Friday 20 July 2012

fir bhi hindi kavita , life experiences poem @sunilagarahari




........फिर भी......

दरवाजे इस तरह बंद किये ,की कोई आ न सके ,
फिर भी आ गई मौत ,  हम कुछ कर न सके

ज़िन्दगी के दौड़ में ,हम कुछ इस तरह थके ,
मौसम था सर्द    हम सो गए  बिना कुछ ढके ,

उन्हें देख आदाब किया ,कुछ ऐसा झुके ,
कमर टूटी चिल्लाया ,  वो  फिर भी न रुके

मरने पे यूँ सजाया   ,की वो पहचान न सके ,
दोस्त हूँ या दुश्मन ,ये     जान    न      सके ,



                          लेखक -सुनील अग्रहरि 

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