.....पता नहीं....
घर घर शम्मां जली हुई , रौशन का कुछ पता नहींचारों तरफ है काली घटा ,बारिश का कुछ पता नहीं ,
हर दिन हर दिल टूट रहा , जाने क्यूँ कुछ पता नहीं ,
सारा शहर है चिल्लाया ,शोर का कुछ पता नही ,
मौसम बदला आया बसंत , फूलों का कुछ पता नही ,
हर डाली है हरी भरी ,कोयल का कुछ पता नहीं ,
प्यार की भाषा बोल रहे ,प्यार का कुछ पता नही
बात खुदा की करते है , सज़दा का कुछ पता नहीं ,
ढूंढता हूँ मै अपने आप को , क्या मै कुछ हूँ पता नहीं
क्या होगा इस दुनियां का ,सोचता हूँ कुछ पता नहीं ,
लेखक-सुनिल
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