Thursday 1 November 2012

bhookh hindi poem भूख -कविता सुनील अग्रहरि - hindi poem on hunger , greedy people by sunil agrahari

               


हर मुसीबत की जड़ है , भूख है इंसान की ,
तन की हो या मन की ,न बस की है भगवन की ,


जीतना दुनियां को सारे ,भूख अंग्रेजो की थी ,
देखते ही देखते वो , सारा देश खा गए ,
लालच की भूख ने ही, गद्दार पैदा किये ,
मुल्क के बदले में, हमें गुलामी दे गए ,


"वास्को " को भूख थी ,खोज नई दुनियां की ,
भूख की ज्वाला में ,वो अपना जूता ही खा गए ,
 जग पे बादशाहत की, भूख थी " नेपोलियन " को ,
वाटर लू की जंग में , वो मात ही तो खा गए ,


चारा पशुवो का हो या ,शहीदों का  कफ़न ,
पेड़ पर्वत खदान हो या विधवाओं का वेतन ,
ऐसे भी है नेता जिनकी भूख मिटती ही नहीं ,
खाते है एक सांस में सब ,मगर डकार लेते ही नहीं ,

भूख का रूप है ,ये घिनौनी कुरीतियाँ ,
बेटे की भूख में , मर रही बेटियां , 
जिस्म की भूख में ,रिश्ते मर मिट रहे ,
इन्सा खाने लगा, इन्सा की बोटियाँ 

BOLI BHAGWAN KI HINDI POEM - कविता सुनील अग्रहरि - POEM ON GOD hindi poem SUNIL AGRAHARI

      

                  

 तेरी गढ़ी इस दुनियां में ,तेरी भी बोली लगती  है ,
कैसी है ये दुनियां भगवान ,तुझे भी नहीं बख्शती है ,

नाम से तेरे दौलत मिलती ,सब को ऐसा लगता है ,

सबको अपने करम की मिलती ,कोई नहीं समझता है,

डर  के मारे भक्ती  और चढ़ावा दिखावा 
करते है ,
अपने आप को धोखा देते ,ढोंग को  बढ़ावा देते है ,

भूखे तन में  ईश्वर बसते ,
कृपण मूरत ये सस्ती है  ,
चंद पैसे में मिल सकती है ,पर ये तो न बिकती है ,

गरीब तन को ढकने से, 
भगवान् खुश हो जाते है    ,
ताने दे कर उसे भगाते ,अपमान उसका करते है ,

तेरे ऊपर तेरे जल को ,भर भर लोटे चढाते  है ,

प्यासे जन पक्षी और पेड़ को ,बूँद बूँद तरसाते है ,

धोखा देते अपने आप को , भ्रम भरोसा 
तुझ पर है  ,
काम गलत खुद करते ,फिर तुझको कोसा करते है ,

Poem for nature प्रकृति अपमान-कविता सुनील अग्रहरि - nature disrespect poem ,climate action by sunil agrahari



नदी पेड़ पर्वत में जब बसते , सब के भगवान हैं  ,
फिर क्यों  इनको मार रहे , ये कैसी शिक्षा ज्ञान है ,

शुद्ध हवा फल फूलदाईनी प्रकृति ये जीवनधारा है 
इनकी सेवा रक्षा  करना ये कर्तव्य हमारा है 

साँस की डोर हवा में बहती , इसका दम हम घोट रहे है 
प्रगति के नाम पे पल पल चलते 
प्रकृति का सीना छलनी करते चलाते तीर कमान ,

आलीशान महल में रहते "अली '' को हम भूल रहे है ,

पेड़ काटते  खोदते  धरती , करते हो माँ का अपमान ,

मिट्टी से तुम निकले थे ,मिट्टी में मिल जाओगे ,

आये थे  खली हाथ जहां में , खली  हाथ ही जाओगे ,

चैन से  सोया , खेला, कूदे ,जगह थी माँ गोदी ,

धरती माँ भी अपनी है , फिर उसकी आस क्यों खो दी ?  





Monday 8 October 2012

बचपन का सिकंदर -कविता सुनील अग्रहरि , child labor poem

                    

इस को कविता अखिल भारतीय अणुव्रत संस्थान से प्रतियोगिता में प्रथम पुरष्कार प्राप्त हुवा है. 


 वक्त था सुबह का , मै जा रहा था स्कूल ,
 एक जिम्मेदार कन्धा देख , मै  गया ख़ुदा  को भूल ,
 वो बोझ था परिवार का , मर रहा था बचपन 
 जिम्मेदारी ढो  रहा था, उम्र हो जैसे पचपन ,
कंधे पे एक डंडा , लड्डू थे जिसपे लटके ,
दिनभर में शायद कोई खरीदता था भूले भटके ,
जीवन में जिसके फैली थी, चारों तरफ खट्टास
वो बेच रहा था बच्चों के बीच ,जीवन की मिठास ,

सुबह का नाश्ता ,क्या उसने किया होगा ?
 खली पेट पानी शायद रास्ते में पिया होगा ,
 भूखे पेट भूख को फिर ,उसने रौंदा होगा 
सूखे गले से फिर "लड्डू ले लो" बोला होगा,

  सोचा तो होगा उसने ,कभी स्कूल मै भी जाऊँ  
  संग सब के खेलू कूदूं ,संग सब के नाचूँ  गाऊँ  ,
  दूजे का खाना खाऊ और अपना टिफिन बांटे 
  मै भी करूँ शैतानी , मुझको भी टीचर डांटे ,

 बिताता है दिन जाने वो कैसे कैसे 
 बेच कर कुछ एक  लड्डू ,कमाए गा थोड़ा पैसे ,
घर पहुंचेगा शाम को  और माँ बनाएगी खाना ,
तब जायेगा उसके पेट में एक अन्न का दाना ,

जीवन की चूल्हा चक्की में खेल खो गया 
बचपन में तरुणाई का मेल हो गया ,
खिलौने  सी उम्र में खिलौना खो  गया 
रूठी थी  किस्मत उसकी  वो भूखे पेट सो गया ,
घर के हालात से वो मजबूर हो गया ,
शिक्षा के  मंदिर से वो दूर हो गया ,
परिवार पालने के खातिर सब से दूर हो गया ,


ये भी तो नेक काम है , मानवता और धर्मं का,
पर समाज नहीं समझता ,ये विषय है शर्म  का ,

क्या ओलम्पिक में जीत को ही सम्मान मिलना चाहिए ?
मेरी  समझ से इसको भी ईनाम मिलना चाहिए ,
लेकिन    ....... 
इसको समझने के लिए दिल में दीन ,धर्मं, ईमान ,चाहिए,
पर ये हो न सका .......और
बचपन का ये सिकंदर ,घायल हो गया ,
इस उम्र में उसकी हिम्मत का मै  कायल हो गया ..............
इस उम्र में उसकी हिम्मत का मै  कायल हो गया.............
इस उम्र में उसकी हिम्मत का मै  कायल हो गया...............

                                                                       सुनील अग्रहरि 
  

Monday 1 October 2012

Naari hindi kavita नारी - कविता सुनील अग्रहरि , naari poem for women's , poem kavita for women's day

          

           नारी
जिस नारी की पूजा की 
देवों मानव ने मिलकर ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ,


कली सी बच्ची फूल बनी जब ,
घर में आफत आई ,
कैसे होगी शादी इसकी ,
कैसे होगी सगाई ,
दहेज़ की चिन्ता में जल कर ,
करते थे दिन रात बसर,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ...............

गहने बेचे मां ने अपने ,
की बेटी की सगाई 
खेत के संग  जब घर भी बेचा ,
रकम दहेज़ की आई 
दहेज़ का दानव अब  भी प्यासा , 
कहाँ से लाऊ सागर  ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर .............

बचपन में, मां,  बाबा बोली ,
मिश्री सी घुल जाती थी ,
चाँद का टुकड़ा सब को प्यारी , 
घर की राजदुलारी थी ,
टूट पडा क्यों उसके ऊपर ,
किस्मत का खामोश कहर ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर  ..............

छोड़ चली बाबुल की गलियां ,
आज चली है पीहर ,
बूढ़ा  पीपल देख रहा है ,
रोता है सब नैहर ,
घर के कोने खुश और सहमे , 
चुप कैसा है मंज़र ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर  .................

Sunday 30 September 2012

mutthi ki ret - कविता सुनील अग्रहरि - मुट्ठी की रेत overconfident , rays of hope sunil agrahari

            


बंद मुट्ठी की रेत  की तरह धीरे धीरे 
चला गया सब कुछ ,
हमें लगा की हमारे हाथ में अभी है बहोत  कुछ ,
मुट्ठी खोला तो लगा ,
सब जो मेरे पास था,वो एक गुम  तारे की तरह 
 इतिहास बन गया था ,
मै घबराया,हड़बड़ाया ,तन बदन में बिजली सी कौन्ध गई 
और तब महसूस हुवा, की मै तो अतीत में जी रहा था ,
हाय कितना पीछे रह गया था ........
उन सभी चीज़ों से ,
जिनको आज ख्वाब में भी  देखने के लिए
कई बार गहरी नींद में सोना पड़ेगा ,
उस पर ये नहीं भरोसा की ,ख्वाब में  देख ही लेंगे 
और उस  एक ख्वाब के लिए ,बचे हुवे वक्त से 
न चाहते हुवे भी शेष रातों  को यूँ ही गवाना पड़ेगा ,

क्या इसी तरह बोझिल थके हुवे से अपने वक्त को
बदलने में हम कामयाब होने की बात सोचते है .....?
लगता है ऐसा की हम उन परछाइयों को पकड़ने की 
कोशिश कर रहे है,
जो हाथ नहीं आती सिर्फ दिखाई देती है ,
क्या कभी मुट्ठी की  रेत ,मुट्ठी में वापस आई है ?
गुजरे हुवे वक्त से ,अपने बीते पल वापस मिलेगे ?
कैसी वाहियात बाते सोच रहा  हूँ मै .......
बीते पल, किसको वापस मिले है 
जो आज मै पाना चाहता हूँ ....
मुझे लगता है ,मै अपने दिल को झूठी तसल्ली दे रहा हूँ ,
मन को अँधेरे में रख कर ,
कोशिश कर रहा हूँ ,निकले हुवे आंसू को,
 वापस आँख में भेजने  की ,
पत्थर को मोम , और दिन में चाँद देखने की ,
ऐसा न कभी हुवा है, और न होगा ,
डर लगता है इस ज़िन्दगी की भीड़ में कहीं खो  न जाऊ,
बिछड़ जाऊ अपनों से ,रह जाऊ तान्हा,
आज एक हाथ की तलाश की है ......
जो मुझे वापस लाये, उस अँधेरी काल कोठारी से ,
जिसने मुझे जकड रखा है नागपाश की तरह 
और निकाले मेरे दिमाक से उस नाकाम कोशिश को 
जो मेरे दिमाक ने ठान रखी है
रेत को पेर कर  तेल निकालने की  ,
समझाये हकीकत ज़िन्दगी की ,
मदद करे गुम हो चुकी चीज़ों को भूलने की ,
कुछ नया करने की  ,हिम्मत ,लगन ,विश्वाश , दे ,
मेरी मुट्ठी में रेत नहीं , आशा की नई शक्ति दे ..और ..साथ का अहसास दे ...............



















Friday 28 September 2012

कली एक मुहब्बत kali ek muhabbat -कविता सुनील अग्रहरि

                       


मासूम कली पर नज़र पड़ी ,
माली गया था बगीचे 
मुहब्बत से सीचने उस घडी ,
नर्म सुबह की ओस सी  मुहब्बत की पहली बूँद 
कली पर पड़ी 
मुस्कुरा उठी कली की नर्म होंठो सी पंखुड़ी ,
शर्म से मखमली डालियों सी बाहे मुझसे लगी खिचने ,
यूं तो हजारो फूल और कालिया , 
 महका रही थी माली  की दुनियां ,
मगर न लगा दिल किसी में .......
अपनी चाहत से सीचते सीचते मेरी  ज़िन्दगी 
दिन और रात के फूलों की माला बनाती जा रही है 
इस माला के अंतिम फूल, ये कली ही तो है 
तभी तो माली का वक्त , कली  को फूल बनाने में  बीतने लगा है ,
जाने क्या बात है इस कली की खुशबू में ,
सब छोड़ इस कली के पास ही आने लगा है ,
कली की  कोमल  पत्ती में, अपनी  ज़िन्दगी की महक पाता है,
दिन ब दिन कली की खुशबू बढ रही है ,
शायद इसमें माली को अपनी मुहब्बत दिख रही है ,
कली को अपने सब्र का बाँध टूटता सा दिख रहा है ,
क्यों की अब वो  खिलना चाहती है,
मगर वो हैरान है 
क्यों ?
क्यों की माली की बाहें ,लहूलुहान है ,
हिम्मत करती है ,पूछती है कली,
तेरी बाहें लहूलुहान क्यों है ऐ माली .......?
माली घबराता  है ,अपनी बाँहों को छुपाते हुवे कहता  है,
मेरे बाजू में घाव ,उन फूलों ने दिए  है 
जिन्हों ने अपने कांटे हमें , खुशबू औरो को दिए है ,
सुन कर ज्वालामुखी सा सच 
कली दुगुनी खुशबू के साथ ,
फूल बन कर आ गिरी, घायल  माली के दामन में ,
माली ने भी फूल को लगा दिया माला के अन्त में ,
फूल भी माली के आंशियां के गुलदस्ते में ,
सुकून से सज के मुस्कुराते हुवे खुशबू से माली के 
घाव को सींच  रही है  .........
    





Friday 21 September 2012

kahaar kavita by sunil agrahari , vafa befaai, viyog ras par kavita by sunil agrahari

  

**कहार**-(डोली  उठाने वाला ) 

कैसे कहूँ तुमको अपना 
तुम भी वही निकले ,
दूसरों के रंग में सराबोर ,
सामने पड़ते गले लगना
नज़र से ओझल होते भूल जाना ,
हम तो उस कहार की तरह ही हो गए है
जो अपना सब कुछ  छोड़
मालिक का बोझ उठा कर
चल पड़ता है उसकी मंजिल की तरफ  ,
कैसे कहूँ तुमको अपना ..........
तुम्हारी यादों का बोझ इस कहार के कन्धे
ढोते ढोते थक से गए है ,
डरता हूँ कहार  लडखडा  कर गिर न जाये
और यादों का मालिक नाराज़ न हो जाये ,
                           कभी सोचा है ............
ये कहार भी तो तुम्हारी तरह इंसान है ,
इसके कन्धे दर्द  तो नहीं कर रहे
इतना तुम्हारे  महसूस  करने से ही
कहर का दर्द ख़त्म हो सकता है .....
कहर को भी मालिक में अपनेपन का अहसास हो जायेगा ,
जब की सफ़र से पहले तुमने क़रार किया था की
मै  तुम्हारा ख्याल रखूँगा ......
मजबूरी का फायदा तुमने भी तो उठाया
दिलासा दे कर फ़रेब किया ....
किस बात का अपनापन
तुम्हारी बातों में भी  तो ज़माने की बू है
जब ज़रुरत पड़ी  डोली  पे सवार हुवे ,
देखा महल अपना कहार को भूल गए ,
कहार तो हमदर्दी का भूखा ,मुहब्बत  का प्यासा,
जमाने को भूला  था ....
मगर तुमने करार तोड़ कर
हमदर्दी से भूखा रखा ,मुहब्बत से तडपाया
हर बात पे ज़माने को याद दिलाया
कैसे कहूँ तुमको  अपना ......
ज़िन्दगी की ऊँची नीची राह पर कहार कितना संभल कर चल रहा था
के उसके मालिक को कोई तकलीफ न हो ,
और एक तुम हो की डोली में लगे फूल को
तोड़ तोड़ कर फेकते हुवे अपना मन बहला रहे थे
जिससे कहार की डोली बेतरह हिल रही थी ,.....
 कभी सोचा के कहार ने कितने अरमान से
डोली को अपनी चाहत के फूल और  तोरण से
एक  एक कर सजाया था,
तुमने  भी खुश हो कर   कहार का शुकराना अदा किया था
तुम्हारी इस अदा को कहार अपनापन समझ बैठा
ज़माने से हो कर जुदा ,वफ़ा दर वफ़ा निभाता गया
अपने पैरों में लगे कांटे और कंकड़  के दर्द से बेखबर
तुम्हारे बोझ को अपनी जिम्मेदारी और किस्मत समझ कर
एक सुर ताल में बढ़ता रहा सफ़र दर सफ़र ......
आज तुम अपने साबिस्ता पर चैन से नींद की आगोश में हो
और कहार बोझ के दर्द से बेहोश
कैसे कहूँ तुमको अपना .....................
जब से तुम गए हो
कहार हो गया है लाचार
आज वो सूनी डोली भी नहीं उठा सकता
क्यों की तुमसे ज्यादा भारी है
तुम्हारी यादें ,जिसको जाते वक्त छोड़ गए तुम ,
ऐ यादों के मालिक ,क्या जाता तुम्हारा
ग़र पूछ लेते कहार से , तुम थके तो नहीं
मगर न हो सका ऐसा
ऐसे में ये कहार ,
वफ़ा करते करते अधमरा हो गया
बेवफा न कहलाऊ डर  के पूरा मर गया
अन्दर से
आज ये कहार एक जिन्दी लाश है
न हमदर्दी की भूख है
न मुहब्बत की प्यास है
जो इसे अपना समझ कर दफ़न कर सके
इस जिन्दी लाश को एक ऐसे साथी की तलाशा है .......
ऐसे साथी की तलाशा है
ऐसे साथी की तलाशा है।।।।।।।।।।।।।।।।


   

Tuesday 18 September 2012

Khunti hindi poem , bejaan khunti yadon ki , tanhaai , - कविता सुनील अग्रहरि

एक तुम्हारे  जाने के बाद ,
कमरे की दीवार सूनी है  और खामोश भी ,
हमारी नज़रे  उस दीवार की खूँटी से मिली
जिसके ऊपर जिम्मेदारी थी ....तुम्हारी  ,
आज इस खूँटी को भी शायद
दीवार पर लगे होने का मतलब  समझ  में नही आ रहा है ,
दीवार और खूँटी आज अपने आप को अर्थहीन समझ रहे है ,
हमारी नज़रों में ..........
क्यों की मैंने बहोत दिन बाद आज  इनको देखा है ,
इन्हें याद आता है वो वक्त
जब मेरी नज़रे इन्हें कितनी देर तक लगातार
देखा करती थी ,
उस झरने की तरह जिसका पानी अनवरत
बिना किसी रुकावट के गिरता रहता है उस
पत्थर पर जिसको अपनी जान में कभी सूखेपन का अहसास
ही नहीं हुवा हो ,
लकिन आज शायद वो पत्थर डरता है ,
कही नमी एक  ख्वाब  न हो जाये
तब तड़प होगी उसे एक बूँद की .....

ठीक उसी तरह ये दीवार और खूँटी सोचते है ,

कही ऐसा तो नहीं मै  इन्हें भूल जाऊ
कल तक जो हमारी आदत में शुमार  था इन्हें देखना
वो सब एक ख्वाब हो जाये ...

मै इन्हें कैसे बेजान मान लूं ,

इन्हें आज भी हमारे में अपनापन झलकता है ,
वरना इनको हमारी तन्हाई से क्या लेना देना ,
आज ये परेशां है ,खामोश है ,सिर्फ मेरी वजह से ,
नहीं तो मैंने तुम्हारी तस्वीर ही तो टांगी थी इसपर ,
वो .....खूँटी भी कितनी इमानदारी से अपनी  जिम्मेदारी
निभा  रही थी,
चाहती तो वो भी बोझ समझ सकती थी
लकिन नहीं ....
वो दीवार भी कितनी जिम्मेदारी से वफ़ा निभाते हुवे
खूँटी की पकड़ आज तक मजबूत चोली दामन सी
बनाये हुवे है ,
सच कहूँ तो वफ़ा की इज्ज़त बरक़रार रखी है खूँटी और दीवार ने ,
  खूँटी और दीवार की मुहब्बत देख कर आज मै
दीवार से लग कर खूब रोया  तो लगा ............
तुम्हारी वजह से मेरी नज़र ही तो पड़ती थी
इन बेजान खूंटी पे ...

उसपे इतनी मुहब्बत मुझसे .......हाँ ?


फिर तुमको तो खुदा मान कर  सज़दा किया था ,

तुम तो बेजान नहीं हो ?
मैंने तो चाह था की तुम मुहब्बत की खूँटी बन कर
मेरे दिल में बस जाओ ....
मै  उस दीवार की तरह अपनी वफ़ा दिखाना चाहता हूँ ,
मेरे लिए न सही ...
इस खामोश दीवार और तन्हां खूँटी के लिए
अपनी तस्वीर तो वापस दे दो ,
मै  तुम्हें न सही तुम्हारी तस्वीर देख लूँगा
ये दीवार और खूँटी फिर आबाद हो जायेंगे
इनकी शिकायत खत्म हो जाएगी
इन्हें इनकी चीज़ मिल जाएगी

हमें न सही इन्हें तो खुश कर दो ,

तुम अपनी नज़र में बेजान से बेजान को मिला दो ,
मुहब्बत इन्ही से कर लूँगा
मिल के इनसे ही रो लूँगा
क्यों की मेरी नज़र में तुम तीनो जानदार हो , हाँ
तुम्हारी नज़र में हम तीनो बेजान हो सकते है ,
इतना सा रहम इन बेजुबानो पे कर दो ....
क्यों की तुम्हारे जाने के बाद ...............................

Wednesday 12 September 2012

kora kagaz hindi kavita - love affection , jazbzzt sunil agrahari

***कोरा कागज़***
मैंने एक कोरे कागज़ को तड़पते देखा ,
उसकी तड़प भी जायज़ थी ,
उसकी चाहत थी उसपे 
कोई कलम ऐसी चले ,
जो लिखे हंसी  जज़्बात 
या बने तस्वीर जिसकी हो औकात ,
वर्ना कोरा कागज़ कोरा ही है ......

उस कोरे कागज़ को देख कर लगा ,
कही मेरा दिल  भी शायद इसी तरह तो नहीं ...?
क्यों की इस दिल की तड़प भी कुछ इस तरह है ,
सोच इसकी भी हंसी  उस कागज़ की तरह है ,
वो  चाहता है
एक साथी जो प्यार करे उसकी बुराइयों से
जो पहचान ले उसको उसकी परछाई से ,
लकिन डरता है उस कागज़ की तरह
कही कोई गन्दी तस्वीर या तहरीर न लिख दे ,
जिसे देखते या पढ़ते ही फाड़ कर फेंक दे लोग .....

मगर आज नई  सीख लिया ,मैंने कोरे कागज़ से,

हर अच्छी  बुरी सोच के आगे
अपनी बाहें खुली छोड़ देता है ,
चाहे जो लिखो बनाओ किस्मत पे छोड़ देता है ,
लेकिन  कागज़ की बेबाक अदा  सागर के किनारों की
तरह सब का इस्तकबाल करते हुवे
बुरी सोच की कुची या कलम रुकने नहीं देता ,
तहरीर ख़ुद की हो या तस्वीर अश्लील
सब का दिली स्वागत करता है ....................

कागज़ से  दरियादिल तालीम  लेकर

मेरे दिल ने तुम्हारे सामने अपना दामन फैला दिया है
सुलूक अच्छा करते हो या बुरा ,तुमपर छोड़ दिया है ,
गले लगा कर मरते हो खंजर या
कद्र करते हो मेरे जज़्बात की ..........

वैसे ......अपनी जान में मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है ,

हक़ीक़त में  सब के लिए  अपने आप को कबाड़ा  है ,
तुमसे  मेरा दिल अभीतक क्यों कोरा है ...?

बना दो तस्वीर अपनी

लिख दो  तहरीरे मुहब्बत
नाम तेरा भी होगा
बन जाएगी इस दिल की किस्मत ...........
उस् कोरे कागज़ की तरह ....आज
जिस पर तहरीरे ख़ुदा है  ,
जिस पर  तस्वीरे  ख़ुदा है ,
आज लगता है ये दिल ...........कोरा कागज़ है ....

  

Tuesday 11 September 2012

Sparsh hindi poem ,स्पर्श - feelings , ehsaas , yaade ,poem by sunil agrahari

                               

कल तुम्हारे पास था , तब मै  तुमसे दूर था ,
आज तुम मुझसे दूर हो तो लगता है ...
मै तुम्हारे कितने करीब हूँ .....
हकीक़त में तुम दूर तब भी थे और आज भी ,
कल रूबरू थे ,आज अहसास हो ,
सामने  धड़कन के साथ थे ,
आज तुम्हारी यादों के साथ हो  ,
कल तुम्हें देख सकते थे
चाँद तारों की तरह ,
आज यादों की छुअन  महसूस करता हूँ
बहती हवा के झोंके की तरह ,
बात कर सकता था कल
आज सिर्फ सोच सकता हूँ ,
न छुआ था कल
इस लिए स्पर्श का अहसास कर नही  सकता,
अब  दूर रह कर ,छूने की  तमन्ना लिए
तुम्हारे पास हूँ ,
एक तुम्हारी
आस है
जो हमारी
सांस
है .........................





Thursday 23 August 2012

PAHLI BAAR EK MUHABBAT KAVITA पहली बार एक मुहब्बत कविता - FEELINGS OF LOVER POEM , POEM ON LOVE BY SUNIL AGRAHARI

                                    


 

जब तुम्हें पहली बार देखा था , तो ऐसा लगा ....
क्या तुम वही हो ?
जिसकी तलाश हमें उस वक्त से है ,
जिस वक्त हमारे दिल  में,
 तन्हाई ने उथल पुथल मचाई   थी  ,
उस पल हमें लगा था ,शायद  हमारे दिल को
किसी ऐसे सहारे की ज़रूरत है,  जिसे हमारे मिलने पर लगे की ,
शयद उसे भी हमारे सहारे की ज़रूरत थी,
यूँ तो हजारों दिल ने हमारी तन्हाई को मिटाना चाहा ,
लकिन ....
उनकी कोशिश नाकाम रही ......
लकिन जब तुमको देखा ,तो बिना कोशिश के जैसे
आफ़ताब के आने पर माहताब गुम हो जाता है
वैसे ही तुम्हारे रौशनी से तन्हाई की तीरगी गुम हो गई  ,
क्या तुम ही हो हमारी ग़म -ए -हयात ....
ख़त्म करने वाली ...?
मुझे ऐसा लगता है ,पता नहीं तुम क्या सोचती हो ,
हमारे ज़ज्बात तो बेकाबू हो जाते है ,
तुम्हारी परछाई से ....
सोचता हूँ तुमसे कितनी बाते कर लूँ, मगर
तुम्हें जब हकीकत में पता हूँ ,
सांसे तेज़ नदी की मौजो की तरह चल पड़ती है ,
धड़कने तेज़ हवा के झोंके से हिलती हुई 
कजोर पत्ती सी बढ जाती है ,
लब , जुबान ऐसे खामोश हो जाते है
जैसे तराशी  हुई बुत ,
जो खुद नहीं बोलती ,उसके भाव ही उसकी जुबान होते है ,
उस वक्त तुम हमारे चेहरे के भाव को पढ़  लेते हो ,
और गहरे सागर के पानी की तरह जो हौले हौले हिलता रहता है ,
धीरे से मुस्कुरा देते हो ,
क्या तुम भी वही महसूस करते  हो ?
जो हम अहसास करते है ,
या हमें भी और दीवानों की तरह देख कर
हमारी दीवानगी पर हँसते हो ,
तो तुम शायद बड़ी कलाकार हो
जिसके पास हिम्मत है, 
किसी की तन्हाई पर हंसाने के लिए ,
जब की तुम भी तन्हां हो ,
क्या तुमको तन्हाई नहीं सताती ...?
आज नहीं तो कल ,जिस ज़माने से डरती हो
वही मजबूर करेगा ....एक साथी के लिए ,
उस वक्त  तुम हमें याद करो या न करो लेकिन
मै तुम्हारी तन्हाई पर तुम्हारी तरह नहीं हसूंगा ,
बढ़ कर हाथ पकड़ लूँगा  उस बेल की तरह ,
जिसको बढ़ने के लिए एक सहारे की ज़रूरत होती है ...मजबूरी नहीं ,
उसी तरह इस वक्त तुम्हारा साथ चाहिए क्यों की ,
मै  तुमको पाना चाहता हूँ ........
और शायद तुम समझती  भी हो ..
लकिन तुमको  ख़ामोशी की ज़ंजीर ने जकड़ रखा है ,
एक दिन तुम इस ज़ंजीर को इस तरह से तोड़ोगी
जिस तरह ..एक  बीज जब पौधा बनता है 
तो पत्थर भी तोड़ कर बहार आ जाता है ,
हमें इंतजार है उस वक्त का
जब तुम्हारी चाहत तुम्हारे सीने से निकल कर
जुबां के रस्ते से होते हुवे ,लब  के दरवाज़े पर अहिस्ता अहिस्ता
आकर ,
शरमाते हुवे अपने ज़ज्बाती सैलाब, हमारे सीने के दरिया में
ठहरे हुवे पानी को हौले हौले से हिला कर हलचल मचा देगी ,
उस पल का इंतजार
हमें साँसे उधार ले कर भी करना पड़े तो
करूँगा ,
क्यों की हमें
तुमपर
भरोसा
है ,
जब तुमको देखा था ,तो ऐसा ही लगा था
सच में ............





Wednesday 22 August 2012

AEHSAAS EK MUHABBAT अहसास एक मुहब्बत - कविता SUNIL AGRAHARI

                                   

 

हाँ मै तुम्हें  पाना चाहता हूँ ,
क्यों  की मै तुमको चाहता हूँ ,
उस पत्थर की तरह ,जिसे टूटने का डर  न हो ,
तुम्हारी उन नज़रों का शुक्रिया ,
जिसने पत्थरो  को भीड़ से निकला हमें  ,
परखी जौहरी सी नज़रो नें ,
हमें मामूली पत्थर से नायाब नगीना बना दिया ,
इस पत्थर को भी इंतजार  था ,
उस जौहरी का , जो इस पत्थर का दीवाना हो ,
तो ये पत्थर क्यों न  चाहे उस जौहरी को ,
जिसने उसे एक नाम दिया ,मालिक बना अनाथ का ,
दीवाने खरीदार पैदा किये ,
इस बेवफा बाज़ार में,
तुम्हारी मुहब्बत को उस हवा की तरह ,
अहसास करता हूँ , जो दिखाई नहीं देती ,
तुम्हें छू कर जो हवा आती है ,
वो तुम्हारे पास होने का अहसास दिला जाती है ,
दुनियां की हर खूबसूरत चीज़ में तुमको देखता हूँ ,
हर मदहोश करने वाली
खुशबू में तुमको अहसास करता हूँ ,
हकीकत में होते हुवे भी उस ख्वाब की तरह हो ,
जो याद में तब्दील हो जाती है ,
आफ़ताब की रौशनी की गर्मीं में ,
तुम्हारे उम्र को एहसास करता हूँ ,
माहताब की धवल चांदनी में 
तुम्हारी वफ़ा को देखता हूँ ,
भोर के आगोश में मीठी नींद की तरह 
तुम्हारे बाँहों में मिले सुकून को पाता हूँ ,
दोपहर के सन्नाटे में 
तुम्हारे चाहत की गंभीरता को पाता  हूँ ,
शाम के सुहानेपन में 
तुम्हारे जुल्फों के नर्म साये को अहसास करता हूँ,
हर अच्छी सोच में पाता  हूँ तुम्हें ,
हर अच्छे अल्फाज़ का मतलब हो तुम ,
ग़ज़ल शेर शायरी की मिठास हो तुम ,
हमारे और खुदा  के बीच की सीढ़ी  हो तुम .....
इसी लिए चाहता  हूँ तुमको ,
दूर हो के भी तुम मेरे पास हो ,
यही अहसास करता हूँ
तुम्हें पास पाता  हूँ ,
यही हकीकत है ,
तुम्ही मुहब्बत हो ,
तुम्हें ही
पाना चाहता
हूँ  

Monday 13 August 2012

FUNNY Arti for children's आरती चिल्ड्रन देवा by sunil agrahari

        
ॐ जय चिल्ड्रन देवा ...2
स्वामी जय  चिल्ड्रन देवा
मम्मी और पापा के प्यारे
टीचर्स के तुम दुलारे
पर सब तुमसे हारे .....
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....

जब हमारे प्रभु कैंटीन जाते है तो , वहां की  आभा देखने लायक होती है , इनके क्रिया  कलाप से

पूरी कैंटीन हिल सी जाती है .....तो कहते है ......

जब तुम कैंटीन पधारो

कैंटीन व वाले तौबा करें
प्रभु हाय हाय तौबा करें
भैया चौमीन भैया बर्गर कह के
धक्का मुक्की शोर करे ....
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....

आ  हा हा क्या बात है ,प्रभु की लीला अपरम्पार है , जब ये वाशरूम और क्लास  में जाते है तो

कैसा मसूस करते है ....कैसे कैसे चमत्कार करते है ....उसका वर्णन कहते है .....

क्लास  और वाशरूम में  जा के  ,

जिम जैसा फील करे ,
प्रभु जिम जैसा फील करे ....
डोर विंडो वाटर टैप तोड़ के  ...2
प्राउड खुद पे फील करे ....,
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....

कैसे इनका सचित्र वर्णन करे ....अद्भुत क्रिया  कलाप के स्वामी है , इक्कीसवी सदी में

प्रभु का पूरा पूरा योगदान है .....मोबाइल ,फेसबुक ,टी वी ,कंप्यूटर , विडियो गेम ...कुछ भी नहीं बचा इनसे .
तो कहते है ......

फेसबुक तुम बिन सूना ,

मोबाइल बिन जी न सके ,
 विडियो गेम के दीवाने ,पी यस 2,पी यस 3 के दीवाने ,
कंप्यूटर पे आँख फोड़े ......
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....

वाह प्रभु वाह सारी दुनिया आप से डरती है और आप किससे डरते हो ...इसका  वर्णन करना चाहूगा ..

तो कहते है .....

होम वर्क तुमको डरावे

यू . टी. परेशान करे .....
प्रभु यू. टी . परेशां करे
 क्लास वर्क से घबराते ...2
चीटिंग में विश्वास करे ..
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....

हमारे चिल्ड्रन रूपी प्रभु के ऊपर इस युग के वस्त्र  का बहोत बहोत प्रभाव पड़ा है , चाहे घर कहो या बहार का या स्कूल का ,हर जगह एक अलग पहचान बनती है .......


पैंट कमर पे न टिकती ,

शर्ट को बहार करे ......
प्रभु शर्ट को बहार करे ...
डियो और हेयर जेल लगा कर
टॉम क्रूज़ को फील करे
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .........

आप के इस तरह तरह के लानत रुपी  अदभुत लीलाओं से प्रभु कभी कभी डर  लगता है , आप से देश के  माता  पिता स्वरूपी  भक्तो को  बहोत उम्मीद है उनपर अपनी कृपा बरसा कर देश का उद्धार करें ..


तुम हो देश के कर्णधार ,

तुम न बंटाधार करो ..
प्रभु तुम न बंटाधार करो ..
देश है तुमपर निर्भर ..2
सब का तुम कल्याण करो ...

ॐ जय चिल्ड्रन देवा .........


children's day geet , baal divas ki hindi geet ,

 
 CHILDREN'S DAY AARTI 
 BACCHON KI AARTI 
AARTI CHILDREN'S DEVA 

 आरती चिल्ड्रन देवा 


ॐ जय चिल्ड्रन देवा ...स्वामी जय  चिल्ड्रन देवा
मम्मी और पापा के प्यारे  टीचर्स के तुम दुलारे
पर सब तुमसे हारे .....ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....

                                                                           व्यख्या 
भूखों  के देवता हमारे प्रभु कैंटीन जाते है तो वहां की आभा देखने लायक होती है , इनके क्रिया कलाप से

 वहां के चम्मच कटोरी कढ़ाई गैस चूल्हा पूरी कैंटीन हिल कर कहती है .....तो कहते है ......
जब तुम कैंटीन पधारो

कैंटीन व वाले तौबा करें
प्रभु हाय हाय तौबा करें
भैया चौमीन भैया बर्गर कह के
धक्का मुक्की शोर करे ....
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....
                                                                          व्यख्या 
हमारे प्रभु के अंदर बहुत ताकत ऊर्जा कूट कूट कर भरी हुई  है , जब ये वाशरूम और क्लास  में जाते है तो तब वो energy फुट फुट कर बाहर  आती है,कैसे कैसे चमत्कार करते है ..उसका वर्णन कहते है .....
क्लास  और वाशरूम में  जा के  ,

जिम जैसा फील करे ,
प्रभु जिम जैसा फील करे ....
डोर विंडो वाटर टैप तोड़ के  ...2
प्राउड खुद पे फील करे ....,
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....
                                                                         व्यख्या 
कैसे इनका सचित्र वर्णन करे ...अद्भुत क्रिया कलाप के स्वामी है , इक्कीसवी सदी में प्रभु का पूरा पूरा योगदान है ...मोबाइल ,फेसबुक ,टी वी ,कंप्यूटर , विडियो गेम ...कुछ भी नहीं बचा इनसे .तो कहते है ......
फेसबुक तुम बिन सूना ,

व्हाट्सएप का स्यापा रोये ,
 विडियो गेम के दीवाने ,पी यस 2,पी यस 3 के दीवाने ,
कंप्यूटर पे आँख फोड़े ......
ॐ जय चिल्ड्रन देवा ....
  व्यख्या 
वाह प्रभु वाह सारी दुनिया आप से डरती है और आप किससे डरते हो ...इसका  वर्णन करना चाहूगा ..

तो कहते है .....
होम वर्क तुमको डरावे

यू . टी. परेशान करे .....
प्रभु यू. टी . परेशां करे
 क्लास वर्क से घबराते ...2
चीटिंग में विश्वास करे ..
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .....
व्यख्या 
हमारे चिल्ड्रन रूपी प्रभु के ऊपर इस कलयुगी  वस्त्रों का बहुत ज्यादा  प्रभाव पड़ा है , चाहे घर , बहार या स्कूल का ,हर जगह एक अलग पहचान बनती है .......
पैंट कमर पे न टिकती ,

शर्ट को बहार करे ......
प्रभु शर्ट को बहार करे ...
डियो और हेयर जेल लगा कर
टॉम क्रूज़ को फील करे
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .........
व्यख्या 
आप के इस तरह तरह के लानत रुपी  अदभुत लीलाओं से प्रभु कभी कभी डर  लगता है , आप से देश के  माता  पिता स्वरूपी  भक्तो को  बहोत उम्मीद है उनपर अपनी कृपा बरसा कर देश का उद्धार करें ..
तुम हो देश के कर्णधार ,

तुम न बंटाधार करो ..
प्रभु तुम न बंटाधार करो ..
देश है तुमपर निर्भर ..2
सब का तुम कल्याण करो ...
ॐ जय चिल्ड्रन देवा .........


                                              सुनिल अग्रहरि

Tuesday 24 July 2012

Aagey hi badhte janna hai motivational poem @sunill agrahari


                             





... आगे ही बढते जाना है ..


 this song is  for   “DHL. INFRABULS INTERNATIONAL PRT.LTD. INDORE ”.
Now it’s a theme song of this company………………..


हिम्मत लगन विश्वास से , आगे  ही  बढते  जाना है ,
जन जन के दिल में हमको, अपना विश्वास जगाना है ,

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,

आओ मिलकर हम साथ चले ,
हर मुश्किल को आसान  करें,
छोटी  बड़ी  हर  खुशियों   से ,
सब के जीवन में प्यार भरें ,

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,

आगाज़ हमने कर दिया ,
अंजाम तक पहुचाएं गे ,
अंदाज़ हमारा अपना है ,
आवाज़ बुलंद हमारी है ,

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,

शुरुआत किया इस धरती से ,

हम आसमा  तक जायेंगे ,
लक्ष्य ये आसान  नहीं
हम कोशिश करते जायेंगे

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,


ग म  प सा नि ध प म ग ग ग .... x २ 



Monday 23 July 2012

life experience theek nahi hindi poem @sunilagrahari






...ठीक नहीं...

तन्हां  तन्हां रोते रहना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,
सहमें सहमें  आगे चलना ,यूँ  तो ऐसे ठीक नहीं ,

सफ़र है लम्बा जीवन का पूछ लो हर चौराहे पर ,

चलते चलते राह भटकना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

कौन है अपना कौन पराया ,ये तो कहना मुश्किल है ,

सब से हंस के हाथ मिलाना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

ग़म से तू घबराना मत ,खुशियाँ आनी  जानी है ,

क़दम क़दम पे किस्मत रोना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

मंजिल तेरी दूर नहीं , नाम खुदा का लेके चल ,

थके थके से कदम बढ़ाना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

               लेखक-सुनिल अग्रहरि 

nazar pyar muhabbat ishqu ashiqui ke hndi geet kavita @sunilagrahari

   

   

...नज़र...

बूंद ए बारिश में तेरा अक्स नज़र आता है ,
पास पाकर न तुझे ,अश्क निक आता  है ,

बीते लम्हातों ने दिल को जो सदा दी है ,

वो  तेरे प्यार में जीने की सज़ा दी है
ग़म जुदाई का कहर देख सिहर जाता है 

साथ तारों के तन्हां  आफ़ताब  लगता है ,

ख्वाब में तुझको न पा कर अज़ाब होता है ,
शाख ए ग़ुल प्यास से बेहाल नज़र अता है 

सर्द  मौसम की हवा  आज तूफानी है ,

ठंडी  पड़ती   मेरे   रूह  की  कहानी है ,
अब तो हर बात में काश नज़र आता है ,


                      लेखक -सुनिल अग्रहरि   

Judai ki hindi kavita @ sunil agrahari







...............चला गया..............



घर से निकला साथ में ,वापस लौटा बिछड़ गया ,
दर दर पुछा राह अपना ,घर का पता मै  भूल गया ,

चाँद से बोला रौशन कर दे , ढूंढ  लूं दरों दीवारों को ,
चंद लम्हे रौशन कर चंदा ,हाथ हिला कर चला गया ,

किसको रोकूँ किस्से पूछूँ ,इस अनजानी बस्ती में ,
हाथ मिला कर गले लगाया ,भरम तोड़ कर चला गया ,

बैठ   किनारे    दरीया  के  ,  सोचा   पूछूं    रेत    से,
हवा का झोंका ऐसा आया ,रेत  उड़ा कर चला गया ,



                                      -सुनिल अग्रहरि   

life experience harkat hindi geet kavita @sunilagarahai

    



...हरक़त...

रेत  के  सलवट ऐसे दिखते , जैसे  मेरी  कहानी है ,
खामोश पड़ी सागर की लहरें , इससे हवा अन्जानी  है ,

जिसने शहर बर्रबाद  किया ,सूरत जानी पहचानी है ,

जवां दिलों में आग लगाना ,उसकी यही कहानी है ,

रब   जाने   क्या  होना ,   आज  हवा   तूफ़ानी   है ,

स्याही रात घनी बिजली कड़कती ,उसपे छाई रवानी है ,

तलाश मुझे उस सूरत की ,ये बात उसे समझानी है ,

है दौर संभल कर चलने का ,हरक़त तेरी बचकानी है ,


 लेखक-सुनिल  अग्रहरि

kya hua - life experience hindi get kavita @sunilagrahari

 

     


        ...क्या हुवा ..


क्या  हुवा है  फ़ज़ाओं को, जो रेत  उड़ाती रहती है ,
शायद  खुशबू ख़त्म  हुई ,या  कुदरत की मर्ज़ी है ,

क्या हुवा है पायल   को जो ,जो खामोश रहती है ,

 शायद   घुंघुरू  टूट गए  या , पैरों   की  मर्ज़ी   है ,

क्या हुवा है बस्ती को ,शमशानी  छाई रहती है ,

शायद कोई दिल टूट  , या शहरों को  मर्ज़ी   है , 

क्या हुवा उन राहों को जो राहें सुनी रहती है ,

शायद  राही  खत्म हुवे ,या लोगों की मर्ज़ी   है , 

                               लेखक -सुनिल अग्रहरि 



pata nahi life experience hindi geet kavita @sunilagrahari




.....पता नहीं....

 घर घर  शम्मां जली हुई , रौशन  का कुछ पता नहीं
चारों तरफ है काली घटा ,बारिश का कुछ  पता नहीं  ,

हर दिन हर दिल टूट रहा , जाने क्यूँ कुछ पता नहीं ,

सारा शहर है चिल्लाया ,शोर का कुछ पता नही ,

मौसम बदला आया  बसंत , फूलों का कुछ पता नही ,

हर डाली है हरी भरी ,कोयल का   कुछ पता नहीं ,

प्यार की भाषा बोल रहे ,प्यार का कुछ पता नही 

बात  खुदा की करते है ,  सज़दा  का  कुछ पता नहीं ,

ढूंढता हूँ मै  अपने आप को , क्या मै कुछ हूँ पता नहीं 

क्या होगा इस दुनियां का ,सोचता हूँ कुछ पता नहीं ,


                          लेखक-सुनिल  


dariyae saqui pyar muhabbat ashiqui ishq ke hindi geet kavita





.... दरिया-ए-सकी.......
धन दौलत जिसके साथ है , उसका  जीना  मुश्किल ,
और साकी  जिसके साथ है ,उसका  मरना  मुश्किल ,


खुदा मुझसे कह दे , तू जो चाहे ले ले ,

कहूँगा खुदा से मै , दरया -ए - सकी ,


हवा जब चलेगी ,यूँ  दरिया से हो कर ,

उसका नशा भी अजब होगा साकी ,

जब भी किसी को सताएगी दुनियां ,

तन्हां में साथी  ,  बनेगा ये साकी ,

दरिया किनारे दरख्तों के साये ,

नशा ठन्डे सायों  का अजब होगा साकी ,

रिन्दों की हसरत ,यहीं मरना होगा ,

नशा मरने वालों का अज़ब होगा सकी ,

सारा शहर जब सन्नाटे में होगा ,

सहारा बनेगा ये , दरया -ए - सकी

     लेखक-सुनिल  अग्रहरि 

kaha se laoon pyar muhabbat ishq ashiqui ke hindi geet kavita @sunilagrahari

       

             

 .......कहाँ से लाऊं .....

दिल की दिवाली तुने मनाई ,मै  कैसे ईद मनाऊ ,
खुशियाँ थी जो खत्म हुई ,अब और कहाँ से लाऊं ,

पास मेरे तो एक  ही दिल था ,जिसको तुमने तोडा

कैसे  जिन्दा  रहूँ  बिना दिल ,और कहाँ   से   लाऊं,

खुदा का तोहफा अश्क मिला था , तेरे लिए बहाया ,

अपनी   किस्मत  पे   रोने को  और कहाँ से लाऊँ  ,

साथ में तेरे ताकत मेरी , तुने   उसको     छिना ,

बिन तेरे जीने के खातिर  ,  और   कहाँ से  लाऊं ,

                        लेखक -सुनिल अग्रहरि 

Sunday 22 July 2012

chahat - pyar muhabat ashiqui ishq hindi geet kavita @sunilagrahari




........चाहत ....

खुदा की कसम खूबसूरत हो तुम,
नज़र न लगे तुमको छुपा लेंगे हम ,

आँखों में काज़ल तुमको बना लूं  ,
या दिल की धड़कन तुमको बना लूं ,
सासों की खुशबू तुझको बना लूं ,
चाहत से अपनी  डरते है हम ,

डरता है नज़रों से तेरे ज़माना ,
तेरी अदाओं का मै  हूँ दीवाना ,
मुझको नहीं अब कहीं दूर जाना ,
चाहे तू कर ले जितने सितम ,
        लेखक -सुनिल अग्रहरि