Tuesday 24 July 2012

Aagey hi badhte janna hai motivational poem @sunill agrahari


                             





... आगे ही बढते जाना है ..


 this song is  for   “DHL. INFRABULS INTERNATIONAL PRT.LTD. INDORE ”.
Now it’s a theme song of this company………………..


हिम्मत लगन विश्वास से , आगे  ही  बढते  जाना है ,
जन जन के दिल में हमको, अपना विश्वास जगाना है ,

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,

आओ मिलकर हम साथ चले ,
हर मुश्किल को आसान  करें,
छोटी  बड़ी  हर  खुशियों   से ,
सब के जीवन में प्यार भरें ,

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,

आगाज़ हमने कर दिया ,
अंजाम तक पहुचाएं गे ,
अंदाज़ हमारा अपना है ,
आवाज़ बुलंद हमारी है ,

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,

शुरुआत किया इस धरती से ,

हम आसमा  तक जायेंगे ,
लक्ष्य ये आसान  नहीं
हम कोशिश करते जायेंगे

हिम्मत लगन विश्वास से ...................................,


ग म  प सा नि ध प म ग ग ग .... x २ 



Monday 23 July 2012

life experience theek nahi hindi poem @sunilagrahari






...ठीक नहीं...

तन्हां  तन्हां रोते रहना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,
सहमें सहमें  आगे चलना ,यूँ  तो ऐसे ठीक नहीं ,

सफ़र है लम्बा जीवन का पूछ लो हर चौराहे पर ,

चलते चलते राह भटकना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

कौन है अपना कौन पराया ,ये तो कहना मुश्किल है ,

सब से हंस के हाथ मिलाना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

ग़म से तू घबराना मत ,खुशियाँ आनी  जानी है ,

क़दम क़दम पे किस्मत रोना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

मंजिल तेरी दूर नहीं , नाम खुदा का लेके चल ,

थके थके से कदम बढ़ाना ,यूँ तो ऐसे ठीक नहीं ,

               लेखक-सुनिल अग्रहरि 

nazar pyar muhabbat ishqu ashiqui ke hndi geet kavita @sunilagrahari

   

   

...नज़र...

बूंद ए बारिश में तेरा अक्स नज़र आता है ,
पास पाकर न तुझे ,अश्क निक आता  है ,

बीते लम्हातों ने दिल को जो सदा दी है ,

वो  तेरे प्यार में जीने की सज़ा दी है
ग़म जुदाई का कहर देख सिहर जाता है 

साथ तारों के तन्हां  आफ़ताब  लगता है ,

ख्वाब में तुझको न पा कर अज़ाब होता है ,
शाख ए ग़ुल प्यास से बेहाल नज़र अता है 

सर्द  मौसम की हवा  आज तूफानी है ,

ठंडी  पड़ती   मेरे   रूह  की  कहानी है ,
अब तो हर बात में काश नज़र आता है ,


                      लेखक -सुनिल अग्रहरि   

Judai ki hindi kavita @ sunil agrahari







...............चला गया..............



घर से निकला साथ में ,वापस लौटा बिछड़ गया ,
दर दर पुछा राह अपना ,घर का पता मै  भूल गया ,

चाँद से बोला रौशन कर दे , ढूंढ  लूं दरों दीवारों को ,
चंद लम्हे रौशन कर चंदा ,हाथ हिला कर चला गया ,

किसको रोकूँ किस्से पूछूँ ,इस अनजानी बस्ती में ,
हाथ मिला कर गले लगाया ,भरम तोड़ कर चला गया ,

बैठ   किनारे    दरीया  के  ,  सोचा   पूछूं    रेत    से,
हवा का झोंका ऐसा आया ,रेत  उड़ा कर चला गया ,



                                      -सुनिल अग्रहरि   

life experience harkat hindi geet kavita @sunilagarahai

    



...हरक़त...

रेत  के  सलवट ऐसे दिखते , जैसे  मेरी  कहानी है ,
खामोश पड़ी सागर की लहरें , इससे हवा अन्जानी  है ,

जिसने शहर बर्रबाद  किया ,सूरत जानी पहचानी है ,

जवां दिलों में आग लगाना ,उसकी यही कहानी है ,

रब   जाने   क्या  होना ,   आज  हवा   तूफ़ानी   है ,

स्याही रात घनी बिजली कड़कती ,उसपे छाई रवानी है ,

तलाश मुझे उस सूरत की ,ये बात उसे समझानी है ,

है दौर संभल कर चलने का ,हरक़त तेरी बचकानी है ,


 लेखक-सुनिल  अग्रहरि

kya hua - life experience hindi get kavita @sunilagrahari

 

     


        ...क्या हुवा ..


क्या  हुवा है  फ़ज़ाओं को, जो रेत  उड़ाती रहती है ,
शायद  खुशबू ख़त्म  हुई ,या  कुदरत की मर्ज़ी है ,

क्या हुवा है पायल   को जो ,जो खामोश रहती है ,

 शायद   घुंघुरू  टूट गए  या , पैरों   की  मर्ज़ी   है ,

क्या हुवा है बस्ती को ,शमशानी  छाई रहती है ,

शायद कोई दिल टूट  , या शहरों को  मर्ज़ी   है , 

क्या हुवा उन राहों को जो राहें सुनी रहती है ,

शायद  राही  खत्म हुवे ,या लोगों की मर्ज़ी   है , 

                               लेखक -सुनिल अग्रहरि 



pata nahi life experience hindi geet kavita @sunilagrahari




.....पता नहीं....

 घर घर  शम्मां जली हुई , रौशन  का कुछ पता नहीं
चारों तरफ है काली घटा ,बारिश का कुछ  पता नहीं  ,

हर दिन हर दिल टूट रहा , जाने क्यूँ कुछ पता नहीं ,

सारा शहर है चिल्लाया ,शोर का कुछ पता नही ,

मौसम बदला आया  बसंत , फूलों का कुछ पता नही ,

हर डाली है हरी भरी ,कोयल का   कुछ पता नहीं ,

प्यार की भाषा बोल रहे ,प्यार का कुछ पता नही 

बात  खुदा की करते है ,  सज़दा  का  कुछ पता नहीं ,

ढूंढता हूँ मै  अपने आप को , क्या मै कुछ हूँ पता नहीं 

क्या होगा इस दुनियां का ,सोचता हूँ कुछ पता नहीं ,


                          लेखक-सुनिल  


dariyae saqui pyar muhabbat ashiqui ishq ke hindi geet kavita





.... दरिया-ए-सकी.......
धन दौलत जिसके साथ है , उसका  जीना  मुश्किल ,
और साकी  जिसके साथ है ,उसका  मरना  मुश्किल ,


खुदा मुझसे कह दे , तू जो चाहे ले ले ,

कहूँगा खुदा से मै , दरया -ए - सकी ,


हवा जब चलेगी ,यूँ  दरिया से हो कर ,

उसका नशा भी अजब होगा साकी ,

जब भी किसी को सताएगी दुनियां ,

तन्हां में साथी  ,  बनेगा ये साकी ,

दरिया किनारे दरख्तों के साये ,

नशा ठन्डे सायों  का अजब होगा साकी ,

रिन्दों की हसरत ,यहीं मरना होगा ,

नशा मरने वालों का अज़ब होगा सकी ,

सारा शहर जब सन्नाटे में होगा ,

सहारा बनेगा ये , दरया -ए - सकी

     लेखक-सुनिल  अग्रहरि 

kaha se laoon pyar muhabbat ishq ashiqui ke hindi geet kavita @sunilagrahari

       

             

 .......कहाँ से लाऊं .....

दिल की दिवाली तुने मनाई ,मै  कैसे ईद मनाऊ ,
खुशियाँ थी जो खत्म हुई ,अब और कहाँ से लाऊं ,

पास मेरे तो एक  ही दिल था ,जिसको तुमने तोडा

कैसे  जिन्दा  रहूँ  बिना दिल ,और कहाँ   से   लाऊं,

खुदा का तोहफा अश्क मिला था , तेरे लिए बहाया ,

अपनी   किस्मत  पे   रोने को  और कहाँ से लाऊँ  ,

साथ में तेरे ताकत मेरी , तुने   उसको     छिना ,

बिन तेरे जीने के खातिर  ,  और   कहाँ से  लाऊं ,

                        लेखक -सुनिल अग्रहरि 

Sunday 22 July 2012

chahat - pyar muhabat ashiqui ishq hindi geet kavita @sunilagrahari




........चाहत ....

खुदा की कसम खूबसूरत हो तुम,
नज़र न लगे तुमको छुपा लेंगे हम ,

आँखों में काज़ल तुमको बना लूं  ,
या दिल की धड़कन तुमको बना लूं ,
सासों की खुशबू तुझको बना लूं ,
चाहत से अपनी  डरते है हम ,

डरता है नज़रों से तेरे ज़माना ,
तेरी अदाओं का मै  हूँ दीवाना ,
मुझको नहीं अब कहीं दूर जाना ,
चाहे तू कर ले जितने सितम ,
        लेखक -सुनिल अग्रहरि 

chal diye , ashqui , pyar bevafai, muhabbat dhokha ke hindi geet



.......चल दिए ...

आंसुवों का  ये समुन्दर क्यूँ  बहा कर चल दिये ,
जख्म पहले ही बहोत थे ,क्यूँ बढ़ा  कर चल दिये ,

रेत का मैदान मुझको क्यूँ सदा देता हा आज ,
दिल पपीहा का तड़प कर क्यूँ दुआ देता है आज ,
जल रही थी दिल की शम्मां क्यूँ भुझा कर चल दिये ,

आशियाँ हमने बनाया क्यूँ  उजाड़ा  आप ने ,
मय से थी आबाद दुनियां क्यूँ छुडाया आप ने ,
डगमगा कर गिर पड़े  थे ,क्यूँ  उठा कर चल दिए ,


                        लेखक -सुनिल अग्रहरि

foot kar geet , ashiqui ,muhabbat, pyar , bewafai , dhokha ke geet kavita @sunilagrahari




......फूट कर .....


मेरा दिल फूट कर रोया ,
चली जब झूम कर हवा ,
कदर इस टूटा मेरा दिल ,
नहीं कोई है इसकी दवा ,

कभी जो मुस्कुराते थे ,वही आँखे दिखाते है ,
कभी शबनम से लगते थे ,वही शोले से दिखते है ,
खुले मुंह ऐसे लोगों के ,जुबाँ  जो बन्द रखते थे ,

वही दीवार भी टूटी ,भरोसा छत को जिसपे था ,
मुझे धोखा दिया उसने ,इबादत जिसकी करता था, 
मुहब्बत दिल से की मैंने ,मुझे बर्बाद होना था ,

                         लेखक -सुनिल अग्रहरि 

dena nahi , hindi geet kavita @sunilagarahari

....देना .नहीं....

याद क्यों आते हो हमको
जब तुम्हें  आना  नहीं ,
दर्द क्यूँ देते हो हमको ,
जब दावा देना नहीं। 

यूँ तो मै बर्बाद ही ,ठीक था आबाद से ,
कैद मेरा ही भला था ,तेरे इस आजाद से ,
प्यास क्यूँ देते हो हमको ,आब जब  देना नहीं। 

खेलना था दिल से मेरे ,खेल लेते ख्वाब में
अक्स मेरा देखना था ,देखते  शराब में ,
अक्स क्यूँ देते हो हमको ,प्यार् जब देना नहीं। 

                     लेखक -सुनिल अग्रहरि   

Duniyan walo hindi kavita -sunil agrahari






...दुनियां वालों ....

मै आज हुवा  हूँ दीवाना ,
मेरी बात सुनो दुनिया वालों ,
हो जाये गर भूल कोई ,
तो माफ़ करो दुनियां वालों ,


मैखाने में बैठा था ,
हम प्याला न साथ कोई ,
तन्हा मै बेहोश हुवा ,
माफ़ करो दुनियां वालों,

सफ़र को घर से निकला था
हम राही  न साथ कोई,
तन्हां रस्ता भटक गया ,
माफ़ करो दुनियां वालों,


इस दुनियां में जीने को ,
यार मेरे न साथ कोई ,
तन्हां मै  बर्बाद हुवा ,
माफ़ करो दुनियां वालों,

लेखक - सुनिल अग्रहरि

kab tak geet kavita , ashiqui ,muhabbat, pyar , bewafai , dhokha ke hinhdi geet @sunilagrahari


....कब तक ....

चलो अच्छा हुवा ,दिल टूट गया ,
अब न रोयेगा दिल ये किसी के लिए ,
अब भरोसा नहीं है किसी का यहाँ
जान देदोगे चाहे किसी के लिए ,

कसमें मरने की थी संग खाई ,
साथ पलके भी हमने झुकाई ,
हर कदम पे वफ़ा ही निभाई ,
फिर भी की मेरे संग की बेवफाई ,

भीगी पलकें जहाँ भी उनकी ,
काट उंगली लहू को बहाया ,
हर कदम पे था गुल को खिलाया ,
फिर भी  कांटा उन्हों ने चुभाय ,

बेवफाई का  ऐसा मौसम,
कब तलक यूँ ही चलता रहेगा ,
जब भी चाहेगा ये दिल किसी को
यूँ ही बेमौत मरता रहेगा,


लेखाक - सुनिल अग्रहरि 

yaad ataa hai , ashiqui muhabbat ke geet @sunilagrahari

.....याद आता है....

दिन में दर्द की खबर नहीं ,रातों में याद आता  ,
दिल में कहीं एक  जगह है खाली ,रातों में याद आता है ,

भीड़ भरे इस शहर में  यारों ,सब अन्जाने  दीखते  है ,
शहर की हर छत भी है पराई , रातों में याद आता है,

बाद सफ़र को तय करने के हर राही  रुक जाता है ,
हर रस्ते के मोड़ पराये ,रातों को ,रातों में याद आता है,

कहर पड़ा जब दिल के ऊपर ,आँख से आंसू बहते थे ,
अश्क कभी न हुवा आँख का ,रातों में याद आता है ,

शोर भरा दिन अच्छा है ,याद भरी इन रातों से ,
रात कभी न आये दोबारा ,रातों में याद आता है ,


                        लेखक -सुनिल अग्रहरि 


judai bewafai ke geet kavita @sunilagrahari




........क्या करूँ .......

कल तलक जो अजनबी  थे ,हो गए वो रूबरू ,
दिल जो उनपर आ गया तो भला मै  क्या करूँ,

ऊब कर तन्हाई से निकला था मिलने मौत से ,
मिल गई जो ज़िन्दगी तो भला मई क्या करू ,
  
मय से था लवरेज प्याला ,पी रहा था आँख से ,
थे वो मेरे सामने ,  मै   भला फिर क्या करूँ ,

हुस्न का जलवा दिखेगा ,था न सोचा ख्वाब में ,
रात रूमानी हो  गई तो भला मै  क्या करूँ 



                         लेखक -सुनिल  अग्रहरि 

Saturday 21 July 2012

baad hindi poem , judaai, bewafai ke hindi geet



.......बाद ......

भूल न पाऊंगा उनको अब जुदा  होने के बाद ,
कैसे अब मै   जी सकूँगा ,ज़िन्दगी खोने के बाद ,

बन संवर के वो मिले थे ,जब मिले थे पहली बार,
खो गए  बाँहों में  उनके ,प्यार से मिलने के बाद ,

नींद मेरी उड़ गई थी ,चैन मेरा उनके पास ,
मै  दीवाना  हो गया , अहसास  हो जाने के बाद,

हाथ सिने पर हमारे ,खाई थी रख कर कसम ,
जीना है तो संग तेरे ,  मरना है तो तेरे साथ ,

चूर हो गए ख्वाब मेरे ,तोड़  डाली थी कसम ,
जब दुबारा वो मिले हमसे जुदा होने के बाद


                      लेखक -सुनील अग्रहरि


Friday 20 July 2012

fir bhi hindi kavita , life experiences poem @sunilagarahari




........फिर भी......

दरवाजे इस तरह बंद किये ,की कोई आ न सके ,
फिर भी आ गई मौत ,  हम कुछ कर न सके

ज़िन्दगी के दौड़ में ,हम कुछ इस तरह थके ,
मौसम था सर्द    हम सो गए  बिना कुछ ढके ,

उन्हें देख आदाब किया ,कुछ ऐसा झुके ,
कमर टूटी चिल्लाया ,  वो  फिर भी न रुके

मरने पे यूँ सजाया   ,की वो पहचान न सके ,
दोस्त हूँ या दुश्मन ,ये     जान    न      सके ,



                          लेखक -सुनील अग्रहरि 

dar hindi poem , dar , trust hindi poem




....  डर.........


अपनों से दर लगता है ,  गैरों    की   बात    नहीं 
कहने को वो अपने हैं ,बिन मतलब के साथ नहीं ,

दिल लेना और दिल देना ,अब तो बस एक  सौदा है ,
दौलत है तो अपने है ,बिन   दौलत  के  साथ  नहीं ,

सीने में जब दर्द ,उठा , तन्हा  सा   महसूस   हुवा  ,
झांक के देखा अपने दिल में ,मेरे दिल का पता नहीं ,

जंग हुवी  दो नज़रों की ,पलक झपी न नज़र फिरी ,
दोनों दिल तो एक  हुवे , नजरो को कुछ पता नहीं ,



        लेखक -सुनील अग्रहरि 

koi aaye hindi kavita geet @sunil agrahari





................कोई आये  ................


अब तक है सूनी  ,ये दिल की रहें ,
कोई आये सुन्दर ,ग़ज़ल गुन  गुनाए

दिल की दीवारें कोरी पड़ी है ,
कोई  आये  ,कुछ भी कहीं भी खिचाये

मेरे मन की बगिया ,वीरान वन है
कोई  आये  गुलशन में गुल को खिलायें

आँखों में काला , घना  है अँधेरा
कोई चांदनी सी ,किरण झिलमिलाये


           लेखक-सुनील अग्रहरि 

mehmaan guest hindi poem @sunilagarahari



           मेहमान         

   
गजब के है ऐसे ,मेहमान दिल के ,
बातों ही बातों  में  होश उड़ा  लेते है

नज़रो से उनकी क़यामत बरसती ,
देखते ही देखते ,नींद उदा  लेते है ,

चलते है ऐसे , मदमस्त    हो   के
बड़े बड़े   रिन्दों  के होश  उड़ा  देते है ,

बातो  का  लहजा , ग़ज़ल  शायरी सी
बड़े बड़े शायर की सोच उड़ा  देते है


      लेखक- सुनील अग्रहरि  

Thursday 19 July 2012

Dua hindi poem by sunil agrahari










Published in Akrosh magazine Mauritius APRIL 22

*******दुआ ******

सागर  की  लहरो ने  धोका दिया   है 
रेतों  के  तन्हां  में   , सीप  को  छोड़ा  है। 

लहरों  की  बूंदों  को  मोती  बनाया ,
सिला  सीप  को  नेकी  का  मिला  है। 

फरेबी   लहर ने  सपने  दिखा  कर  ,          
गहराई   से  नाता  ,सीप  का  तोड़ा  है। 

 फिर  भी  दुआ  दे  रहा  है   ,लहर  को,  
 खुद   को  खुदा से   सीप  ने जोड़ा    है। 

                                     सुनील अग्रहरि 

koshish hindi kaviat , koshish , @sunil agrahari






*******कोशिश ******

खुशियों  को  ले  करके  ग़म  अपने  देदो ,
शहर  में  न  ऐसा  ऐलान  होगा  ,

खुशियाँ  मानाने  में  हर  शख्स  आगे 
ग़म  को  बंटाने    में  , न  कोई  होगा  ,

खुशियाँ  अधिक  हो  तो   आंसू  निकलते 
गम  में  बहेंगे  तो  क्या  हर्ज़  होगा  ,

अगर   हर  कोई  ऐसा  करने  लगे  तो ,
मुहब्बत  बढेगी ,अमन  चैन  होगा  ,

कोशिश  करूँगा   , पहल  मै  करू 
अच्छा  नहीं  तो  बुरा  भी  न  होगा  ,  
                 
                लेखक -सुनील अग्रहरि 

Hindi poem "paya" by @sunilagrahari







 


 ....पाया .....

Jankaarikaal magazine August 2023

शहरों  की  गलियों  में ,ढूंढा  अपने आप को  ,
अँधेरे  में  पाया ,मैंने  अपने  आप  को  ,

कर  के  वफ़ा  मैंने  ,दिखाया  अपने  यार  को  ,
बदले  में  पाया  ,खतरे  में  अपनी  जान  को ,

शोरगुल  में  चाहा  ,पाना   सुनसान  को  ,
आदमी  के  भेष   में  पाया  शैतान  को ,

मतलब  परस्त   दुनियां  में  ,देखा  इन्सान  को ,
कचरे  के  ढेर    में     पाया   ईमान          को  ,


                                         सुनील अग्रहरि 
                             

Malum hai hindi kavita , मालूम है हिंदी कविता sunil agrahari










Published in  Mauritius 
Magazine - Akrosh
September 17
 .....मालूम है ......


खुदाभी है इस दुनिया में,ये तो सब को मालूम  है 
क्या क्या राज है किसके दिल में ,ये तो खुदा  को मालूम  है  

गर  तबियत  नासाज़ हो ,हर  शख्स दावा को लेता है 
दावा ज़हर कब बन जाये ,ये तो दावा को  मालूम   है  

शम्मां तो खुद जलती है ,जग  को  रोशन करती  है 
खुद जलने में क्या  रक्खा है ,ये तो शम्मां को मालूम है 

ठंडी ठंडी हवा के झोंके ,सब के मन के  भाती है  ,
कब झोंके बन जायेतूफ़ान ,ये तो हवा को  मालूम है 


                            

  .

Monday 16 July 2012

Social poem , patthar ka darad, patthar , in Hindi @sunilagrahari

 



…  पत्थर का दर्द  … 


तराशो न मुझे ,यूँ  ही पड़ा रहने  दो
राह  का पत्थर  हूँ ,यूँ ही  ठोकर खाने दो
गर तराशोगे  मुझको  हथोड़े चलेंगे
पैरों के ठोकर की आदत पड़ी है ..........

वैसे तो ठोकर भी  अब सहा नहीं जाता
अभी कल की ही बात है..........
जाने किस्से चोट लगी ,बड़ी तेज़ चिंगारी उठी
सोचा चिल्लाऊं ,लकिन आवाज़ ही नहीं निकली
सोचा, देखूं ,कहाँ चोट लगी है ?
देखते ही आँखों ने नम   होना चाहा
मगर ऑंखें, रेगिस्तान जैसे सुखी रहा गई  ,

फिर अचानक याद  आई .......
हमारी जात में ऐसी सुविधा कहाँ ,
इसी लिए मजबूर हूँ ,लाचार हूँ  ,समझ में नहीं आता ,
रब ने हम पत्थरों से क्यूँ की बेवफाई
हम पत्थरों की जात में  आवाज़ ,आंसू क्यों न बनाई .....?
हम इसी में संतोष कर लेते ...
जिसने जैसा चाह फोड़ा , जैसा चाहा  तोड़ा  
मगर हमने  उफ़ तक न किया , जवाब भी न दिया.
किसी को मारने का काम भी मुझसे  ही लिया ,
क्या करूँ ....हाथ ही नहीं  है ...नहीं तो रोक लेता 
सारी   अहिंसा तो हम पत्थरों की जात में मिलेगी,
वैसे हम लोगों को इसी बात का गर्व  ,
और इसी बात का दर्रद  है ....
शायद ....इसी लिए हम लोग पत्थर  कहे जाते है  
अरे ...ओ  ऊपर वाले .....
हम लोगो की थोड़ी सी अहिंसा ,मनुष्यों को दे देते 
तो शायद मनुष्यों की ये हालत न होती ,......
और हमे  इनके थोड़े से आंसू दे देते 
तो शायद हम लोग भी रो कर जी हल्का कर लेते ,
और ख़ुशी ख़ुशी दर्द  सह लेते ,
तब शायद पत्थर होने का गम न होता .......3    


                                       लेखक -सुनील अग्रहरि