........फिर भी......
दरवाजे इस तरह बंद किये ,की कोई आ न सके ,फिर भी आ गई मौत , हम कुछ कर न सके
ज़िन्दगी के दौड़ में ,हम कुछ इस तरह थके ,
मौसम था सर्द हम सो गए बिना कुछ ढके ,
उन्हें देख आदाब किया ,कुछ ऐसा झुके ,
कमर टूटी चिल्लाया , वो फिर भी न रुके
मरने पे यूँ सजाया ,की वो पहचान न सके ,
दोस्त हूँ या दुश्मन ,ये जान न सके ,
लेखक -सुनील अग्रहरि
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