.......कहाँ से लाऊं .....
दिल की दिवाली तुने मनाई ,मै कैसे ईद मनाऊ ,खुशियाँ थी जो खत्म हुई ,अब और कहाँ से लाऊं ,
पास मेरे तो एक ही दिल था ,जिसको तुमने तोडा
कैसे जिन्दा रहूँ बिना दिल ,और कहाँ से लाऊं,
खुदा का तोहफा अश्क मिला था , तेरे लिए बहाया ,
अपनी किस्मत पे रोने को और कहाँ से लाऊँ ,
साथ में तेरे ताकत मेरी , तुने उसको छिना ,
बिन तेरे जीने के खातिर , और कहाँ से लाऊं ,
लेखक -सुनिल अग्रहरि
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