,
ईद की नमाज़ और अज़ान वही है ,
गुरूद्वारे चर्च में , प्रार्थना वही है ,
क्रिसमस वाले सेंटा  का, रंग लाल  वही है ,
लोहड़ी में ढोल भांगड़े का , ताल वही है ,
मासूम बचपना की , मासूमियत वही  है ,
क्यों की  .....
डर  सियासत का इनको नहीं है ,



कुदरती नियम है हम बड़े हो गए 
सियासत के हाथो मज़बूर हो गए ,
बचपन की दोस्ती में बैर हो गए ,
बचपने से अपने  हम  दूर हो गए ,
संग जिनके खेला कूदा वो गैर हो गए ,
कौमी सियासत में हम चूर हो गए ,
शर्म आती है हम क्यों बड़े हो गए   ............. 
क्यों  की  .... 
सियासती मुर्दे जो अब खड़े हो गए ,
बस 
सियासत ने इंसान को कुछ ऐसा तोड़ा,  
इंसान  को इंसान के लायक न छोड़ा,
नफरती सियासत है बेलगाम घोड़ा,
इंसानियत से सियासत को लगाओ कोड़ा ....... 

सुनील अग्रहरि 
एल्कॉन इंटरनेशल स्कूल 
मयूर विहार -फेस -1 
मोबाइल -08802203750 












Samajik , dharm , jaati , social problem AI KHUDA POEM BY SUNIL AGRAHARI- Poem Religion -ऐ ख़ुदा

  

*****ऐ ख़ुदा ***** जनवरी २०१६ 

तू कहाँ है ऐ परवरदिगार , ज़रा देख ले अपने बन्दों को ,
तेरे खातिर मर मिट मार रहे ,समझा इन धर्म के अन्धो को ,

जब सारे धर्म एक से है , सब की शिक्षा एक सी है ,
सब की बुनियादें एक सी है , फिर क्यों इनमे भेद  है ?

तेरे नाम का  है जो ठेकेदार , वो  बात बात पर ऐंठा  है ,
उन बन्दों की ले ज़रा खैर खबर , किस जहाँ में जा तू बैठा है ,

ऐ खुदाओं सारी दुनियाँ के , क्यों चुप से तमाशा देख रहे ,
क्या तेरी है इसमें  रज़ा  , सब तेरी मन्शा देख रहे ,

इक बार ज़मीं पर आ जाओ , कह दो धरम सब एक है ,
जंग ना कर मेरे खातिर , हम सारे खुदा भी एक से है ,

Monday 25 January 2016

Jai guru ji KAISE KAHUN -JAI GURU JI BY SUNIL AGRAHAR- कैसे कहूँ










*****कैसे कहूँ***** 

कैसे कहूँ गुरु जी सब को है तेरी ज़रूरत ,
गुरु बिन न ज्ञान होव , इक तू ही सच की मूरत ,

ईश्वर की माया नगरी ,किस अर्थ हम है आये ,
अज्ञानी हम अधूरे ,गुरु जी तुम हो ज्ञान पूरक ,

मेरा दिन उदय होता , गुरु जी का नाम ले कर ,
आँखे विश्राम करती , गुरु जी का नाम ले कर ,

रस्ता विहीन मैं  हूँ  , सद मार्ग  तुम सुझा दो,
आशीष अमृत दे दो , मृग तृष्णा  को बुझा दो ,

अनजान इस जहाँ में , किस पर करे भरोसा ,
तेरी चरण शरण मिल जाये ,काँटे भी लगे फूलों सा 

चित शान्त कर दो मेरा, मोह माया पाश तोड़ो ,
गुरु भक्ति दान दे दो ,मेरा भोले से नाता जोड़ो ,

२६/०१ /२०१६  (गुरु जी)  

Wednesday 13 January 2016

GAREEB POEM BY SUNIL AGRAHARI- POEM ON POOR PEOPLE-ग़रीब

 

मारीशश - प्रकाशित 
पत्रिका - आक्रोश 
दिसंबर 2020 

***ग़रीब***(कटाक्ष ) ८ /०१/२०१६ 


कहने की बात है गरीब भी एक दिन अमीर होगा ,
गरीब के अमीर होते ही वहाँ दूसरा गरीब खड़ा होगा ,
सारी दुनियाँ में सब से ज्यादा गरीब ही बिकता है ,
कटा फटा नंगा बिना पैकिंग के ही बिकता है ,
फटे कपड़े की खिड़कियों से उसका अंग झांकता है , 
अमीरों की आँखों में वो मनोरंजन सा दिखता है ,
सच बोलूं तो गरीबों को कोई मदद भी नहीं करता है ,
कोरे वादों की गोली खा के गरीब ही मरता है, 
ग़रीब आगे बढ़ने  की जब भी कोशिश करता है ,
शीशमहल वालों की आँखों में चुभता है ,
ऐ गरीब तू वादा कर ,जब तू अमीर होगा ,
ग़रीबों की मदद करने में तू सब से करीब होगा ,
शिक्षा और हौसले  का हथियार इनको देगा ,
तभी रक्तबीज सा ग़रीबी का अन्त होगा। ........  














Monday 11 January 2016

Pyar muhabbat ki kavita ,GUJARISH -POEM BY SUNIL AGRAHARI -गुज़ारिश


*******गुज़ारिश *******१०/०१/२०१६ 

इक अदद होश में आने की गुज़ारिश की थी ,
वो तो बस मुझसे खामखाँ नाराज़ हुवे।

नज़रअंदाज़ न कर प्यार , गुजारिश की थी ,
थोड़ा मुस्काया फिर, खामखाँ नाराज़ हुवे।

हुस्न पे न कर तू अब गुरुर , गुजारिश की थी ,
अक्स देख आइना में ,खामखाँ नाराज़ हुवे।

उम्र पहरा पे रख , उनसे गुजारिश की थी ,
घूरा नज़रों से मुझे ,खामखाँ नाराज़ हुवे।

ख्वाहिश बेपर्दा करदे  मुझसे ,गुजारिश की थी ,
शर्म से पर्दा गिरा ,खामखाँ नाराज़ हुवे।

न कर हावी इश्क ,पे हुस्न ,गुजारिश की थी ,
दबा सुर्ख होठों को ,खामखाँ नाराज़ हुवे।

ख्वाब में न दस्तक देना , गुजारिश की थी ,
सुन मेरी इल्तज़ा वो  ,खामखाँ नाराज़ हुवे।

न करो जुल्म सितम ,दिल पे ,गुजारिश की थी ,
प्यार न छुपा सके वो ,खामखाँ नाराज़ हुवे।


JAI GURU JI BHAJAN BY SUNIL AGRAHARI -गुरु जी










********गुरु जी*******७ /०१/२०१६ 
गुरु जी सदा सहाय ,
भोले शंकर तुझमे समाय ,
गुरु नाम सिमरता जाय ,
गुरु जी नमः शिवाय ,

इक बार जो भी आया ,
तेरे दर पे ज़रा झुकाया ,
आशीष तेरा पाया ,
दुःख का हुवा सफाया ,

तुम्हे भक्त अपने प्यारे 
नित देते दर्शन प्यारे ,
जीवन अब तेरे सहारे ,
सारे कष्ट तुझसे हारे ,

कोई कमी न रहती ,
जिसपर तेरी कृपा बरसती ,
रहमत से झोली भरती ,
दामन में खुशियाँ खिलती ,

तेरा नाम ज़ुबान पे आये ,
कोई मुश्किल कभी न आये, 
तेरा नाम जो गुनगुनाये ,
जीवन सुख संगीत पाये    

बिगड़ी बनाने वाले ,
अपनी शरण बुला ले ,
भव सागर से बचा ले ,
अब तू ही सब सम्भाले   ....... सुनील अग्रहरि