...क्या हुवा ..
क्या हुवा है फ़ज़ाओं को, जो रेत उड़ाती रहती है ,
शायद खुशबू ख़त्म हुई ,या कुदरत की मर्ज़ी है ,
क्या हुवा है पायल को जो ,जो खामोश रहती है ,
शायद घुंघुरू टूट गए या , पैरों की मर्ज़ी है ,
क्या हुवा है बस्ती को ,शमशानी छाई रहती है ,
शायद कोई दिल टूट , या शहरों को मर्ज़ी है ,
क्या हुवा उन राहों को जो राहें सुनी रहती है ,
शायद राही खत्म हुवे ,या लोगों की मर्ज़ी है ,
लेखक -सुनिल अग्रहरि
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