......फूट कर .....
मेरा दिल फूट कर रोया ,
चली जब झूम कर हवा ,
कदर इस टूटा मेरा दिल ,
नहीं कोई है इसकी दवा ,
कभी जो मुस्कुराते थे ,वही आँखे दिखाते है ,
कभी शबनम से लगते थे ,वही शोले से दिखते है ,
खुले मुंह ऐसे लोगों के ,जुबाँ जो बन्द रखते थे ,
वही दीवार भी टूटी ,भरोसा छत को जिसपे था ,
मुझे धोखा दिया उसने ,इबादत जिसकी करता था,
मुहब्बत दिल से की मैंने ,मुझे बर्बाद होना था ,
लेखक -सुनिल अग्रहरि
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