.... डर.........
अपनों से दर लगता है , गैरों की बात नहीं
कहने को वो अपने हैं ,बिन मतलब के साथ नहीं ,
दिल लेना और दिल देना ,अब तो बस एक सौदा है ,
दौलत है तो अपने है ,बिन दौलत के साथ नहीं ,
सीने में जब दर्द ,उठा , तन्हा सा महसूस हुवा ,
झांक के देखा अपने दिल में ,मेरे दिल का पता नहीं ,
जंग हुवी दो नज़रों की ,पलक झपी न नज़र फिरी ,
दोनों दिल तो एक हुवे , नजरो को कुछ पता नहीं ,
लेखक -सुनील अग्रहरि
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