....कब तक ....
चलो अच्छा हुवा ,दिल टूट गया ,अब न रोयेगा दिल ये किसी के लिए ,
अब भरोसा नहीं है किसी का यहाँ
जान देदोगे चाहे किसी के लिए ,
कसमें मरने की थी संग खाई ,
साथ पलके भी हमने झुकाई ,
हर कदम पे वफ़ा ही निभाई ,
फिर भी की मेरे संग की बेवफाई ,
भीगी पलकें जहाँ भी उनकी ,
काट उंगली लहू को बहाया ,
हर कदम पे था गुल को खिलाया ,
फिर भी कांटा उन्हों ने चुभाय ,
बेवफाई का ऐसा मौसम,
कब तलक यूँ ही चलता रहेगा ,
जब भी चाहेगा ये दिल किसी को
यूँ ही बेमौत मरता रहेगा,
लेखाक - सुनिल अग्रहरि
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