Wednesday 4 November 2015

Poem on zindagi , jiwan BACHPANA POEM BY SUNIL AGRAHARI - POEM ON CHILDHOOD -बचपना

******बचपना****** ०५/११/२०१५

हार्दिक आभार आदरणीय सुनीता राजीव जी को ,इस कविता की प्रेरणा स्रोत बनने के लिए। 

उम्र ना वापस मिली किसी को ,
जीवन की सच्चाई है ,
कुछ तो बचपना जी लेने दो  ,
बचपन की  याद आई है,
कुछ तो बचपना जी ....... 

देख गुब्बारे मेले में ,
बचपन फिरकी सा याद आया ,
आज फिर गुब्बारे से खेलने दो ,
मुझे शर्म हया ना आई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 

गली के पास छोटी सी दुकान ,
दस पैसे में टॉफी दो चार ,
चूस चबा कर खाने को ,
जुबां मेरी ललचाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 

अपनी मिठाई छुपा कर खाना ,
बहन का हिस्सा चुरा कर खाना ,
फिर चाट मलाई खाने को ,
बचपन ने ली अंगड़ाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 

स्कूल के बाहर चूरन खाना ,
चलते दौड़ते लंगड़ी  लगाना ,
फिर नंगे पैर दौड़ लगाने को ,
बचपन ने  याद दिलाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 


छोटी सी बात पे आंसू बहाना ,
माँ के अंचल में छुप जाना ,
माँ बाप की शिक्षा याद करूँगा ,
जो बचपने में मुझे सिखाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 



Sunday 1 November 2015

Poem on bewafai , VARNA HINDI POEM - POEM ON TRUST - SUNIL AGRAHARI

 

*****वर्ना *****३० /१०/२०१५ 

ना करो दिल से वफ़ा की दुआ ,
वर्ना पाओगे बेवफाई ही ,

प्यार तो होता है जुदा होकर ,
वर्ना मिलना तो रस्मअदाई ही ,

जिस्म का चैनों सुकून आग में बसा ,
वर्ना ठंडक  तो है सच्चाई  ही ,

इश्क़ करना तो बस हुनर समझो ,
वर्ना है भरोसा आजमाइश ही ,

जारी रखना इश्क में हंसना ,
वर्ना आम है इश्क़ में रुलाई ही ,

क्यूँ तड़पता है न तड़प प्यार में ऐ दिल ,
वर्ना मिलती  है , तन्हाई  ही ,


Poem on bewafai , KAH GAYA HINDI POEM ,कह गया SUNIL AGRAHARI


***कह गया ***३०/१०/२०१५/

दिल की खामोशियाँ कह रही 
दर्द का परिन्दा उड़ गया ,

दिल का अखबार कह रहा ,
चर्चा तेरे नाम का जुड़ गया ,

लहू का उबाल कह रहा ,
दिल का ग़ुबार रहा गया ,

इप्तदा इबादत की कह रही 
बुत वो ख़ुदा सी गढ़ गया 

नम आँखों से अब्र कह रहा ,
आश्ना बिन मिले ही बढ़ गया ,

इश्क़ की खलिश दिल से कह रही 
वो तो जुर्माना दिल पे मढ़ गया ,

ग़ुबार ----धुंध 
इप्तदा ---शुरुआत 
इबादत---पूजा 
अब्र ---बादल 
आश्ना ---दोस्त 
खलिश ---चुभन 


Tuesday 27 October 2015

Hindi kavita rishto par , SAGEY PARAYE HINDI POEM ,सगे पराये - POEM ON RELATIONSHIP

      
*****सगे पराये ***** १९/१०/२०१५ 


रिश्तों की आँधी में अपने पराए हिल गए,
अपने तो ग़ुम , बस पराये ही मिल गए ,

जज़्बाती आँसुओं में अपने ही बह गए ,
पराये ही थे अब तक दिल में जो रह गए ,

उम्मीद  की चाशनी तो अपने चाट गए ,
चालाकी से बड़ी ,अपने पराये कर गए ,

मेरे घर में अपने मेरी इज़्ज़त उतार गए ,
ज़ुबान से नश्तर बन के क़त्ल कर गए ,

हम निवाला हम प्याला वो सब से कह गए,
मुखौटा अपनेपन का  संग उधार ले गए,  





Hindi kavita zindagi ki ,AKELEY HI HINDI POEM अकेल ही - POEM ON LONELINESS

 

               

        ***अकेल ही **२०/१०/२०१५

क्यों ज़रूरी है किसी का होना ,
आये जब दुनियाँ में अकेले ही ,

   दर्द में क्यूँ तू सहारा ढूँढे ,
सहना जब दर्द को अकेले ही ,

न कर इन्तज़ार काफ़िले का तू ,
जब सफर मौत का अकेले ही ,

ना मचा शोर ज़िन्दगी में कभी ,
दफ्न ख़ामोश जब अकेले ही ,

ऐ ख़ुदा तू बता संग किसके रहूँ ,
 साया बिन स्याह में जब अकेले ही ,

Thursday 15 October 2015

Hindi kavita pyar par , KHWAHISH HINDI POEM, ख्वाहिश, SUNIL AGRAHARI


******ख्वाहिश ******१६/१०/२०१५ 


दिल तड़प की सुरंग में भटकता रहा ,
कि नरम  धूप की  रौशनी बन आओगे ,

दिल इंतज़ार के  दलदल में धसंता  रहा ,
की प्यार की डोर बन दिल खींच  लाओगे ,

ख्वाहिश दिल की रही मुट्ठी भर आसमाँ 
की तरह प्यार दे कर तुम समां जाओगे ,

दिल की धड़कन का शोर टूटा दरवाज़ा सा 
की प्यार से ज़र्ज़र धड़कन रोक पाओगे ,

प्यार को  तेरे चाह  से जाने क्या रंज़ है  
की प्यार को इश्क़ करना सीखा पाओगे 

Tuesday 13 October 2015

Poem on politics , SIYASAT MAUT KI HINDI POEM,सियासत मौत की - poem on bad politics by sunil agrahari


PUBLISHED IN JANKARI KAAL DELHI MAGAZINE MAY22
******सियासत मौत की******(कटाक्ष)१४/१०/२०१५  


ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर ,

तू कफ़न के रंग में रहता है , 
क्यूँ मौत की लीला रचता है  
लाशों पे सियासत करता है , 
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर ..... 

ग़म के दरिया का पानी  

तू पी कर प्यास बुझाता है  
खून से लथपथ लाशों से  
मज़हब बदनाम करता है , 
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर ..... 

इस ज़िन्दादिल  दुनियाँ में ,

तू लाशे पैदा करता  है , 
सोच है तेरी कब्रिस्तान ,
तू खुद को ख़ुदा समझता है 
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर ..... 

लहू उबाल के जनता का 

सरे आम कत्ल करवाता है , 
संगीत सुनाता मातम का ,
शमसान सी राह दिखाता है,
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर .....   

चीर कलेजा अपना तू ,

हिम्मत है तो सच बतला  ,
तेरी ज़ुबाँ लहू  हो जाएगी  
जिससे तू मौत बाँटता है ,
ऐ बुज़दिल मौत के सौदागर ..... 





Sunday 11 October 2015

Poem on zindagi , life's , KAI BAAR HINDI POEM कई बार - poem on sometimes by sunil agrahari

******कई बार ******९ /१०/२०१५ 


यूँ अँधेरे को ऐसे ना इल्ज़ाम दो ,
लोग उजाले में भी तो भटक जाते है ,

मुफलिसी पे ना तू ऐसे आंसू बहा ,
दौलतमन्द भी भिखारी बहुत होते है ,

कोस कर यूँ मुकद्दर को पायेगा क्या ,
हौसले से मुकद्दर बदल जाते है ,

दूसरों को ग़लत कह के खुद ना बचो ,
खुदबखुद भी तो लोग बहक जाते है ,

ये ज़रूरी नहीं अपनों में अपना हो ,
कई बार ग़ैर भी  अपने बन जाते है ,




Poem on happiness , CHALO CHALEY HINDI POEM चलो चलें - chalo chale hindi poem by sunil agrahari

******चलो चलें ******१२/१०/२००१५ 

चल बग़ीचे गुलों संग बातें करे ,
बहोत दिन हुए खिलखिलाए हुए,

चलो आज खेलें बच्चों के संग ,
मुद्दतोँ से लड़कपन है भूले हुए ,

चलो  भीड़ से आज बाहर चलें ,
बीते दिन कितने खुद संग बैठे हुए ,

चलो आज बचपन की गलियां चले ,
वक़्त बीता बहोत खुद को ढूढ़ें हुए ,

चलो आज दुश्मन के घर चलते है ,
नए दोस्त बनाये बहोत दिन हुए ,

मौत ही है दवा ,चैन से सोने को ,
रात बरसों हुवे ढंग से सोये हुए ,














Monday 5 October 2015

HINDI POEM on PYAAR प्यार-Poem on love , affection , relation by sunil agrahari



          **** प्यार ***२/१०/२०१५ 

  प्यार पराया करता है , या अपनों से जुड़ता है ,
रिश्तों का रूप अनोखा है , ये मिलता बंटता  रहता है ,

कोई प्यार में जान लेता है ,कोई प्यार से जान देता है,
चाहे अनचाहे रिश्तों में , अपना पराया होता है ,

प्यार में  है फरमाइशें ,मिलन जुदाई की ख्वाहिशें,
ऐतबार ,मुकद्दर रिश्तों का ,सिमटना बिखरना होता है,

सूरत सीरत के रिश्तों में , शबनम भी तराशे जाते है ,
इक ठेस उम्र है  प्यार की , फिर ये कहीं ना टिकता है ,

प्यार में खून का रिश्ता नहीं,ये तो नज़र का धोखा है,
प्यार से  खून हारता है ,प्यार ही खून का रिश्ता है ,

Monday 28 September 2015

Poem on politics ,NAA KARO SIYAST HINDI POEM ,ना करो सियासत-(व्यंग्य )- poem on bad politics by sunil agarahari

     

 

PUBLISHED-JANKARIKAAL MAGAZIN - MARCH 2022
 

****ना करो सियासत ****(व्यंग्य )२९/०९/२०१५ 



ऐ श्वेत वस्त्र धारी प्राणी ,श्यामल से कार्य तुम्हारे है ,
ईश्वर भी घबरा के कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

बेरंग पानी को रंग दिया ,और हवा की साँसे घुटने लगी ,
गड्ढे की मिट्टी तुझसे कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

सब्ज़ी संग रोटी  कैसे रहे ,महंगाई की आंत सुलगती है,
बोर में बन्द प्याज कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

जात धरम में बैर करा ,इन्सां से इन्सां लड़वाया ,
घबरा कर पार्टी झण्डा कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

छीन नेवाला जनता का,अपने ही उदर को तृप्त किया ,
भीगा सड़ा अनाज़ कहे ,ना करो सियासत नेता जी ,

ज़ीरो भी हीरो बन जाता ,जिस पर भी तेरी कृपा हुंई ,
अय्याशी त्राहिमाम तुझसे कहे,ना करो सियासत नेता जी ,

भस्मासुर की  तुझपे कृपा,तूने जिसे छुआ वो भस्म हुवा, 
डर भस्मासुर की भसम कहे ,ना करो सियासतनेता जी ,








Monday 21 September 2015

Poem on zindagi life's , NAZARIYA HINDI POEM ,नज़रिया- poem on nazariya , HINDI POEM ON VIEWS by sunil agrahari

   

           

………   नज़रिया  २१ /०९/१५ ………… 

वो ज़लील  फैसले ही थे  की 
बेक़सूर आँखे छलक पड़ी

कुछ अजीब सी थी मजबूरियां ,
की खामोश थी ज़ुबान पड़ी ,

दौलत की अन्धी उनकी नज़र 
सच्चाई पर न नज़र पड़ी ,

बेअक्ल पर न जाया करो 
तेरी आसुओं की है इज़्ज़त बड़ी ,

वो गुलाम है अब तक गुरुर के 
तुम मुस्कुराती मुश्किल में खड़ी ,

ना गुमान  कर  तू ऐ रहनुमां 
इस जहाँ में सब की है इक घड़ी ,



Friday 18 September 2015

HINDI POEM UMMID PAR -उम्मीद - hindi poem on hope , HINDI POEM ON EXPECTATIONS by sunil agrahari





 …उम्मीद  … १९ /०९/२०१५  

मुझे उनसे कितनी उम्मीद थी 
उन्हें मुझसे कितनी शिकायतें ,

दिलों दिल में मुझसे खफा रहे 
रहा पूछता उनसे मैं खैरियतें 

यूँ ही कशमकश में ही रह गए 
न वो सुन सके मेरी आहटें ,

थोड़ी इल्म की ही कसर रही 
वर्ना हो रही होती मुहब्बते ,

मेरे दिल में ऐसे बसे है वो 
जैसे कुरान की हो आयतें 

Monday 14 September 2015

INDEPENDENCE DAY hindi poem , REPUBLIC DAY , AAZAADI -आज़ादी ?- hindi poem on freedom , INDEPENDENCE DAY , REPUBLIC DAY by sunil agrahari

………आज़ादी ?...........१४/०९/२०१५ 



वक्त हो गणतंत्र दिवस या हो स्वतन्त्रता दिवस ,
हर चौराहे की लाल बत्ती पर,तिरंगा बिकता है बेबस ,
अमीरी से आज़ाद मुफलिसी के ग़ुलाम , 
बच्चे बूढ़े और जवान ,
भूखी ज़िंदगी, हाथ तिरंगा ले कर ,
गुजारते है दिन , झंडा  बेच कर,

ये है बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर ,
दिल में चुभती है जैसे बन के तीर , 
इन्हे देख आभास होता है ऐसे  ,  
कुछ ही लोग आज़ाद हुए थे 
अंग्रेजो की गुलामी से  जैसे,

ये ग़ुलाम तब भी थे , ये ग़ुलाम आज भी है 
अंग्रेजो को तिरंगा बेचा जिसने,
वो गद्दार अमीर आज भी है ,लेकिन 
आज भी चौराहे पे ये भूखे गरीबहै ,
ये नागरिक भी तो देश के करीब है ,


अंग्रेजो से आज़ाद हुवे,तो गुलाम हुवे सामजिक पिछड़ेपन  से ,
एक दूसरे को हलाल कर रहे आरक्षण की छुरी से ,
ये कैसी आज़ादी , कैसा सामाजिक ढाँचा ?
कैसा नियम कानून ,कैसा क़ानूनी साँचा ?
ये है आज़ादी पे भरपूर करारा तमाचा ,
चौराहे पे तिरंगा नहीं , बिक रहा है ज़मीर , 
है राजनीत ज़िम्मेदार ,फरेबी और अमीर ,
ये स्याह रंग आज़ादी का, कब चमकेगा अबीर ?
ये देख नीर आँखों में ले कोने में रो रहा कबीर ………………… 




Tuesday 1 September 2015

Substitution song- for school teachers by sunil agrahari

     Substitution song-- 02/09/2015


please sing like song "i am a disco dancer "


आई एम ए substi मास्टर---पोपोपोपो --2
ज़िंदगी मेरी substi ,जान है मेरी substi,
तो झूमो, तो नाचो, मेरे संग नाचो गाओ , आई एम ए substi मास्टर ---पोपोपोपो
                            Music
जब मै स्कूल मे adhok पे आया था  , तब भी मै substi लेता था
एक्टिविटी teachers ,को आता न कुछ भी , ,ये भी मै सुनता रहता था ,
ये मस्ती करते है , गाते बजाते इनको ही दो duty, इनको ही दो sabsti ,
पो पो पो ssss फिर भी substi ले ले यार
पो पो पो ssss न मन कर खराब 
तो झूमो तो नाचो substi ले के नाचो गाओ
                             Music
साइन्स के period मे science teacher on duty, हिन्दी teacher substi है लेता,पो पो पो पो
Syllabus complete यू तो, होता नहीं यारो, substi मे टाइम बर्बाद होता , पो पो पो पो
8 पीरियड मे रोज़ ,बच्चों के 1,2 पीरियड substi मे बर्बाद होता ,
हाँ हाँ हाँ तू रेमेडियल ले ले यार ,न नन्न न ज्यादा सोच यार ,
तो झूमो तो नाचो substi ले के नाचो गाओ , आई एम ए substi मास्टर ---पोपोपोपो
                              Music

स्कूल मे गर ,खुश रहना चाहो तो , हर रोज़ lo एक दो substi , पो पो पो पो
वैसे तो मंडी मे सब्ज़ी बहोत मंहगी , पर सस्ती मिलती है substi , पो पो पो पो
खाने मे सब्ज़ी चाहे न खाओ तुम , पर time से रोज़ लो substi, पो पो पो पो

साँसो मे sabsti है ,धड़कन मे substi है , जीना ही substi है मरना ही substi है
हाँ हाँ हाँ मत substi छोड़ यार ,
Substi का मारा , ये सिस्टम है बेकार,
न छोड़ो ,तुम दौड़ो ,दौड़ धूप के substi ले ले  
आई एम ए substi मास्टर---पोपोपोपो --2







MAN KI YATAR FOR DHL INFRA BULLS ,मन की यात्रा

          
                 






मन की यात्रा   9/2/15      


मन की यात्रा , के संग , तन की यात्रा ,
तन संग यात्रा ,कर लो,मन की  यात्रा ,


आसान सफर कर देते ,
देते सुख रैन बसेरा ,
दुनियाँ के हर कोने मे ,
संबन्धो का है डेरा ,

हर पल हर दम साथ रहे
न किसी बात का फेरा 
मन की अनंत इक्षाओ का 
होता है यही सवेरा  

जीवन मे रंग भर लो , बढ़ा लो, सुख की मात्रा 

मन की यात्रा , के संग , तन की यात्रा 

Wednesday 19 August 2015

JAGO GRAHAK JAGO HINDI POEM , जागो ग्राहक जागो- CONSUMER FORUM AWARENESS SONG IN HINDI

      





…… ग्राहक जागो.......२०/०८/२०१५ 


मत भूलो हक़ माँगों ग्राहक 
जागो ग्राहक जागो 
असली नकली को पहचानो 
जागो ग्राहक जागो 
मत भूलो हक़ माँगों ग्राहक    …………

हर खरीद की पक्की रसीद 
मत लेना तुम भूलो 
isi  मार्क  देख  लो 
तभी सामान खरीदो 
मत भूलो हक़ माँगों ग्राहक   ...................

एक्सपायरी डेट चेक करो 
सारे खाद्य  पदार्थ में 
तुरंत कभी  विश्वास करो न 
दूकानदार की मीठी बातों में 
मत भूलो हक़ माँगों ग्राहक  ...................


फ़र्ज़ी ठग नक्कालों से 
हरदम रहो तुम सावधान 
इनकी करो शिकायत कोर्ट में 
कन्ज़्यूमर कोर्ट  में है प्रावधान 
मत भूलो हक़ माँगों ग्राहक  ...................

Tuesday 21 July 2015

BHARAT YATAR , भारत की सैर- HINDI POEM ON MY INDIA BY SUNIL AGRAHARI






****भारत की सैर कराता हूँ ********

मेरे वतन की  बात बताता हूँ  
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

ये प्रेम की बगिया है  ,
प्यार की है फुलवारी ,
मिठास झलकती हर पुष्प में ,
जिससे आकर्षित दुनियां सारी 
तिरंगे से पहचान है , तिरंगे से ही मान 
अब हर दिल ये कहता है 
मेरा भारत महान 
उस बाग़  की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

यह वह पवित्र भूमि है 
जहाँ राम कृष्ण ने कदम रखे 
इतने पावन  है लोग यहाँ 
हर एक में भगवान दिखे 
गंगा जमुना का संगम और गोदावरी की धारा ,
प्रकृति की गोद  में बसा अतुल्य वतन हमारा ,
उस पवित्र धरती की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

जब गांधी ने थी आवाज़ उठाई 
तब साथ पूरे  देश का था 
जब अंगेजो को धुल चटाई 
तब वो जज़्बा कुछ विशेष सा था 
जिसकी  प्रतिभा अनेकता में एकता की हो 
उस भारत भूमि को मैं नित नित शीश नवाता हूँ 
उन  शहीदों की अमरगाथा सुनाता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 


जहाँ सदियों पहले ऋषियों ने 
चाँद तक की दूरी बतलाई 
फिर पहुँच कर मंगल पर 
अपनी  शक्ति है दिखलाई 
सम्पूर्ण विश्व की सैर कर मन ये कह उठता है 
सरे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा 
उस विलक्षण शक्ति  की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
मिल जुल कर रहते भाई भाई 
विभिन्न संस्कृति भाषा प्रदेश 
अलग खान पान और अलग है देश 
जहाँ मिठास के साथ है थोड़ी खटास 
फिर भी सब प्रेम से रहते साथ साथ 
उस अद्भुत स्थल की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

जिस भूमि ने जनम दिया वीरों को 
जिस भूमि ने पहचान दी वीरो  को 
इस सोने की चिड़िया की महानता  कैसे व्यक्त करूँ  
शब्दहीन हो जाता हूँ जब इसकी बात बताता हूँ 
स्वयं को इस पवित्र  भूमि का बतलाता हूँ 
भारतीय होने का गौरव  से भर जाता हूँ 
ऐसे वतन की गाथा सुनाता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

सचिन शर्मा 
vii -d 




Thursday 16 July 2015

Haasya vyangya kavitav, chali rail gadi hindi kavita ,RAIL Yatra HINDI POEM , TRAIN JOURNEY WITH REALISTIC FUNNY भारतीय रेल यात्रा (हास्य ) कविता BY SUNIL AGRAHARI

        





.. रेल गाड़ी (हास्य )(१६/०७ /२०१५ )

मेरी एक रेल यात्रा का अनुभव वर्णन है इस कविता में और मुझे ऐसा लगता है आप थोड़ा ध्यान दें तो सभी  यात्रा के अनुभव के रंग ऐसे ही होंगे. 

चली रेलगाड़ी चली रेलगाड़ी 
कभी चलती सीधी कभी चलती आड़ी........x 2 
भीड़ भरे डिब्बे में धक्का और धुक्की  
छोटी छोटी बातों में मुक्का और मुक्की 
बैठने के चक्कर में मची ठेलम ठेला 
पीछे के लोगों ने आगे धकेला 
शोर मच रहा था जैसे कुंभ का हो मेला 
ऊपर नीचे चारो तरफ सामान था फैला 
गोद  में बच्चे को सूझ रहा खेला
मोटू चढ़ रहा था खाते  हुवे केला 
हड़बड़ी में फस गई अम्मा की साड़ी 
चली रेलगाड़ी चली रेलगाड़ी   ………

ट्रेन चल पड़ी जब रुका आना जाना 
बैठे लोग आराम से खुला सब का खाना 
दो पूड़ी दे दो कोई कह रहा था 
सब्ज़ी संग आचार का मज़ा ले रहा था 
पेट भर गया कोई कह रहा रहा था 
मिठाई छुप छुपा कर कोई खा रहा था 
खट्टी मीठी खुशबू से नाक फट  रही थी 
अकेले बैठे भूखे की नज़र ना हट रही थी 
बच गया थोड़ा खाना ख़तम इसको कर दो 
आवाज़ आई ऊपर से भिखारी को दे दो ,
मिर्ची लग गई थोड़ा पानी दे दो भैया 
बोतल छुट गई घर  हाय  मेरी  दइया 
भूले जो सामान तो याद आई बाड़ी 
चली रेल गाड़ी चली रेल गाड़ी   …………


खाते हुवे मोबाईल पे बाते  कर रहा था 
मम्मी पापा बच्चे को बाय कह  रहा था 
कोई बोला सीट खोलो मुझको है सोना 
अचानक शुरू हो गया एक बच्चे का रोना 
माँ बोली  चुप हो जा लोग सो रहे है 
लेटे लोग मुँह बना किस्मत पे रो रहे है 
थके लेटे लोगों को आने लगी झपकी ,
लोरी माँ सुनाने लगी देने लगी थपकी 
टपक पड़ा टी टी बोला टिकट तो दिखाओ 
बगल में लेटे बच्चे की उम्र तो बताओ 
बिना टिकट बैठे लोग इधर उधर भागे 
कीमती सामान वाले पूरी रात जागे ,
भागती हुई रेल चढ़ रही थी पहाड़ी 
चली रेल गाड़ी चली रेल गाड़ी   …………


सोते बैठे लोगो को लगा एक झटका 
देखा तो खिड़की पे था कोई लटका 
इतने में चाय ले लो  आवाज़ दी सुनाई 
देखा जो सवेरा तो जान में जान आई 
हबड़ दबड़ सामान ले उतर रहे लोग 
बेड  टी वाले चाय का लगा रहे भोग 
वेटिंग टिकट गुस्से से लोगों ने फाड़ी 
मची अफरातफरी , जब रुकी रेलगाड़ी 
चली रेलगाड़ी चली रेलगाड़ी 
कभी चलती सीधी कभी चलती आड़ी     .... 












Monday 13 July 2015

Hasya vyangya kavita ,KHATAM SAMJHO FUNNY POEM , MOBIL PHONE HINDI POEM , ख़तम समझो -व्यंग्य- HINDI FUNNY POEM ON SMART PHONES .






........ ख़तम समझो  ……व्यंग्य ………(११ /०७/२०१५ )


शेर अर्ज़ करता हूँ....... 
बदलती दुनियां का असर ,लोगो पे ऐसा होने लगा ,
की ये आदमी बेवकूफ और फोन स्मार्ट होने लगा ,
तो कहते है  …… 

मोबाईल जब से आया है ,कैमरा तो ख़तम समझो , ,
टाइम मोबाइल में क्या देखा ,घडी भी अब ख़तम समझो , 
जली क्या लाइट मोबाइल में ,टोर्च  भी ख़तम समझो ,
fm  मोबिल क्या बोला ,रेडिओ पैकअप है समझो ,
मोबाइल ने गाना क्या गाया , mp3 cd ख़तम समझो,
मोबाइल में sms आने से ,लेटर भी ख़तम समझो ,
मोबाइल से जोड़ घटाना भाग ,कैलकुलेटर भी ख़तम समझो ,
मोबाइल पे कंप्यूटर सा काम  ,कंप्यूटर भी  ख़तम समझो ,
मोबाइल जब से है आया , सच झूठ का भरम समझो ,


मोबाइल से बात कहीं करना , इंसा से दुरी ख़तम समझो ,
वक्त कर रहा आगाह ,दुनियाँ वालो कुछ तो समझो ,
मोबाइल से बच्चे होंगे पैदा , सोचो क्या ख़तम समझो ,
मोबाइल जब से है आया ,चैन सुकून ख़तम समझो ,

शायराना अंदाज़ में कहते है   …………
और  अगर आप का मोबाइल बीवी हाथ में  आया ,
माँ कसम से कहता हूँ , वो पती ख़तम समझो ,
मोबाइल की मुट्ठी में दुनियाँ , ये दुनियां भी ख़तम समझो ,
मोबाइल है या भस्मासुर , छुआ जिसको ख़तम समझो ,


Thursday 9 July 2015

Poem on zindagi life's , sacchai , BIKAAOO HINDI poem , REALISTIC POEM बिकाऊ- HINDI POEM ON OF VALUES OF LIFE BY SUNIL AGRAHARI


   





बिकाऊ…०७ /०६/२०१५  

आज कल इस दुनिया में हर चीज़ बिकाऊ है 
इन्सा की जुम्बिश है , हर चीज़ बिकाऊ है            जुम्बिश -हरकत 
जो नज़र नहीं आता , अब वो भी बिकाऊ है 
इन्स ने न कुछ छोड़ा अब ,भगवन बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 


दूल्हा दुल्हन दोनों ,ऑनलाइन बिकाऊ है 
प्यार तो था अनमोल ,अब वो भी बिकाऊ है 
है वक़्त ये क्या आया , माँ बाप बिकाऊ है 
लानत ऐसे रिश्तों पे , जो रिश्ते  बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 

आज कल भगवन कहाँ और किस तरह बिकाऊ है ये निम्न लिखित पक्तियों में व्यक्त है 

मेले ठेले फुटपाथ पे  , हर दाम में बिकाऊ है 
छोटी बड़ी दूकान और,हर मॉल में बिकाऊ है 
कोई धर्म हो या त्यौहार ,सब में बिकाऊ है 
देशी विदेशी हर ब्रांड में , भगवन बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 

मिटटी पानी पत्थर  , लकड़ी बिकाऊ है 
पैकिंग के दम पे तो  , कूड़ा भी  बिकाऊ है 
मंदिर में चढ़े फल फूल  , कपडे बिकाऊ है 
शमशान और कब्रिस्तान में ,लाशे भी बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 


चैनो अमन ईमान,आबो हवा बिकाऊ है 
जल्वा ज़ालिम इंसा, झूठ फरेब, बिकाऊ है 
शासन सत्ता ,फ़ाका ,फतवा बिकाऊ है ,  (फ़ाका -गरीबी , फतवा -आदेश )
बेसुध बैठा है बान , भरोसा बिकाऊ है   ,      बान - रक्षक 
आज कल इस दुनिया में  .......... 






Friday 26 June 2015

Motivational poem ,PRAYAAS HINDI POEM प्रयास- HINDI POEM ON HEARD WORK AND GOOD TRY

             ……… प्रयास …… (१५/०६/२०१५)  
SUNIL AGRAHAR 

मॉरीशस -प्रकाशित 
पत्रिका-आक्रोश 
जुलाई -2016 

बदकिस्मती से पंछी की चोंच से 
गिरा उन पत्थरों  के बीच ,
जहाँ पानी अब तक न पाया था 
किसी को सींच ,
मुझको अपना भविष्य 
दिख रहा था खतरे में ,
क्यों की मेरा वज़ूद जुड़ा था 
पानी के एक एक कतरे में ,
बादल बरसे बार बार  
और मैं हरपल करता इंतज़ार ,
एक बूँद कभी पानी की 
मुझे ले अपने आगोश में ,
मुझे इतिहास बनने से रोक ले 
मेरा वज़ूद रहे कायनात में ,
चलती है जब हवा बयार 
हिलता रहता हूँ बार बार ,
कि निकल पाऊँ इस अँधेरे कोने से ,
मैं भी जुड़ पाऊँ नीले आसमाँन से ,
इन्तज़ार और मेहनत रंग लाई ,
मुकद्दर से कुछ बूँद मुझ तक पहुँच पाई,
मैं तैयार हूँ आज अंकुरित होने को,
पत्थरों की ओट से सूरज की रोशनी पाने को ,
अब मैं अपने होने का एहसास कर सकता हूँ ,
बन के दरख़्त काम किसी के आ सकता हूँ ,
शायद ज़िन्दगी ऐसी ही है,
जिसको अपने हुनर और मुकद्दर से
जीती जा सकती है,
वर्ना ज़िन्दगी खो जाती है  
गुमनामी के अँधेरे में। 
   











Motivational poem ,KARMA HINDI POEM ON AIM , GOOD AND HEARD WORK , कर्म BY SUNIL AGRAHARI






..........  कर्म ..............(०९/०६/२०१५) 

मनुष्य हो कर्म पे, विश्वास तुम करो ,
मनुष्यता के धर्म को, ध्यान में धरो 
लक्ष्य के डगर पे ,अडिग बने चलो 
सत्य की जुबां बनो ,इससे न टलो 
लक्ष्य है पुकारता ,ध्वनि को तुम सुनो 
परस्थिति विसम मगर ,इमांन को चुनो
धूप छाँव रात दिन का ,फर्क न पड़े 
मुस्कराहट कम ना हो ,आपदा पड़े 
आंधी पानी कुछ भी हो, रहो निडर खड़े
कदम ताल ना डिगे, सुरताल में बढ़े 
कमर कसो जीत का ,ताना बाना तुम बुनो 
गीत नया गुनगुनाओ, विजय धुन धुनों
लक्ष्य के बुर्ज़ पे चढ़, आराम तुम करो 
प्यार करो सब से, नफ़रत दफ़न करो 
लक्ष्य जीत कर तुम ,गुरुर न करो 
शपथ ले दृढ संकल्प, कर्म तुम करो। ............. x 3   

 सुनील अग्रहरि

Motivational poem ,HAUSALA HINDI POEM हौसला BY SUNIL AGRAHARI

 


 




... हौसला  …१६ /०५/२०१५ 

हिम्मत की हथौड़ी  हाथ में लो ,
अनवरत कार्य पे प्रहार करो ,
हौसला बन  ईट दर ईट 
इमारत में जुड़ जाने दो ,
मलाल न दिल में रहे कोई
शिकायत न अपने आप से हो ,
ऐसे करता वैसे करता 
न बाद में कुछ कहने को हो ,
काम नहीं आसान कोई 
दामन में कांटे उलझेंगे ,
परवाह नहीं करना इनकी 
ये तो भटकाने आयेंगे ,
मुकाम तुम्हे हासिल जब हो 
शुकराना सब का अदा करना ,
हर शख्स मील का पत्थर है 
 न कोई किसी से गिला रखना , 
बस मन में कर के दृढ़ विश्वास ,
आगाज़ करो आगाज़ करो ,
तुम रुको न लक्ष्य पाने तक ,
आलस का संघार करो ,
कोई साथ चले न चले तेरे 
अपने रहबर खुद बन जाओ ,
मंज़िल एक दिन खुद बोलेगी 
खुली है बाहें आ जाओ ,
हिम्मत की हथोड़ी हाथ में ले 
प्रहार करो बस प्रहार  करो  .......