....देना .नहीं....
याद क्यों आते हो हमकोजब तुम्हें आना नहीं ,
दर्द क्यूँ देते हो हमको ,
जब दावा देना नहीं।
यूँ तो मै बर्बाद ही ,ठीक था आबाद से ,
कैद मेरा ही भला था ,तेरे इस आजाद से ,
प्यास क्यूँ देते हो हमको ,आब जब देना नहीं।
खेलना था दिल से मेरे ,खेल लेते ख्वाब में
अक्स मेरा देखना था ,देखते शराब में ,
अक्स क्यूँ देते हो हमको ,प्यार् जब देना नहीं।
लेखक -सुनिल अग्रहरि
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