...हरक़त...
रेत के सलवट ऐसे दिखते , जैसे मेरी कहानी है ,खामोश पड़ी सागर की लहरें , इससे हवा अन्जानी है ,
जिसने शहर बर्रबाद किया ,सूरत जानी पहचानी है ,
जवां दिलों में आग लगाना ,उसकी यही कहानी है ,
रब जाने क्या होना , आज हवा तूफ़ानी है ,
स्याही रात घनी बिजली कड़कती ,उसपे छाई रवानी है ,
तलाश मुझे उस सूरत की ,ये बात उसे समझानी है ,
है दौर संभल कर चलने का ,हरक़त तेरी बचकानी है ,
लेखक-सुनिल अग्रहरि
No comments:
Post a Comment